भारत का संविधान
छठी अनुसूची :
(अनुच्छेद २४४(२) और अनुच्छेद २७५(१))
१.(असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों) के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में उपबंध :
२.(परिच्छेद १ :
स्वशासी जिले और स्वशासी प्रदेश :
१) इस पैरा के उपबंधों के अधीन रहते हुए, इस अनुसूची के पैरा २० से संलग्न सारणी के ३.(४.(भाग १, भाग २ और भाग २-क) की प्रत्येक मद के और भाग ३) के जनजाति क्षेत्रों का एक स्वशासी जिला होगा ।
२) यदि किसी स्वशासी जिले में भिन्न-भिन्न अनुसूचित जनजातियां हैं तो राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा, ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों को, जिनमें वे बसे हुए है, स्वशासी प्रदेशों में विभाजित कर सकेगा ।
३) राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा, –
क) उक्त सारणी के ३.(किसी भाग) में किसी क्षेत्र को सम्मिलित कर सकेगा;
ख) उक्त सारणी के ३.(किसी भाग) में किसी क्षेत्र को अपवर्जित कर सकेगा ;
ग) नया स्वशासी जिला बना सकेगा ;
घ) किसी स्वाशासी जिले का क्षेत्र बढा सकेगा ;
ङ) किसी स्वशासी जिले का क्षेत्र घटा सकेगा ;
च) दो या अधिक स्वशासी जिलों या उनके भागों को मिला सकेगा जिससे एक स्वशासी जिला बन सके ;
५.(चच) किसी स्वशासी जिले के नाम में परिवर्तन कर सेकगा;)
छ) किसी स्वशासी जिले की सीमाएं परिनिश्चित कर सकेगा :
परंतु राज्यपाल इस उप-पैरा के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) के अधीन कोई आदेश इस अनुसूची इस अनुसूची के पैरा १४ के उप-पैरा (१) के अधीन नियुक्त आयोग के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् की करेगा, अन्यथा नहीं :
६.(परंतु यह और कि राज्यपाल द्वारा इस उप-पैरा के अधीन किए गए आदेश में ऐसे आनुषंगिक और परिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत पैरा २० का और उक्त सारणी के किसी भाग की किसी मद का कोई संशोधन है) अंतर्विष्ट हो सकेंगे जो राज्यपाल को उस आदेश के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक प्रतीत हों ।
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१. मिजोरम राज्य अधिनियम १९८६ (१९८६ का ३४) की धारा ३९ द्वारा (२०-२-१९८७ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा आसाम में लागू होने के लिए पैरा १ में उप-पैरा (२) के पश्चात् निम्नलिखित परंतुक अंत:स्थापित कर संशोधित किया गया, अर्थात् :-
परन्तु इस उप-पैरा की कोई बात, बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिले को (७-९-२००३ से) लागू नहीं होगी ।
३. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ (एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) भाग क के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. संविधान (उनचासवां संशोधन) अधिनियम १९८४ की धारा ४ द्वारा (१-४-१९८५ से) भाग १ और भाग २ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) अंत:स्थापित ।
६. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ (एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) अंत:स्थापित ।
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१-२-३.(परिच्छेद २ :
जिला परिषदों और प्रादेशिक परिषदों का गठन :
४.(१) प्रत्येक स्वशासी जिले के लिए एक जिला परिषद् होगी जो तीस से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें से चार से अनधिक व्यक्ति राज्यपाल द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे और शेष वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित किए जाएंगे ।
२) इस अनुसूची के पैरा १ के उप-पैरा (२) के अधीन स्वशासी प्रदेश के रुप में गठित प्रत्येक क्षेत्र के लिए पृथक् प्रादेशिक परिषद् होगी ।
३) प्रत्येक जिला परिषद् और प्रत्येक प्रादेशिक परिषद् क्रमश: (जिले का नाम) की जिला परिषद् और (प्रदेश का नाम) की प्रादेशिक परिषद् नामक निगमित निकाय होगी, उसका शाश्वत उत्तराधिकार होगा और उसकी सामान्य मुद्रा होगी और उक्त नाम से वह वाद लाएगी और उस पर वाद लाया जाएगा ।
४) इस अनुसूची के उपबंधों के अधीन रहते हुए, स्वशासी जिले का प्रशासन ऐसे जिले की जिला परिषद में वहां तक निहित होगा जहां तक वह इस अनूसूची के अधीन ऐसे जिले के भीतर किसी प्रादेशिक परिषद् में निहित नहीं है और स्वशासी प्रदेश का प्रशासन ऐसे प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् में निहित होगा ।
५) प्रादेशिक परिषद् वाले स्वशासी जिले में प्रादेशिक परिषद् के प्राधिकारी के अधीन क्षेत्रों के संबंध में जिला परिषद् को, इस अनुसूची द्वारा ऐसे क्षेत्रों के संबंध में प्रदत्त शक्तियों के अतिरिक्त केवल ऐसी शक्तियां होंगी जो उसे प्रादेशिक परिषद् द्वारा प्रत्यायोजित की जाएं ।
६) राज्यपाल, संबंधित स्वशासी जिलों या प्रदेशों के भीतर विद्यमान जनजाति परिषदों या अन्य प्रतिनिधि जनजाति संगठनों से परामर्श करके, जिला परिषदों और प्रादेशिक परिषदों के प्रथम गठन के लिए नियम बनाएगा और ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध किए जाएंगे, अर्थात् :-
क) जिला परिषदों और प्रादेशिक परिषदों की संरचना तथा उनमें स्थानों का आबंटन ;
ख) उन परिषदों के लिए निर्वाचनों के प्रयोजन के लिए प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन ;
ग) ऐसे निर्वाचनों में मतदान के लिए अर्हताएं और उनके लिए निर्वाचक नामावलियों की तैयारी ;
घ) ऐसे निर्वाचनों में ऐसी परिषदों के सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं ;
ङ) ५.(प्रादेशिक परिषदों) के सदस्यों की पदावधि ;
च) ऐसी परिषदों के लिए निर्वाचन या नामनिर्देशन से संबंधित या संसक्त कोई अन्य विषय;
छ) जिला परिषदों और प्रादेशिक परिषदों की प्रक्रिया और उनका कार्य संचालन ६.(जिसके अंतर्गत किसी रिक्ति के होते हुए भी कार्य करने की शक्ति है);
ज) जिला और प्रादेशिक परिषदों के आधिकारियों और कर्मचारिवृंद की नियुक्ति ।
६.(६क) जिला परिषद के निर्वाचित सदस्य, यदि जिला परिषद् पैरा १६ के अधीन पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, परिषद् के लिए साधारण निर्वाचन के पश्चात् परिषद् के प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेंगे और नामनिर्देशित सदस्य राज्यपाल के प्रसादर्यंत पद धारण करेगा :
परंतु पांच वर्ष की उक्त अवधि को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब या यदि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान है जिनके कारण निर्वाचन कराना राज्यपाल की राय में असाध्य है तो, राज्यपाल ऐसी अवधि के लिए बढा सकेगा जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब उद्घोषणा के प्रवृत्त न रह जाने के पश्चात् किसी भी दशा में उसका विस्तार छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा :
परंतु यह और कि आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित सदस्य उस सदस्य की, जिसका स्थान वह लेता है, शेष पदावधि के लिए पद धारण करेगा ।)
७) जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् अपने प्रथम गठन के पश्चात् ६.(राज्यपाल के अनुमोदन से) इस पैरा के उप-पैरा (६) में विनिर्दिष्ट विषयों के लिए नियम बना सकेगी और ७.(वैसे ही अनुमोदन से) –
क) अधीनस्थ स्थानीय परिषदों या बोर्डों के बनाए जाने तथा उनकी प्रक्रिया और उनके कार्य संचालन का, और
ख) यथास्थिति, जिले या प्रदेश के प्रशासन विषयक कार्य करने से विनियमन करने वाले नियम भी , बना सकेगी :
परंतु जब तक जिला परिषद या प्रादेशिक परिषद् द्वारा इस उप-पैरा के अधीन नियम नहीं बनाए जाते हैं तब तक राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (६) के अधीन बनाए गए नियम, प्रत्येक ऐसी परिषद् के लिए निर्वाचनों, उसके अधिकारियों और कर्मचारियों तथा उसकी प्रक्रिया और उसके कार्य संचालन के संबंध में प्रभावी होंगे ।
८.(***)
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा आसाम में लागू होने के लिए पैरा २ में उप-पैरा (१) के पश्चात् निम्नलिखित परंतुक अंत:स्थापित किया गया, अर्थात् :-
परंतु यह कि बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद् छियालीस से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें से चालीस सदस्यों को वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित किया जाएगा, जिनमें से तीस अनुसूचित जनजातियों के लिए, पांच गैर जनजातीय समुदायों के लिए, पांच सभी समुदायों के लिए आरक्षित होंगे तथा शेष छह राज्यपाल द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे जिनके अधिकार और विशेषाधिकार, जिनके अंतर्गत मत देने के अधिकार भी है, वही होंगे जो अन्य सदस्यों के हैं, बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिले के उन समुदायों में से, जिनका प्रतिनिधित्व नहीं है, कम से कम दो महिलाएं होंगी : ।
२. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९९५ (१९९५ का ४२) की धारा २ द्वारा आसाम में लागू होने के लिए पैरा २ में उप-पैरा (३) के पश्चात् निम्नलिखित परंतुक अंत:स्थापित किया गया, अर्थात् :-
परंतु उतरी कछार पहाडी जिले के लिए गठित जिला परिषद्, उतरी कछार पहाडी स्वशासी परिषद् कहलाएगी और कार्बी आंगलांग जिले के लिए गठित जिला परिषद्, उत्तरी कछार पहाडी स्वशासी परिषद कहलाएगी ।;
३. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा आसाम में लागू होने के लिए पैरा २ के उप-पैरा (३) में परन्तुक के पश्चात् निम्नलिखित परंतुक अंत:स्थापित किया गया, अर्थात् :-
परंतु यह और कि बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिले के लिए गठित जिला परिषद् बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद् कहलाएगी ।
४. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) उप-पैरा (१) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनिय म१९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) ऐसी परिषदों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
६. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) अंत:स्थापित ।
७. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) अंत:स्थापित ।
८. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) द्वितीय परन्तुक का लोप किया गया ।
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१-२-३.( परिच्छेद ३ :
विधि बनाने की जिला परिषदों और प्रादेशिक परिषदों की शक्ति :
१) स्वशासी प्रदेश की प्रादेशिक को ऐसे प्रदेश के भीतर के सभी क्षेत्रों के संबंध में और स्वशासी जिले की जिला परिषद् को ऐसे क्षेत्रों को छोडकर जो उस जिले के भीतर की प्रादेशिक परिषदों के, यदि कोई हों, प्राधिकार के अधीन हैं, उस जिले के भीतर के अन्य सभी क्षेत्रों के संबंध में निम्नलिखित विषयों के लिए विधि बनाने की शक्ति होगी, अर्थात् :-
क) किसी आरक्षित वन की भूमि से भिन्न अन्य भूमि का, कृषि या चराई के प्रयोजनों के लिए अथवा निवास के या कृषि से भिन्न अन्य प्रयोजनों के लिए अथवा किसी ऐसे अन्य प्रयोजन के लिए जिससे किसी ग्राम या नगर के निवासियों के हितों की अभिवृद्धि संभाव्य है, आंबटन, अधिभोग या उपयोग अथवा अलग रखा जाना :
परंतु ऐसी विधियों की कोई बात ४.(संंबंधित राज्की की सरकार को) अनिवार्य अर्जन प्राधिकृत करने वाली तत्समय प्रवृत्त विधि के अनुसार किसी भूमि का, चाहे वह अधिभोग में हो या नहीं, लोक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य अर्जन करने से निवारित नहीं करेगी;
ख) किसी ऐसे वन का प्रबंध जो आरक्षित वन नहीं है ;
ग) कृषि के प्रयोजन के लिए किसी नहर या जलसरणी का उपयोग ;
घ) झूम की पद्धति का या परिवर्ती खेती की अन्य पद्धतियों का विनियमन ;
ङ) ग्राम या नगर समितियों या परिषदों की स्थापना और उनकी शक्तियां ;
च) ग्राम या नगर प्रशासन से संबंधित कोई अन्य विषय जिसके अंतर्गत ग्राम या नगर पुलिस और लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता है ;
छ) प्रमुखों या मुखियों की नियुक्ति या उत्तराधिकार ;
ज) संपत्ति की विरासत ;
५.(झ) विवाह और विवाह-विच्छेद 😉
२) इस पैरा में, आरक्षित वन से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो असम वन विनियिम १८९१ के अधीन या प्रश्नग्रत क्षेत्र में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन आरक्षित वन है ।
३) इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी विधियां राज्यपाल के समक्ष तुरन्त प्रस्तुत की जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुमति नहीं दे देता है तब तक प्रभावी नहीं होंगी ।
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा (७-९-२००३ से) पैरा ३ आसाम राज्य को लागू करने में निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया जिससे उप-पैरा (३) निम्नलिखित रुप से प्रतिस्थापित हो सके, अर्थात् :-
परिच्छेद ३ :
पैरा ३क के उप-पैरा (२) या पैरा ३ख के उप-पैरा (२) में जैसा अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय इस पैरा या पैरा ३क के उप-पैरा (१) या पैरा ३ख के उप-पैरा (१) के अधीन बनाई गई सभी विधियां राज्यपाल के समक्ष तुरन्त प्रस्तुत की जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुमति नहीं दे देता है तब तक प्रभावी नहीं होगी ।
२. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९९५ (१९९५ का ४२) की धारा २ द्वारा आसाम राज्य को लागू होने के लिए पैरा ३ के पश्चात् अंत:स्थापित किया गया, अर्थात् :-
(परिच्छेद ३क :
उत्तरी कछार पहाडक्ष स्वशासी परिषद और कार्बी आंगलांग स्वशासी परिषद की विधि बनाने की अतिरिक्त शक्तियां :
१) पैरा ३ के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उतरी कछार पहाडी स्वशासी परिषद् और कार्बी आंगलांग स्वशासी परिषद् को, संबंधित जिलों के भीतर निम्नलिखित की बाबत विधियां बनाने की शक्ति होगी , अर्थात् :-
क) सातीव अनुसूची की सूची १ की प्रविष्टि ७ और प्रविष्टि ५२ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उद्योग;
ख) संचार, अर्थात्, सडकें, पुल, फेरी और अन्य संचार साधन, जो सातवी अनुसूची की सूची १ में विनिर्दिष्ट नहीं है, नगरपलिक ट्राम, रज्जुमार्ग, अंतर्देशीय जलमार्गो के संबंध में सातवीं अनुसूची की सूची १ और सूची ३ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अंतर्देशीय जलमार्ग और उन पर यातायात, यंत्र नोंदित यानों से भिन्न यान;
ग) पशुधन का परिरक्षण, संरक्षण और सुधारा तथा जवीजंतुओं के रोगों का निवारण, पशु चिकित्सा प्रशिक्षण और व्यवसाय, कांजी हाऊस;
घ) प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा ;
ङ) कृषि जिसके अंतर्गत कृषि शिक्षा और अनुसंधान, नाशक जीवों से संरक्षण और पादप रोगों का निवारण है ;
च) मत्स्य उद्योग ;
छ) सातवीं अनुसूची की सूची १ की प्रविष्टि ५६ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जल, अर्थात्, जल प्रदाय, सिंचाई और नहरें, जल निकासी और तटबंध, जल भंडारण और जल शक्ति ;
ज) सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा; नियोजन और बेकारी;
झ) ग्रामों, धान के खेतों, बाजारों, शहरों आदि के संरक्षण के लिए बाढ नियंत्रण स्कीमें (जो तकनीकी प्रकृति की न हों);
ञ) नाट्यशाला और नाट्य प्रदर्शन ; सातवी अनुसूची की सूची १ की प्रविष्टि ६० के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सिनेमा, खेल-कूद, मनोरंजन और आमोद ;
ट) लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय ;
ठ) लघु सिंचाई ;
ड) खाद्य पदार्थ, पशुओं के चारे, कच्ची कपास और कच्चे जूट का व्यापार और वाणिज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और वितरण ;
ढ) राज्य द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित पुस्तकालय, संग्रहालय और वैसी ही अन्य संस्थाएं संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन राष्ट्रीय महत्व के घोषित किए गए प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारकों और अभिलेखों से भिन्न प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारक और अभिलेख ; और
ण) भूमि का अन्य संक्रामण ।
२) पैरा ३ के अधीन या इस पैरा के अधीन उत्तरी कछार पहाडी स्वशासी परिषद् और कार्बी आंगलांग स्वशासी परिषद् द्वारा बनाई गई सभी विधियां, जहां तक उनका संबंध सातवीं अनुसूची की सूची ३ में विनिर्दिष्ट विषयों से है, राज्यपाल के समक्ष तुरन्त प्रस्तुत की जाएंगी, जो उन्हें राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखेगा ।
३) जब कोई विधि राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख ली जाती है तब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह उक्त विधि पर अनुमति देता है या अनुमति रोग लेता है :
परंतु राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निदेश दे सकेगा कि वह विधि को, यथास्थिति, उत्तरी कछार पहाडी स्वशासी परिषद् या कार्बी आंगलांग स्वशासी परिषद् को ऐसे संदेश के साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे कि उक्त परिषद् विधि या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करे और विशिष्टतया, किन्हीं ऐसे संशोधनों पर पुर:स्थापन की वांछनीयता पर विचार करे जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधि इस प्रकार लौटा दी जाती है तब ऐसा संदेश मिलने की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर परिषद् ऐसी विधि पर तदनुसार विचार करेगी और यदि विधि उक्त परिषद् द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दी जाती है तो उसे राष्ट्रपती के समक्ष उसके विचार के लिए फिर से प्रस्तुत किया जाएगा ।)
३. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ की धारा २ द्वारा पैरा ३क के पश्चात् क्रमश: निम्नलिखित अंत:स्थापित किया गया, अर्थात् :-
(परिच्छेद ३ख :
बोडोलँड प्रादेशिक परिषद् की विधियां बनाने की अतिरिक्त शक्तियां :
१) पैरा ३ के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बोडोलँड प्रादेशिक परिषद् को, अपने क्षेत्रों में, निम्नलिखित के संबंध में विधियां बनाने की शक्ति होगी, अर्थात् :-
एक) कृषि, जिसके अंतर्गत कृषि शिक्षा और अनुसंधान, नाशक जीवों से संरक्षण और पादप रोगों का निवारण है ;
दो) पशुपालन और पशु चिकित्सा अर्थात् पशुधन का परिरक्षण, संरक्षण और सुधार तथा जीव जंतुओं के रोगों का निवारण, पशु चिकित्सा प्रशिक्षण और व्यवसाय, कांजी हाऊस ;
तीन) सहकारिता ;
चार) सांस्कृतिक कार्य ;
पांच) शिक्षा अर्थात् प्राइमरी शिक्षा, उच्चतर माध्यमिक शिक्षा जिसमें वृत्तिक प्रशिक्षण, पौढ शिक्षा, महाविद्यालय शिक्षा (साधारण) भी है ; छह) मत्स्य उद्दोग ;
सात) ग्राम, धान के खेतों, बाजारों और शहरों के संरक्षण के लिए बाढ नियंत्रण (जो तकनीकी प्रकृति का न हो) ;
आठ) खाद्य और सिविल आपूर्ति ;
नौ) वन (आरक्षित वनों को छोडकर) ;
दस) हथकरघा और वस्त्र ;
ग्यारह) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण ;
बारह) सातवीं अनुसूची की सूची १ की प्रविष्टि ८४ के उपबंधों के अधीन रहते हुए मादक लिकर, अफीम और व्युत्पन्न ;
तेरह) सिंचाई ;
चौदह) श्रम और रोजगार ;
पंद्रह) भूमि और राजस्व ;
सोलह) पुस्तकालय सेवाएं (राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित और नियंत्रित) ;
सत्रह) लाटरी (सातवीं अनुसूची की सूची १ की प्रविष्टि ४० के उपबंधों के अधीन रहते हुए), नाट्यशाला, नाट्य प्रदर्शन और सिनेमा (सातवीं अनुसूची की सूची १ की प्रविष्टि ६० के उपबंधों के अधीन रहते हुए);
अठारह) बाजार और मेले ;
