गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम १९९४
धारा ३१क :
१.(कठिनाइयों का दूर किया जाना :
(१) यदि प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (विनियमन और दुरुपयोग निवारण) संशोधन अधिनियम, २००२ के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध बना सकेगी, जो उक्त अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों, और जो उक्त कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों:
परंतु इस धारा के ऐसा कोई आदेश प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (विनियमन और दुरुपयोग निवारण) संशोधन अधिनियम, २००२ के प्रारंभ की तारीख से तीन वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जाएगा।
(२) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके किए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जा सकेगा ।)
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१. २००३ के अधिनियम सं० १४ की धारा २३ द्वारा अंत:स्थापित ।