Pcma act धारा १३ : बाल-विवाहों को प्रतिषिध्द करने वाला व्यादेश जारी करने की न्यायालय की शक्ति :

बालविवाह प्रतिषेध अधिनियम २००६
धारा १३ :
बाल-विवाहों को प्रतिषिध्द करने वाला व्यादेश जारी करने की न्यायालय की शक्ति :
१) इस अधिनियम में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, यदि प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट का बाल-विवाह प्रतिषेध अधिकारी के आवेदन पर, या किसी व्यक्ति से परिवाद के माध्यम से या अन्यथा सूचना प्राप्त होने पर यह समाधान हो जाता है कि इस अधिनियम के उल्लंघन में बाल-विवाह तय किया गया है या उसका अनुष्ठान किया जाने वाला है, तो ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे किसी व्यक्ति के, जिसके अंतर्गत किसी संगठन का सदस्य या कोई व्यक्ति संगम भी है, विरूध्द ऐसे विवाह को प्रतिषिध्द करने वाला व्यादेश निकालेगा।
२)उपधारा (१) के अधीन कोई परिवाद, बाल-विवाह या बाल-विवाहों का अनुष्ठापन होने की संभाव्यता से संबंधित व्यक्तिगत जानकारी या विश्वास का कारण रखने वाले किसी व्यक्ति द्वारा और युक्तियुक्त जानकारी रखने वाले किसी गैर-सरकारी संगठन द्वारा, किया जा सकेगा ।
३)प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी विश्वसनीय रिपोर्ट या सूचना के आधार पर स्वप्ररेणा से भी संज्ञान कर सकेगा ।
४)अक्षय तृतीया जैसे कृतिपय दिनों पर, सामुहिक बाल-विवाहों के अनुष्ठापन का निवारण करने के प्रयोजन के लिए, जिला मजिस्ट्रेट उन सभी शक्तियों के साथ, जो इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन बाल-विवाह प्रतिषेध अधिकारी को प्रदत्त हैं, बाल-विवाह प्रतिषेध अधिकारी समझा जाएगा ।
५) जिला मजिस्ट्रेट को बाल-विवाहों के अनुष्ठापन को रोकने या उनका निवारण करने की अतिरिक्त शक्तियां भी होगंी और इस प्रयोजन के लिए, वह सभी समुचित उपाय कर सकेगा और अपेक्षित न्यूनतम बल का प्रयोग कर सकेगा ।
६)उपधारा (१) के अधीन कोई व्यादेश किसी व्यक्ति या किसी संगठन के सदस्य या व्यक्ति संगम के विरूध्द तब तक नहीं निकाला जाएगा जब तक कि न्यायालय ने, यथास्थिति, ऐसे व्यक्ति, संगठन के सदस्यों या व्यक्ति संगम को पूर्व सूचना न दे दी हो और उसे / या उनको व्यादेश निकाले जाने के विरूध्द हेतुक दर्शित करने का अवसर न दे दिया हो :
परंतु किसी अत्यावश्यकता की दशा में, न्यायालय को, इस धारा के अधीन कोई सूचना दिए बिना, अंतरिम व्यादेश निकालने की शक्ति होगी ।
७)उपधारा (१) के अधीन जारी किए गए किसी व्यादेश की, ऐसे पक्षकार को, जिसके विरूध्द व्यादेश जारी किया जया था, सूचना देने और सुनने के पश्चात् पुष्टि की जा सकेगी या उसे निष्प्रभाव किया जा सकेगा ।
८)न्यायालय, उपधारा (१) के अधीन जारी किए गए किसी व्यादेश को या तो स्वप्रेरणा पर या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर विखण्डित या परिवर्तित कर सकेगा ।
९)जहां कोई आवेदन उपधारा (१) के अधीन प्राप्त होता है, वहां न्यायालय आवेदक को, या तो स्वयं या अधिवक्ता द्वारा, अपने समक्ष उपस्थित होने का शीघ्र अवसर देगा, और यदि न्यायालय आवेदक का सुनने के पश्चात् आवेदन को पूर्णत: या भागत: नामंजूर करता है तो वह ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबध्द करेगा ।
१०)जो कोई, यह जानते हुए कि उसके विरूध्द उपधारा (१) के अधीन व्यादेश जारी किया गया है, उस व्यादेश की अवज्ञा करेगा, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी अथवा जूर्माने से, जो एक लाख रूपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनोें से, दंडनीय होगा :
परंतू कोई स्त्री कारावास से दंडनीय नहीं होगी ।

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