उन्नीस) नगर निगम, सुधार न्यास, जिला बोर्ड और अन्य स्थानीय प्राधिकारी;
बीस) राज्य द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित संग्रहालय और पुरातत्व विज्ञान संस्थान, संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके राष्ट्रीय महत्व के घोषित किए गए प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारकों और अभिलेखों से भिन्न, प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारक और अभिलेख ;
इक्कीस) पंचायत और ग्रामीण विकास;
बाईस) योजना और विकास;
तेईस) मुद्रण और लेखन सामग्री;
चौबीस) लोक स्वास्थ्य इंजीनियरी ;
पच्चीस) लोक निर्माण विभाग;
छब्बीस) प्रचार और लोक संपर्क;
सत्ताईस) जन्म और मृत्यु का रजिस्ट्रीकरण ;
अट्ठाइस) सहायता और पुनर्वास;
उनतीस) रेशम उत्पादन ;
तीस) सातवीं अनुसूची की सूची १ की प्रविष्टि ७ और प्रविष्टि ५२ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लघु, कुटीर और ग्रामीण उद्दोग ;
इकत्तीस) समाज कल्याण ;
बत्तीस) मृदा संरक्षण ;
तैंतीस) खेलकूद और युवा कल्याण ;
चौंतीस) सांख्यिकी ;
पैंतीस) पर्यटन ;
छत्तीस) परिवहन (सडकें, पूल, फेरी और अन्य संचार साधन, जो सातवीं अनुसूची की सूची १ में विनिर्दिष्ट नहीं है, नगरपलिका ट्राम, रज्जूमार्ग, अन्तर्देशीय जलमार्गों के संबंध में सातवीं अनुसूची की सूची १ और सूची ३ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अन्तर्देशीय जलमार्ग और उन पर यातायात, यंत्र नोदित यानों से भिन्न यान);
सैंतीस) राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित और वित्तपोषित जनजाति अनुसंधान संस्थान ;
अडतीस) शहरी विकास-नगर और ग्रामीण योजना);
उनतालीस) सातवीं अनुसूची की सूची १ की प्रविष्टि ५० के उपबंधों के अधीन रहते हुए बाट और माप ; और
चालीस) मैदानी जनजातियों और पिछडे वर्गों का कल्याण :
परंतु ऐसी विधियों की कोई बात, –
क) इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख पर किसी नागरिक के उसकी भूमि के संबंध में विद्यमान अधिकारों और विशेषाधिकारों को समाप्त या उपांतरित नहीं करेगी ; और
ख) किसी नागरिक को विरासत, आबंटन, व्यवस्थापन के रुप में या अंतरण की किसी अन्य रीति से भूमि अर्जित करने से अनुज्ञात नहीं करेगी यदि ऐसा नागरिक बोडोलँड प्रादेशिक क्षेत्र जिले के भीतर भूमि के ऐसे अर्जन के लिए अन्यथा पात्र है ।
२) पैरा ३ के अधीन या इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी विधियां, जहां तक उनका संबंध सातवीं अनुसूची की सूची ३ में विनिर्दिष्ट विषयों से है, राज्यपाल से समक्ष तुरन्त प्रस्तुत की जाएंगी जो उन्हें राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखेगा ।
३) जब कोई विधि राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख ली जाती है, तब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह उक्त विधि पर अनुमति देताहै या अनुमति रोक लेता है :
परंतु राष्ट्रपति राज्यपाल को यह संदेश से सकेगा कि वह विधि को, बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद् को ऐसे संदेश के साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे कि उक्त परिषद् विधि या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करे और विशिष्टतया, किन्हीं ऐसे संशोधनों को पुर:स्थापित करने की वांछनीयता पर विचार करे जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधि इस प्रकार लौटा दी जाती है तब उक्त परिषद्, ऐसे संदेश की प्राप्ति की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर ऐसी विधि पर तदनुसार विचार करेगी और यदि विधि उक्त परिषद् द्वारा, संशोधन सहित उसके बिना, फिर से पारित कर दी जाती है तो उसे राष्ट्रपति के समक्ष उसके विचार के लिए फिर से प्रस्तुत किया जाएगा ।)
४. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१(एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) खंड झ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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१.(परिच्छेद ४ :
स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों में न्याय प्रशासन :
१) स्वशासी प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् ऐसे प्रदेश के भीतर के क्षेत्रों के संबंध में और स्वशासी जिले की जिला परिषद् ऐसे क्षेत्रों से भिन्न जो उस जिले के भीतर की प्रादेशिक परिषदों के, यदि कोई हों, प्राधिकार के अधीन है, उस जिले के भीतर के अन्य क्षेत्रों के संबंध में, ऐसे वादों और मामलों के विचारण के लिए जो ऐसे पक्षकारों के बीच हैं जिनमें से सभी पक्षकार ऐसे क्षेत्रों के भीतर की अनुसूचित जनजातियों के हैं तथा जो उन वादों और मामलों से भिन्न हैं जिनको इस अनुसूची के पैरा ५ के उप-पैरा (१) के उपबंध लागू होते हैं, उस राज्य के किसी न्यायालय का अपवर्जन करके ग्राम परिषदों या न्यायालयों का गठन कर सकेगी और उपयुक्त व्यक्तियों को ऐसी ग्राम परिषद के सदस्य या ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी नियुक्त कर सकेगी और ऐसे अधिकारी भी नियुक्त कर सकेगी जो इस अनुसूची के पैरा ३ के अधीन बनाई गई विधियों के प्रशासन के लिए आवश्यक हों ।
२) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, स्वशासी प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् या उस प्रादेशिक परिषद् द्वारा इस निमित्त गठित कोई न्यायालय या यदि किसी स्वशासी जिले के भीतर के किसी क्षेत्र के लिए कोई प्रादेशिक परिषद् नहीं है तो, ऐसे जिले की जिला परिषद् या उस जिला परिषद् द्वारा इस निमित्त गठित कोई न्यायालय ऐसे पैरा के उप-पैरा (१) के अधीन गठित किसी ग्राम परिषद् या न्यायालय द्वारा विचारणीय हैं तथा जो उन वादों और मामलों से भिन्न हैं जिनको इस अनुसूची के पैरा ५ के उप-पैरा (१) के उपबंध लागू होते हैं अपील न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग करेगा तथा उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय से भिन्न किसी अन्य न्यायालय को ऐसे वादों या मामलों में अधिकारिता नहीं होगी ।
३) उच्च न्यायालय २.(***) को, उन वादों और मामलों में जिनको इस पैरा के उप-पैरा (२) के उपबंध लागू होते हैं, ऐसी अधिकारिता होगी और वह उसका प्रयोग करेगा जो राज्यपाल समय-समय पर आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे ।
४) यथास्थिति, प्रादेशिक परिषद् या जिला परिषद् राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से निम्नलिखित के विनियमन के लिए नियम बना सकेगी, अर्थात् :-
क) ग्राम परिषदों और न्यायालयों का गठन और इस पैरा के अधीन उनके द्वारा प्रयोक्तव्य शक्तियां ;
ख) इस पैरा के उप-पैरा (१) के अधीन वादों और मामलों के विचारण में ग्राम परिषदों या न्यायालयों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ;
ग) इस पैरा के उप-पैरा (२) के अधीन अपीलों और अन्य कार्यवाहियों में प्रादेशिक परिषद या जिला परिषद् अथवा ऐसी परिषद् द्वारा गठित किसी न्यायालय द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ;
घ) ऐसी परिषदों और न्यायालयों के विनिश्चयों और आदेशों का प्रवर्तन ;
ङ) इस पैरा के उप-पैरा (१) और उप-पैरा (२) के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए अन्य सभी आनुषंगिक विषय ।
३.(५) उस तारीख को और से जो राष्ट्रपति ४.(संबंधित राज्य की सरकार से परामर्श करने के पश्चात) अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त नियत करे, यह पैरा ऐसे स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश के संबंध में, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, इस प्रकार प्रभावी होगी मानो –
एक) उप-पैरा (१) में, जो ऐसे पक्षकारों के बीच हैं जिनमें से सभी पक्षकार ऐसे क्षेत्रों के भीतर की अनुसूचित जनजातियों के हैं तथा जो उन वादों और मामलों से भिन्न हैं जिनको इस अनुसची के पैरा ५ के उप-पैरा (१) के उपबंध लागू होते हैं, शब्दों के स्थान पर, जो इस अनुसूची के पैरा ५ के उप-पैरा (१) में निर्दिष्ट प्रकृति के ऐसे वाद और मामले नहीं है जिन्हें राज्यपाल इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे,
दो) उप-पैरा (२) और उप-पैरा (३) का लोप कर दिया गया हो ;
तीन) उप-पैरा (४) में –
क) यथास्थिति, प्रादेशिक परिषद् या जिला परिषद्, राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से, निम्नलिखित के विनियमन के लिए नियम बना सकेगी, अर्थात् :- शब्दों के स्थान पर, राज्यपाल निम्नलिखित के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा, अर्थात् :- शब्द रख दिए गए हों ; और
ख) खंड (क) के स्थान पर, निम्नलिखित खंड रख दिया गया हो, अर्थात् :-
क) ग्राम परिषदों और न्यायालयोें का गठन, इस पैरा के अधीन उनके द्वारा प्रयोक्तव्य शक्तियों और वे न्यायालय जिनको ग्राम परिषदों और न्यायालयों के विनिश्चयों से अपीलें हो सकेंगी ;
ग) खंड (ग) के स्थान पर, निम्नलिखित खंड रख दिया गया हो, अर्थात् :-
ग) प्रादेशिक परिषद् या जिला परिषद् अथवा ऐसी परिषद् द्वारा गठित किसी न्यायालय के समक्ष उप-पैरा (५) के अधीन राष्ट्रपति द्वारा नियत तारीख से ठीक पहले लंबित अपीलों और अन्य कार्यवाहियों का अंतरण ; और
घ) खंड (ड) में उप-पैरा (१) और उप-पैरा (२) शब्दों, कोष्ठकों और अंको के स्थान पर, उप-पैरा (१) शब्द, कोष्ठक और अंक रख दिए गए हों ।)
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा (७-९-२००३ से) पैरा ४ आसाम राज्य को लागू करने में निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया जिससे उप-पैरा (५) के पश्चात् निम्नलिखित अंत:स्थापित किया जा सके, अर्थात् :-
६) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा २ के उप-पैरा (३) के परंतुक के अधीन गठित बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद् को लागू नहीं होगी ।
२. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१(एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) आसाम के शब्दों का लोप कियाग गया ।
३. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूचीद्वारा (२-४-१९७० से) अंत:स्थापित ।
४. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ (एक) आरै आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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परिच्छद ५ :
कुछ वादों, मामलों और अपराधों के विचारण के लिए प्रादेशिक परिषदों और जिला परिषदों को तथा किन्हीं न्यायालयों और अधिकारियों को सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ और दंड प्रक्रिया संहिता १८९८ (दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ (१९७४ का २)) के अधीन शक्तियों का प्रदान किया जाना :
१) राज्यपाल, किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश में किसी ऐसी प्रवृत्त विधि से, जो ऐसी विधि है जिसे राज्यपाल इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, उद्भूत वादों या मामलों के विचारण के लिए अथवा भारतीय दंड संहिता के अधीन या ऐसे जिले या प्रदेश में तत्समय लागू किसी अन्य विधि के अधीन मृत्यु से, आजीवन निर्वासन से या पांच वर्ष से अन्यून अवधि के लिए कारावास से दंडनीय अपराधां के विचारण के लिए, ऐसे जिले या प्रदेश प्राधिकार रखने वाली जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् को अथवा ऐसी जिले या प्रदेश पर प्राधिकार रखने वाली जिला परिषद् या प्रादेशिक को अथवा ऐसी जिला परिषद् द्वारा गठित न्यायालयों को अथवा राज्यपाल द्वारा इस निमित्त किसी अधिकारी को, यथास्थिति, सिविल प्रकिया संहिता, १९०८ या दंड प्रक्रिया संहिता १८९८ (१९७३ (१९७४ का २) के अधीन ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकेगा जो वह समुचित समझे और तब उक्त परिषद्, न्यायालय या अधिकारी इस प्रकार प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करदे हुए वादों,मामलों या अपराधों का विचारण करेगा ।
२) राज्यपाल, इस पैरा के उप-पैरा (१) के अधीन किसी जिला परिषद्, प्रादेशिक परिषद्, न्यायालय या अधिकारी को प्रदत्त शक्तियों में से किसी शक्ति को वापस ले सकेगा या उपांतरित कर सकेगा ।
३) इस पैरा में अभिव्यक्त रुप से यथा उपबंधित के सिवाय, सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ और दंड प्रक्रिया संहिता १९८९(१९७३ (१९७४ का २) किसी स्वशासी जिले में या किसी स्वशासी प्रदेश में, जिसको इस पैरा के उपबंध लागू होते हैं, किन्हीं वादों, मामलों या अपराधों के विचारण को लागू नहीं होगी ।
१.(४) राष्ट्रपति द्वारा किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश के संबंध में पैरा ४ के उप-पैरा (५) के अधीन नियत तारीख को और से, उस जिले या प्रदेश को लागू होने में इस पैरा की किसी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह किसी जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् को या जिला परिषद् द्वारा गठित न्यायालयों को इस पैरा के उप-पैरा (१) में निर्दिष्ट शक्तियों में से कोई शक्ति प्रदान करने के लिए राज्यपाल को प्राधिकृत करती है ।)
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१. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) अंत:स्थापित ।
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१.(परिच्छेद ६ :
प्राथमिक विद्यालय, आदि स्थापित करने की जिला परिषद् की शक्ति :
१) स्वशासी जिले की जिला परिषद् जिले में प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाजारों, २.(कांजी हाउसों,) फेरी, मीनक्षेत्रों, सडकों, सडक परिवहन और जलमार्गों की स्थापना, निर्माण और प्रबंध कर सकेगी तथा राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से, उनके विनियमन और नियंत्रण के लिए विनियम बना सकेगी और, विशिष्टतया, वह भाषा और वह रीति विहित कर सकेगी, जिससे जिले के प्राथमिक विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा दी जाएगी ।
२) राज्यपाल, जिला परिषद् की सहमति से उस परिषद् को या उसके अधिकारियों को कृषि, पशुपालन, सामुदायिक परियोजनाओं, सहकारी सोसायटियों, समाज कल्याण, ग्राम योजना या किसी अन्य ऐसे विषय के संबंध में, जिस पर ३.(***) राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, कृत्य सशर्त या बिना शर्त सौंप सकेगा ।)
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१. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) पैरा ६ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. निरसन और संशोधन अधिनियम १९७४ (१९७४ का ५६) की धारा ४ द्वारा कांजी हाउस के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१(एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) यथास्थिति, आसाम या मेघालय शब्दों का लोप किया गया ।
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परिच्छेद ७ :
जिला और प्रादेशिक निधियां :
१) प्रत्येक स्वशासी जिले के लिए एक जिला निधि और प्रत्येक स्वशासी प्रदेश के लिए एक प्रादेशिक निधि गठित की जाएगी जिसमें क्रमश: उस जिले की जिला परिषद् द्वारा और उस प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् द्वारा इस संविधान के उपबंधों के अनुसार, यथास्थिति, उस जिले या प्रदेश के प्रशासन के अनुक्रम में प्राप्त सभी धनराशियां जमा की जाएंगी ।
१.(२) राज्यपाल, यथास्थिति,जिला निधि या प्रादेशिक निधि के प्रबंध के लिए और उक्त निधि में धन जमा करने, उसमें से धनराशियां निकालने, उसके धन की अभिरक्षा और पूर्वोक्त विषयों से संबंधित या आनुषंगिक किसी अन्य विषय के संबंध में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के लिए नियम बना सकेगा ।
३) यथास्थिति, जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् के लेखे ऐसे प्ररुप में रखे जाएंगे जो भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक राष्ट्रपति के अनुमोदन से, विहित करे ।
४) नियंत्रक-महालेखापरिक्षक जिला परिषदों और प्रादेशिक परिषदों के लेखाओं की संपरीक्षा ऐसी रीति से कराएगा जो वह ठीक समझे और नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के ऐसे लेखाओं से संबंधित प्रतिवेदन राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे जो उन्हें परिषद् के समक्ष रखवाएगा ।
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१. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) उप-पैरा (२) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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परिच्छेद ८ :
भू-राजस्व का निर्धारण और संग्रहण करने तथा कर का अधिरोपण करने की शक्तियां :
१) स्वशासी प्रदेश के भीतर की सभी भूमियों के संबंध में ऐसे प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् को और यदि जिले में कोई प्रादेशिक परिषद् हैं तो उनके प्राधिकार के अधीन आने वाले क्षेत्रों में स्थित भूमियों को छोडकर जिले के भीतर की सभी भूमियों के संबंध में स्वशासी जिले की जिला परिषद् को ऐसी भूमियों की बाबत, उन सिद्धांतों के अनुसार राजस्व का निर्धारर और संग्रहण करने की शक्ति होगी, जिनका १.(साधारणतया राज्य में भू-राजस्व के प्रयोजन के लिए भूमि के निर्धारण में राज्य की सरकार द्वारा तत्समय अनुसरण किया जाता है ।)
२) स्वशासी प्रदेश के भीतर के क्षेत्रों के संबंध में ऐसे प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् को और यदि जिले में कोर्स प्रादेशिक परिषद् हैं तो उनके प्राधिकार के अधीन आने वाले क्षेत्रों को छोडकर जिले के भीतर के सभी क्षेत्रों के संबंध मं स्वशासी जिले की जिला परिषद् को, भूमि और भवनों पर करों का तथा ऐसे क्षेत्रों में निवासी व्यक्तियों पर पथकर का उद्ग्रहण और संग्रहण करने की शक्ति होगी ।
३) स्वशासी जिले की जिला परिषद् को ऐसे जिले के भीतर निम्नलिखित सभी या किन्हीं करों का उद्ग्रहण और संग्रहण करन की शक्ति होगी, अर्थात् :-
क) वृत्ति, व्यापार, आजीविका और नियोजन पर कर ;
ख) जीवजंतुओं, यानों और नौकाओं पर कर ;
ग) किसी बाजार में विक्रय के लिए माल के प्रवेश पर कर और फेरी से ले जाए जाने वाले यात्रियों और माल पर पथकर ; २.(***)
घ) विद्यालयों, औषधालयों या सडकों को बनाए रखने के लिए कर ; ३.(और )
४.(ङ) मनोरंजन और आमोद-प्रमोद पर कर १)
४) इस पैरा के उप-पैरा (२) और उप-पैरा (३) में विनिर्दिष्ट करों में से किसी कर के उद्ग्रहण और संग्रहण का उपबंध करने के लिए, यथास्थिति, प्रादेशिक परिषद् या जिला परिषद् विनियम बना सकेगी ५.(और ऐसा प्रत्येक विनियम राज्यपाल के समक्ष तुरन्त प्रस्तुत किया जाएगा और जब तक वह उस पर अनुमति नहीं दे देता है तब तक उसका कोई प्रभाव नहीं होगा ।)
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१. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ (एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम २०१६ की धारा १६ (एक) द्वारा (१६-९-२०१६ से) लोप किया गया ।
३. संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम २०१६ की धारा १६ (दो) द्वारा (१६-९-२०१६ से) अंत:स्थापित ।
४. संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम २०१६ की धारा १६ (तीन) द्वारा (१६-९-२०१६ से) अंत:स्थापित ।
५.आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) अंत: स्थापित ।
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१.(परिच्छेद ९ :
खनिजों के पूर्वेक्षण या निष्कर्षण के प्रयोजन के लिए अनुज्ञप्तियां या पट्टे :
