भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २२५ क :
१.(जिनके लिए अन्यथा उपबंध नहीं है, उन दशाओं में लोक सेवक द्वारा पकडने का लोप (त्रुटी) या निक भागना सहन करना :
(See section 264 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : उन दशाओं में जिनके लिए अन्यथा उपबंध नहीं है लोक सेवक को पकडने का लोप या निकल भागना सहन करना –
क) जब लोप या सहन कराना साशय है,
दण्ड :तीन वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : ख) जब लोप या सहन करना उपेक्षापूर्वक है ।
दण्ड :दो वर्ष के लिए सादा कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुऐ जो किसी व्यक्ती को पकडने या परिरोध में रखने के लिए लोक सेवक के नाते वैध रुप से आबद्ध (बंधा हुआ) हो उस व्यक्ती को किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा २२१, धारा २२२, या धारा २२३ अथवा किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में कोई उपबंध नहीं है, पकडने का लोप या परिरोध में से निकल भागना सहन करेगा –
क) यदि वह ऐसा साशय करेगा, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा; और
ख) यदि वह ऐसा उपेक्षापूर्वक करेगा तो वह सादा कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।)
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१. १८८६ के अधिनियम सं० १० की धारा २४(१) द्वारा धारा २२५क तथा २२५ख को धारा २२५क, जो १८७० के अधिनियम सं० २७ की धारा ९ द्वारा अन्त:स्थापित की गई थी, के स्थान पर प्रतिस्थापित ।