भारत का संविधान
अनुच्छेद १८९ :
सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति।
१) इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष या सभापति को अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोडकर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा।
अध्यक्ष या सभापति, अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमत: मत नहीं देगा, किंतु मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा ।
२)राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाही विधिमान्य होगी ।
१.(३) जब तक राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति दस सदस्य या सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग, इसमें से जो भी अधिक हो, होगी ।
४)यदि राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो अध्यक्ष या सभापति अथवा उस रूप में कार्यं करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है ।)
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१. संविधान (बयालींसवा संशोधन) अधिनियम १९७६ की धारा ३१ द्वारा कतिपय शब्दों को (तारीख अधिसूचित नहीं की गई) लोप कर दिया गया । इस संशोधन का संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम १९७८ की धारा ४५ द्वारा (२०-६-१९७९ से) लोप कर दिया गया ।