१) किसी स्वशासी जिले के भीतर के किसी क्षेत्र के संबंध में २.(राज्य की सरकार) द्वारा खनिजों के पूर्वेक्षण या निष्कर्षण के प्रयोजन के लिए दी गई अनुज्ञप्तियों या पट्टों से प्रत्येक वर्ष प्रोद्भूत होने वाले स्वामित्व का ऐसा अंश, जिला परिषद को दिया जाएगा जो उस २.(राज्य की सरकार) और ऐसे जिले की जिला परिषद् के बीच करार पाया जाए ।
२) यदि जिला परिषद् को दिए जाने वाले ऐसे स्वामिस्व के अंश के बारे में कोई विवाद उत्पन्न होता है ता वह राज्यपाल को अवधारण के लिए निर्देशित किया जाएगा और राज्यपाल द्वारा अपने विवेक के अनुसार अवधारित रकम इस पैरा के उप-पैरा (१) के अधीन जिला परिषद् को संदेय रकम समझी जाएगी और राज्यपाल का विनिश्चय अंतिम होगा ।
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९८८ (१९८८ का ६७) की धारा २ द्वारा पैरा ९ त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों को लागू करने में निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया जिससे उप-पैरा (२) के पश्चात् निम्नलिखित उप-पैरा अंत:स्थापित किया जा सके, अर्थात् :-
(३) राज्यपाल, आदेश द्वारा, यह निदेश दे सकेगा कि इस पैरा के अधीन जिला परिषद् को दिया जाने वाला स्वामिस्व का अंश उस परिषद् को, यथास्थिति, उप-पैरा (१) के अधीन किसी करार या उप-पैरा (२) के अधीन किसी अवधारण की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर किया जाएगा ।
२. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१(एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) आसाम सरकार के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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१.(परिच्छेद १० :
जनजातियों से भिन्न व्यक्तियों की साहूकारी और व्यापार के नियंत्रण के लिए विनियम बनाने की जिला परिषद् की शक्ति :
१) स्वशासी जिले की जिला परिषद् उस जिले में निवासी जनजातियों से भिन्न व्यक्तियों की उस जिले के भीतर साहूकारी या व्यापार के विनियमन और नियंत्रण के लिए विनियम बना सकेगी ।
२) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियम-
क) विहित कर सकेंगे कि उस निमित्त दी गई अनुज्ञप्ति के धारक के अतिरिक्त और कोई साहूकारी का कारोबार नहीं करेगा ;
ख) साहूकार द्वारा प्रभारित या वसूल किए जाने वाले ब्याज की अधिकतम दर विहित कर सकेंगे ;
ग) साहूकारों द्वारा लेखे रखे जाने का और जिला परिषदों द्वारा इस निमित्त नियुक्त अधिकारियों द्वारा ऐसे लेखाओं के निरीक्षण का उपबंध कर सकेंगे ;
घ) विहित कर सकेंगे कि कोई व्यक्ति, जो जिले में निवासी अनुसूचित जनजातियों का सदस्य नहीं है, जिला परिषद् द्वारा इस निमित्त दी गई अनुज्ञप्ति के अधीन ही किसी वस्तु का थोक या फुटकर कारबार करेगा, अन्यथा नहीं :
परंतु इस पैरा के अधीन ऐसे विनियम तब तक नहीं बनाए जा सकेंगे जब तक वे जिला परिषद् की कुल सदस्य संख्या के कम से कम तीन चौथाई बहुमत द्वारा पारित नहीं कर दिए जाते हैं :
परंतु यह और कि ऐसे किन्हीं विनियमों के अधीन किसी ऐसे साहूकार या व्यापारी को जो ऐसे विनियमों के बनाए जाने के पहले से उस जिले के भीतर कारबार करता रहा है, अनुज्ञप्ति देने से इंकार करना सक्षम नहीं होगा ।
२.(३) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी विनियम राज्यपाल के समक्ष तुरन्त प्रस्तुत किए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमति नहीं दे देता है तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा ।)
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९८८ (१९८८ का ६७) की धारा २ द्वारा पैरा १० त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों को लागू करने में निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया :-
क) शीर्षक में से जनजातियों से भिन्न व्यक्तियों की शब्दों का लोप किया जाएगा ;
ख) उप-पैरा (१) में से जनजातियों से भिन्न शब्दों का लोप किया जाएगा ;
ग) उप-पैरा (२) में, खंड (घ) के स्थान पर, निम्नलिखित खंड रखा जाएगा, अर्थात् :-
घ) विहित कर सकेंगे कि कोई व्यक्ति, जो जिले में निवासी हैं जिला परिषद् द्वारा इस निमित्त दी गई अनुज्ञप्ति के अधीन कोई थोक या फुटकर व्यापार करेगा अन्यथा नहीं ।
२. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा पैरा १० आसाम राज्य को लागू करने में निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया जिसमें उप-पैरा (३) के पश्चात् निम्नलिखित अंत:स्थापित किया गया :-
(४) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा २ के उप-पैरा (३) के परन्तुक के अधीन गठित बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद् को लागू नहीं होगी ।
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परिच्छेद ११ :
अनुसूची के अधीन बनाई गई विधियों, नियमों और विनियमों का प्रकाशन :
जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् द्वारा इस अनुसूची के अधीन बनाई गई सभी विधियां, नियम और विनियम राज्य के राजपत्र में तुरन्त प्रकाशित किए जाएंगे और ऐसे प्रकाशन पर विधि का बल रखेंगे ।
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१.(२.(परिच्छेद १२ :
३.(असम राज्य में स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों को संसद् के और असम राज्य के विधान-मंडल के अधिनियमों का लागू होना ):
१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, –
क) १.(असम राज्य के विधान-मंडल) का कोई अधिनियम, जो ऐसे विेषयों में से किसी विषय के संबंध में है जिनको इस अनुसूची के पैरा ३ में ऐसे विषयों के रुप में विनिर्दिष्ट किया गया है, जिनके संबंध में जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् विधियां बना सकेगी और ४.(असम राज्य के विधान-मंडल) का कोई अधिनियम, जो किसी अनासुत ऐल्कोहाली लिकर के उपभोग को प्रतिषिद्ध या निर्बधित करता है, ५.(उस राज्य में) किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को तब तक लागू नहीं होगा जब तक दोनों दशाओं में से हर एक में ऐसे जिले की जिला परिषद् या ऐसे प्रदेश पर अधिकारिता रखने वाली जिला परिषद्, लोक अधिसूचना द्वारा, इस प्रकार निदेश नंहीं दे देती है और जिला परिषद् किसी अधिनियम के संबंध में ऐसा निदेश देते समय यह निदेश दे सकगी कि वह अधिनियम ऐसे जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को लागू होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठीक समझती है ;
ख) राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगा कि संसद् का या ४.(असम राज्य के विधान-मंडल) का कोई अधिनियम, जिसे इस उप-पैरा के खंड (क) के उपबंध लागू नहीं होते है ५.(उस राज्य में) किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू-होगा जो वह उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे ।
२) इस पैरा के उप-पैरा (१) के अधीन दिया गया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।
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१. संविधान छठी अनुसूची अधिनियम १९९५ (१९९५ का ४२) की धारा २ द्वारा पैरा १२ आसाम राज्य को लागू करने के लिए निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया, अर्थात् :-
पैरा १२ के उप-पैरा १ के खंड (क) में, इस अनुसूची के पैरा ३ में ऐसे विषयों के रुप में विनिर्दिष्ट किया गया है शब्दों , अंको और अक्षरों के स्थान पर, इस अनुसूची के पैरा ३ या पैरा ३क में ऐसे विषयों के रुप में विनिर्दिष्ट किया गया है शब्द, अंक और अक्षर रखे जाएंगे ;
२. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा पैरा १२ आसाम राज्य को लागू करने के लिए निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया, अर्थात् :-
पैरा १२ के उप-पैरा (१) के खंड (क) में, इस अनुसूची के पैरा ३ या पैरा ३क में ऐसे विषयों के रुप में विनिर्दिष्ट किया गया है शब्दों, अंकों और अक्षर के स्थान पर, इस अनुसूची के पैरा ३ या पैरा ३क या पैरा ३ख में ऐेसे विषयों के रुप में विनिर्दिष्ट किया गया है शब्द, अंक और अक्षर रखें जाएंगे ; ।
३. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) शीर्षक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ (एक) और आठवी अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) राज्य का विधान-मंडल के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ (एक) और आठवी अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) अंत:स्थापित ।
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१.(परिच्छेद १२क :
मेघालय राज्य में स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों को संसद् के और मेघालय राज्य के विधान-मंडल के अधिनियमों का लागू होना :
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी –
क) यदि इस अनुसूची के पैरा ३ के उप-पैरा (१) में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय के संबंध में मेघालय राज्य में किसी जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् द्वारा बनाई गई किसी विधि का कोई उपबंध या यदि इस अनुसूची के पैरा ८ या पैरा १० के अधीन उस राज्य में किसी जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् द्वारा बनाए गए किसी विनियम का कोई उपबंध, मेघालय राज्य के विधान-मंडल द्वारा उस विषय के संबंध में बनाई गई किसी विधि के किसी उपबंध के विरुद्ध है तो, यथास्थिति, उस जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् द्वारा बनाई गई विधि या बनाया गया विनियम, चाहे वे मेघालय राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले बनाया गया हो या उसके पश्चात्, उस विरोध की मात्रा तक शुन्य होगा और मेघालय राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि अभिभावी होगी;
ख) राष्ट्रपति, संसद् के किसी अधिनियम के संबंध में, अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि वह मेघालय राज्य में किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे और ऐसा कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।)
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१. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ (एक) और आठवी अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) पैरा १२क के स्थान पर पैरा १२क और पैरा १२ख प्रतिस्थापित ।
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१.(परिच्छेद १२कक :
त्रिपुरा राज्य में स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों को संसद् के और त्रिपुरा राज्य के विधान-मंडल के अधिनियमों का लागू होना :
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, –
क) त्रिपुरा राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिनियम, जो ऐसे विषयों में से किसी विषय के संबंध में है जिनको इस अनुसूची के पैरा ३ में ऐसे विषयों के रुप में विनिर्दिष्ट किया गया है जिनके संबंध में जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् विधियां बना सकेगी, और त्रिपुरा राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिनियम जो किसी अनासुत ऐल्कोहालिक लिकर के उपभोग को प्रतिषिद्ध या निर्बंधित करता है, उस राज्य में किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को तब तक लागू नहीं होगा जब तक, दोनों दशाओं में से हर एक में, उस जिले की जिला परिषद् या ऐसे प्रदेश पर अधिकारिता रखने वाली जिला परिषद् लोक अधिसूचना द्वारा, इस प्रकार निदेश नहीं दे देती है और जिला परिषद् किसी अधिनियम के संबंध में ऐसा निदेश देते समय यह निदेश दे सकेगी कि वह अधिनियम उस जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को लागू होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठीक समझती है ;
ख) राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा,निदेश दे सकेगा कि त्रिपुरा राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिनियम, जिसे इस उप-पैरा के खंड (क) के उपबंध लागू नहीं होते हैं, उस राज्य में किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे ;
ग) राष्ट्रपति, संसद् के किसी अधिनियम के संबंध में, अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि वह त्रिपुरा राज्य में किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे और ऐसा कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।)
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१. पैरा १२कक संविधान (उनचासवां संशोधन) अधिनियम १९८४ की धारा ४ द्वारा (१-४-१९८५ से) अंत:स्थापित किया गया । तत्पश्चात् संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९८८ (१९८८ का ६७) की धारा २ द्वारा (१६-१२-१९८८ से) पैरा १२कक और १२ख के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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परिच्छेद १२ख :
मिजोरम राज्य में स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों को संसद् के और मिजोरम राज्य के विधान-मंडल के अधिनियमों को लागू होना :
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, –
क) मिजोरम राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिनियम जो ऐसे विषयों में से किसी विषय के संबंध में है जिनको इस अनुसूची के पैरा ३ ेमें ऐसे विषयों के रुप में विनिर्दिष्ट किया गया है जिनके संबंध में जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् विधियां बना सकेगी, और मिजोरम राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिनियम, जो किसी अनासुत ऐल्कोहालिक लिकर के उपभोग को प्रतिषिद्ध या निर्बंधित करता है, उस राज्य में किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को तब तक लागू नहीं होगा, जब तक, दोनों दशाओं में से हर एक में, उस जिले की जिला परिषद् या ऐसे प्रदेश पर अधिकारिता रखने वाली जिला परिषद लोक अधिसूचना द्वारा इस प्रकार निदेश नहीं दे देती है और जिला परिषद किसी अधिनियम के संबंध में ऐसा निदेश देते समय यह निदेश दे सकेगी कि वह अधिनियम उस जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को लागू होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठीक समझती है ;
ख) राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगा कि मिजोरम राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिनियम, जिसे इस उप-पैरा के खंड (क) के उपबंध लागू नहीं होते हैं, उस राज्य में किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे ;
ग) राष्ट्रपति, संसद के किसी अधिनियम के संबंध में, अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि वह मिजोरम राज्य में किसी स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे जिले या प्रदेश या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे और ऐसा कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।)
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१. पैरा १२कक संविधान (उनचासवां संशोधन) अधिनियम १९८४ की धारा ४ द्वारा (१-४-१९८५ से) अंत:स्थापित किया गया । तत्पश्चात् संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९८८ (१९८८ का ६७) की धारा २ द्वारा (१६-१२-१९८८ से) पैरा १२कक और १२ख के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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परिच्छेद १३ :
स्वशासी जिलों से संबंधित प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का वार्षिक वित्तीय विवरण में पृथक् रुप से दिखाया जाना :
किसी स्वशासी जिले से संबंधित प्राक्कलित प्राप्तियां और व्यय, जो १.(***) राज्य की संचित निधि में जमा होनी हैं या उसमें से किए जाने हैं, पहले जिला परिषद् के समक्ष विचार-विमर्श के लिए रखे जाएंगे और फिर ऐसे विचार-विमर्श के पश्चात् अनुच्छेद २०२ के अधीन राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखे जाने वाल वार्षिक वित्तीय विवरण में पृथक् रुप से दिखाए जाएंगे ।
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१. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१(एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) आसाम शब्द का लोप किया गया ।
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१.(परिच्छेद १४ :
स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों के प्रशासन की जांच करने और उस पर प्रतिवेदन देने के लिए आयोग की नियुक्ति :
१) राज्यपाल, राज्य में स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों के प्रशासन के संबंध में अपने द्वारा विनिर्दिष्ट किसी विषय की, जिसके अंतर्गत इस अनुसूची के पैरा १ के उप-पैरा (३) के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) में विनिर्दिष्ट विषय है, जांच करने और उस पर प्रतिवेदन देने के लिए किसी भी समय आयोग नियुक्त कर सकेगा, या राज्य में स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों के साधारणतया प्रशासन की और विशिष्टतया –
क) ऐसे जिलों और प्रदेशों में शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं की और संचार की व्यवस्था की,
ख) ऐसे जिलों और प्रदेशों के संबंध में किसी नए या विशेष विधान की आवश्यकता थी, और
ग) जिला परिषदों और प्रादेशिक परिषदों द्वारा बनाई गई विधियों, नियमों और विनियमों के प्रशासन की,
समय-समय पर जांच करने और उस पर प्रतिवेदन देने के लिए आयोग नियुक्त कर सकेगा और ऐसे आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिश्चित कर सकेगा ।
२) संबंधित मंत्री, प्रत्येक ऐसे आयोग के प्रतिवेदन को, राज्यपाल की उससे संबंधित सिफारिशों के साथ, उस पर १.(राज्य की सरकार) द्वारा की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई के संबंध में स्पष्टीकारक ज्ञापन सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखेगा ।
३) राज्यपाल राज्य की सरकार के कार्य का अपने मंत्रियों में आबंटन करते समय अपने मंत्रियों में से एक मंत्री को राज्य के स्वशासी जिलों और स्वशासी प्रदेशों के कल्याण का विशेषतया भारसाधक बना सकेगा ।
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९९५ (१९९५ का ४२) की धारा २ द्वारा पैरा १४ आसाम राज्य में लागू होने के लिए निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया, अर्थात् :-
पैरा १४ के उप-पैरा (२) में, राज्यपाल की उससे संबंधित सिफारिशों के साथ शब्दों का लोप किया जाएगा ।
२. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ (एक) और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) आसाम सरकार के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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१.(परिच्छेद १५ :
जिला परिषदों और प्रादेशिक परिषदों के कार्यों और संकल्पों का निप्रभाव या निलंबित किया जाना :
१) यदि राज्यपाल का किसी समय यह समाधान हो जाता है कि जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् के किसी कार्य या संकल्प से भारत की सुरक्षा का संकटापन्न होना संभाव्य है २.(या लोक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पडना संभाव्य है ) तो वह ऐसे कार्य या संकल्प को निप्रभाव या निलंबित कर सकेगा और ऐसी कार्रवाई (जिसके अंतर्गत परिषद् का निलंबन और परिषद् में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या किन्हीं शक्तियों को अपने हाथ में ले लेना है) कर सकेगा जो वह ऐसे कार्य को किए जाने या उसके चालू रखे जाने का अथवा ऐसे संकल्प को प्रभावी किए जाने का निवारण करे के लिए आवश्यक समझे ।
२) राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (१) के अधीन किया गया आदेश, उसके लिए जो कारण हैं उनके सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष यथासंभवशीघ्र रखा जाएगा और यदि वह आदेश, राज्य के विधान-मंडल द्वारा प्रतिसंहृत नहीं कर दिया जाता है तो वह उस तारीख से, जिसको वह इस प्रकार किया गया था, बारह मास की अवधि तक प्रवृत्त बना रहेगा :
परन्तु यदि और जितनी बार, ऐसे आदेश को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित कर दिया जाता है तो और उतनी बार वह आदेश, यदि राज्यपाल द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता है तो, उस तारीख से, जिसको वह इस पैरा के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहता, बारह मास की और अवधि तक प्रवृत्त बना रहेगा ।
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९८८ (१९८८ का ६७) की धारा २ द्वारा पैरा १५ त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों को लागू करने में निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया है :-
क) आरंभिक भाग में, राज्य के विधान-मंडल द्वारा शब्दों के स्थान पर, राज्यपाल द्वारा शब्द रखें जाएंगे ;
ख) परन्तुक का लोप किया जाएगा ।
२. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) अंत:स्थापित ।
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१.(परिच्छेद १६ :
जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद का विघटन :
२.(१)) राज्यपाल, इस अनुसूची के पैरा १४ के अधीन नियुक्त आयोग की सिफारिश पर, लोक अधिसूचना द्वारा, किसी जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् का विघटन कर सकेगा, और –
क) निदेश दे सकेगा कि परिषद् के पुनर्गठन के लिए नया साधारण निर्वाचन तुरन्त कराया जाए ; या
ख) राज्य के विधान-मंडल के पूर्व अनुमोदन से ऐसी परिषद् के प्राधिकार के अधीन आने वाले क्षेत्र का प्रशासन बारह मास से अनधिक अवधि के लिए अपने हाथ में ले सकेगा अथवा ऐसे क्षेत्र का प्रशासन ऐसे आयोग को जिसे उक्त पैरा के अधीन नियुक्त किया गया है या अन्य ऐसे किसी निकाय को जिसे वह उपयुक्त समझता है, उक्त अवधि के लिए दे सकेगा :
परन्तु जब इस पैरा के खंड (क) के अधीन कोई आदेश किया गया है तब राज्यपाल प्रश्नगत क्षेत्र के प्रशासन के संबंध में, नया साधारण निर्वाचन होने पर परिषद् के पुनर्गठन के लंबित रहने तक, इस पैरा के खंड (ख) में निर्दिष्ट कार्रवाई कर सकेगा :
परन्तु यह और कि, यथास्थिति, जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् को राज्य के विधान-मंडल के समक्ष अपने विचारों को रखने का अवसर दिए बिना उस पैरा के खंड (ख) के अधीन कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी ।
३.(२) यदि राज्यपाल का किसी समय यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें स्वशासी जिले या स्वशासी प्रदेश का प्रशासन इस अनुसूची के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह, यथास्थिति, जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई कृत्य या शक्तियां, लोक अधिसूचना द्वारा, छह मास से अनधिक अवधि के लिए अपने हाथ में ले सकेगा और यह घोषणा कर सकेगा कि ऐसे कृत्य या शक्तियां उक्त अवधि के दौरान ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा प्रयोक्तव्य होंगी जिसे वह इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे :
परन्तु राज्यपाल आरंभिक आदेश का प्रवर्तन, अतिरिक्त आदेश या आदेशों द्वारा, एक बार में छह मास से अनधिक अवधि के लिए बढा सकेगा ।
३) इस पैरा के उप-पैरा (२) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके लिए जो कारण हैं उनके सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा और वह आदेश उस तारीख से जिसको राज्य विधान-मंडल उस आदेश के किए जाने के पश्चात् प्रथम बार बैठता है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहगा यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले राज्य विधान-मंडल द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है ।)
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९८८ (१९८८ का ६७) की धारा २ द्वारा (१६-१२-१९८८ से) पैरा १६ त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों को लागू करने में निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया है :-
क) उप-पैरा (१) के खंड (ख) में आने वाले राज्य के विधान-मंडल के पूर्व अनुमोदन से शब्दों और दुसरे परन्तुक का लोप किया जाएगा ;
ख) उप-पैरा (३) के स्थान पर निम्नलिखित उप-पैरा रखा जाएगा, अर्थात् :-
३) इस पैरा के उप-पैरा (१) या उप-पैरा (२) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके लिए जो कारण है उनके सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा ।
२. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) पैरा १६ का उप-पैरा (१) के रुप में पुनर्संख्यांकित किया गया ।
३. आसाम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम १९६९ (१९६९ का ५५) की धारा ७४ और चौथी अनुसूची द्वारा (२-४-१९७० से) अंत:स्थापित ।
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१.(परिेच्छेद १७ :
स्वशासी जिलों में निर्वाचन-क्षेत्रों के बनाने में ऐसे जिलों से क्षेत्रों का अपनवर्जन :
राज्यपाल, २.(असम या मेघालय ३.(या त्रिपुरा ४.(या मिजोरम)) की विधान सभा) के निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए, आदेश द्वारा, यह घोषणा कर सकेगा कि, ५.(यथास्थिति, असम या मेघालय ३.(या त्रिपुरा ४.(या मिजोरम)) राज्य में) किसी स्वशासी जिले के भीतर का कोई क्षेत्र ऐसे किसी जिले के लिए विधान सभा में आरक्षित स्थान या स्थानों को भरने के लिए किसी निर्वाचन-क्षेत्र का भाग नहीं होगा, किन्तु विधान सभा में इस प्रकार आरक्षित न किए गए ऐसे स्थान या स्थानों को भरने के लिए आदेश में विनिर्दिष्ट निर्वाचन-क्षेत्र का भाग होगा ।
६.(परिच्छेद १८ : ***)
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा पैरा १७ आसाम राज्य को लागू करने में निम्नलिखित परन्तुक अंत: स्थापित किया गया, अर्थात् :-
परन्तु इस पैरा की कोई बात बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिला को लागू नहीं होगी ।
२. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) आसाम की विधान सभा के स्थान पर प्रतिस्थापत ।
३. संविधान (उनचासवां संशोधन) अधिनियम १९८४ की धारा ४ द्वारा (१-४-१९८५ से) अंत: स्थापित ।
४. मिजोरम राज्य अधिनियम १९८६ (१९८६ का ३४) की धारा (२०-२-१९८७ से) अंत: स्थापित ।
५. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) आसाम की विधान सभा के स्थान पर अंत:स्थापित ।
६. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) पैरा १८ का लोप किया गया ।
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१.( परिच्छेद १९ :
संक्रमणकालीन उपबंध :
१) राज्यपाल, इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् यथासंभव शीघ्र, इस अनुसूची के अधीन राज्य में प्रत्येक स्वशासी जिले के लिए जिला परिषद् के गठन के लिए कार्रवाई करेगा और जब तक किसी स्वशासी जिले के लिए जिला परिषद् इस प्रकार गठित नहीं की जाती है तब तक ऐसे जिले का प्रशासन राज्यपाल में निहित होगा और ऐसे जिले के भीतर के क्षेत्रों के प्रशासन को इस अनुसूची के पूर्वगाभी उपबंधों के स्थान पर निम्नलिखित उपबंध लागू होंगे, अर्थात् :-
क) संसद् का या उस राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिनियम ऐसे क्षेत्र को तब तक लागू नहीं होगा जब तक राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा, इस प्रकार निदेश नहीं दे देता है और राज्यपाल किसी अधिनियम के संबंध में ऐसा निदेश देते समय यह निदेश दे सकेगा कि वह अधिनियम ऐसे क्षेत्र या उसके किसी विनिर्दिष्ट भाग को लागू होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठीक समझता है ;
ख) राज्यपाल ऐसे किसी क्षेत्र की शांति और सूशासन के लिए विनियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए विनियम संसद् के या उस राज्य के विधान-मंडल के किसी अधिनियम का या किसी विद्यमान विधि का, जो ऐसे क्षेत्र को तत्समय लागू हैं, निरसन या संशोधन कर सकेंगे ।
२) राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (१) के खंड (क) के अधीन दिया गया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।
३) इस पैरा के उप-पैरा (१) के खंड (ख) के अधीन बनाए गए सभी विनियम राष्ट्रपति के समक्ष तुरन्त प्रस्तुत किए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमति नहीं दे देता है तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा ।)
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा (७-९-२००३ से) पैरा १९ आसाम राज्य को लागू करने में निम्नलिखित रुप से संशोधित किया गया जिससे उप-पैरा (३) के पश्चात् निम्नलिखित अंत:स्थापित किया गया अर्थात् :-
(४) इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात्, यथाशीघ्र आसाम में बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिले के लिए एक अंतरिम कार्यपालक परिषद्, राज्यपाल द्वारा बोडो आन्दोलन के नेताओं में से, जिनके अंतर्गत समझौते के ज्ञापन के हस्ताक्षरकर्ता भी है, बनाई जाएगी और उसमें उस क्षेत्र के गैर जनजातीय समुदायों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गाएगा :
परंतु अन्तरिम परिषद् छह मास की अवधि के लिए होगी जिसके दौरान परिषद् का निर्वाचन कराने का प्रयास किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
इस उप-पैरा के प्रयोजनों के लिए, समझौते का ज्ञापन पद से भारत सरकार, आसाम सरकार और बोडो लिबरेशन टाइगर्स के बीच १० फरवरी २००३ को हस्ताक्षरित ज्ञापन अभिप्रेत है ।
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१.(परिच्छेद २० :
जनजाति क्षेत्र :
१) नीचे दी गई सारणी के भाग १, भाग २, २.(भाग २क) और भाग ३ में विनिर्दिष्ट क्षेत्र क्रमश: असम राज्य, मेघालय राज्य, २.(त्रिपुरा राज्य) और मिजोरम ३.(राज्य) के जनजाति क्षेत्र होंगे ।
२) ४.(नीचे दी गई सारणी के भाग १, भाग २ या भाग ३ में) किसी जिले के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ की धारा २ के खंड (ख) के अधीन नियत किए गए दिन से ठीक पहले विद्यमान उस नाम के स्वशासी जिले में समाविष्ट राज्यक्षेत्रों के प्रति निर्देश हैं :
परन्तु इस अनुसूची के पैरा ३ के उप-पैरा (१) के खंड (ङ) और खंड (च), पैरा ४, पैरा ५, पैरा ६, पैरा ८ के उप-पैरा (२), उप-पैरा (३) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (घ) और उप-पैरा (४) तथा पैरा १० के उप-पैरा (२) के खंड (घ) के प्रयाजनों के लिए, शिलांग नगरपालिका में समाविष्ट क्षेत्र के किसी भाग के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह ५.(खासी पहाडी जिले) के भीतर है ।
२.(३) नीचे दी गई सारणी के भाग २क में त्रिपुरा जनजाति क्षेत्र जिला के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह त्रिपुरा जनजाति क्षेत्र स्वशासी जिला परिषद् अधिनियम १९७९ की पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों मे समाविष्ट राज्यक्षेत्र के प्रति निर्देश है ।)
सारणी :
भाग १ :
१. उत्तरी कछार पहाडी जिला ।
२. ६.(कार्बी आंगलांग जिला ।)
७.(३. बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिला ।)
भाग २ :
८.(१. खासी पहाडी जिला ।
२. जयंतिया पहाडी जिला ।)
३. गारो पहाडी जिला ।
९.(भाग २क :
त्रिपुरा जनजाति क्षेत्र जिला ।)
भाग ३ :
१०.(***)
११.(१. चकमा जिला ।
१२.(२. मारा जिला ।
३. लई जिला ।))
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१. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८१) की धारा ७१ और आठवीं अनुसूची द्वारा (२१-१-१९७२ से) पैरा २० और २०क के स्थान पर प्रतिस्थापित । पैरा २१क को तत्पश्चात् भारत संघ राज्यक्षेत्र (संशोधन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८३) की धारा द्वारा (२९=४-१९७२ से ) प्रतिस्थापित किया गया था ।
२. संविधान (उनचासवां संशोधन) अधिनियम १९८४ की धारा ४ द्वारा (१-४-१९८५ से) अंत:स्थापित ।
३. मिजोरम राज्य अधिनियम १९८६ (१९८६ का ३४) की धारा ३९ द्वारा (२०-२-१९८७ से) संघ राज्यक्षेत्र के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. संविधान (उनचासवां संशोधन) अधिनियम १९८४ की धारा ४ द्वारा (१-४- १९८५ से) प्रतिस्थापित ।
५. मेघालय सरकार की अधिसूचना सं. डी.सी.ए ३१/७२/११, तारीख १४ जून, १९७३, मेघालय का राजपत्र, भाग ५क, तारीख २३-६-१९७३ पृ २०० द्वारा प्रतिस्थापित ।
६. आसाम सरकार द्वारा तारीख १४-१०-१९७६ की अधिसूचना सं. टी.ए.डी/ आर. ११५/७४/४७ द्वारा मिकीर पहाडक्ष जिला के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
७. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम २००३ (२००३ का ४४) की धारा २ द्वारा अंत:स्थापित ।
८. मेघालय सरकार की अधिसूचना सं. डी.सी.ए. ३१/७२/११ तारीख १४ जून १९७३ मेघालय का राजपत्र भाग ५क तारीख २३-६-१९७३ पृ. २०० द्वारा प्रतिस्थापित ।
९. संविधान (उनचासवां संशोधन) अधिनियम १९८४ की धारा ४ द्वारा (१-४-१९८५ से) अंत:स्थापित ।
१०. संघ राज्यक्षेत्र शास (संशोधन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८३) की धारा १३ द्वारा (२९-४-१९७२ से) मिजो जिला शब्दों का लोप किया गया ।
११. मिजोरम का राजपत्र १९७२ तारीख ५ मई १९७२ जिल्द १, भाग २, पृ १७ में प्रकाशित मिजोरम जिला परिषद् (प्रकीर्ण उपबंध) आदेश १९७२ द्वारा (२९-४-१९७२ से) अंत:स्थापित ।
१२. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९८८ (१९८८ का ६७) की धारा २ द्वारा (१६-१२-१९८८ से) क्रम सं. २ और ३ तथा उनसे संबंधित प्रविष्टियों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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१.(परिच्छेद २०क :
मिजो जिला परिषद् का विघटन :
१) इस अनुसूची में किसी बात के होते हुए भी, विहित तारीख से ठीक पहले विद्यमान मिजो जिले की जिला परिषद् (जिसे इसमें इसके पश्चात् मिजो जिला परिषद् कहा गया है) विघटित हो जाएगी और विद्यमान नहीं रह जाएगी ।
२) मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक, एक या अधिक आदेशों द्वारा, निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध कर सकेगा, अर्थात् :-
क) मिजो जिला परिषद् की आस्तियों, अधिकारों और दायित्वों का (जिनके अंतर्गत उसके द्वारा की गई किसी संविदा के अधीन अधिकार और दायित्व हैं) पूर्णत: या भागत: संघ को या किसी अन्य प्राधिकारी का अंतरण ;
ख) किन्हीं ऐसी विधिक कार्यवाहियों में , जिनमें मिजो जिला परिषद् एक पक्षकार है, मिजो जिला परिषद् के स्थान पर संघ का या किसी अन्य प्राधिकारी का पक्षकार के रुप में रखा जाना अथवा संघ का या किसी अन्य प्राधिकारी का पक्षकार के रुप में जोडा जाना;
ग) मिजो जिला परिषद् के किन्हीं कर्मचारियों का संघ को या किसी अन्य प्रधिकारी का अथवा उसके द्वारा अंतरण या पुनर्नियोजन, ऐसे अंतरण या पुनर्नियोजन के पश्चात् उन कर्मचारियों को लागू होने वाले सेवा के निबंधन और शर्तें;
घ) मिजो जिला परिषद द्वारा बनाई गई और उसके विघटन से ठीक पहले प्रवृत्त किन्हीं विधियों का, ऐसे अनुकूलनों और उपांतरणों के, चाहे वे निरसन के रुप में हों या संशोधन के रुप में, अधीन रहते हुए जो प्रशासन द्वारा इस निमित्त किए जाएं, तब तक प्रवृत्त बना रहना जब तक किसी सक्षम विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा ऐसी विधियों में परिवर्तन, निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है ;
ङ) ऐेसे आनुषंगिक, पारिणामिक और अनुपूरक विषय जो प्रशासक आवश्यक समझे ।
स्पष्टीकरण :
इस पैरा में और इस अनुसूची के पैरा २०ख में, विहित तारीख पद से वह तारीख अभिप्रेत है जिसको मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र की विधान सभा का, संघ राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम १९६३ के उपबंधों के अधीन और उनके अनुसार, सम्यक रुप से गठन होता है ।)
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१. संघ राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८३) की धारा १३ द्वारा (२९-४-१९७२ से) पैरा २०क, २०ख, २०ग के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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१.(परिच्छेद २०ख :
मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र में स्वशासी प्रदेशों का स्वशासी जिले होना और उसके परिणामिक संक्रमणकालीन उपबंध :
१) इस अनुसूची में किसी बात के होते हुए भी,-
क) मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र में विहित तारीख से ठीक पहले विद्यमान प्रत्येक स्वशासी प्रदेश उस तारीख को और से उस संघ राज्यक्षेत्र का स्वशासी जिला (जिसे इसमें इसके पश्चात्, तत्स्थानी नया जिला कहा गया है ) हो जाएगा और उसका प्रशासक, एक या अधिक आदेशों द्वारा, निदेश दे सकेगा कि इस अनुसूची के पैरा २० में (जिसके अंतर्गत उस पैरा से संलग्न सारणी का भाग ३ है) ऐसे पारिणामिक संशोधन किए जाएंगे जो इस खंड के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हैं और तब उक्त पैरा और उक्त भाग ३ के बारे में यह समझा जाएगा कि उनका तद्रुसार संशोधन कर दिया गया है ;
ख) मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र में विहित तारीख से ठीक पहले विद्यमान स्वशासी प्रदेश की प्रत्येक प्रादेशिक परिषद् (जिसे इसमें इसके पश्चात् विद्यमान प्रादेशिक कहा गया है) उस तारीख को और से और जब तक तत्स्थानी नए जिले के लिए परिषद का सम्यक् रुप से गठन नहीं होता है तब तक, उस जिले की जिला परिषद् (जिसे इसमें इसके पश्चात् तत्स्थानी नई जिला परिषद् कहा गया है) समझी जाएगी ।
२) विद्यमान प्रादेशिक परिषद् का प्रत्येक निर्वाचित या नामनिर्देशित सदस्य तत्स्थानी नई जिला परिषद् के लिए, यथास्थिति, निर्वाचित या नामनिर्देशित समझा जाएगा और तब तक पद धारण करेगा जब तक इस अनुसूची के अधीन तत्स्थानी नए जिले के लिए जिला परिषद् का सम्यक् रुप से गठन नहंी होता है ।
३) जब तक तत्स्थानी नई जिला परिषद् द्वारा इस अनुसूची के पैरा २ के उप-पैरा (७) और पैरा ४ के उप-पैरा (४) के अधीन नियम नहीं बनाए जाते हैं तब तक विद्यमान प्रादेशिक परिषद् द्वारा उक्त उपबंधों के अधीन बनाए गए नियम, जो विहित तारीख से ठीक पहले प्रवृत्त हैं, तत्स्थानी नई जिला परिषद् के संबंध में ऐसे अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे जो मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक द्वारा उनमें किए जाएं ।
४) मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक, एक या अधिक आदेशों द्वारा निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध कर सकेगा, अर्थात् :-
क) विद्यमान प्रादेशिक परिषद् की आस्तियों, अधिकारों और दायित्वों का (जिनके अंतर्गत उसके द्वारा की गई किसी संविदा के अधीन अधिकार और दायित्व हैं) पुर्णत: या भागत: तत्स्थानी नई जिला परिषद् को अंतरण ;
ख) किन्हीं ऐसी विधिक कार्यवाहियों में, जिनमें विद्यमान प्रादेशिक परिषद् एक पक्षकार है, विद्यमान प्रादेशिक परिषद् के स्थान पर तत्स्थानी नई जिला परिषद् का पक्षकार के रुप में रखा जाना ;
ग) विद्यमान प्रादेशिक परिषद के किन्हीं कर्मचारियों का तत्स्थानी नई जिला परिषद् को अथवा उसके द्वारा अंतरण या पुनर्नियोजन ; ऐसे अंतरण या पुनर्नियोजन के पश्चात् उन कर्मचारियों को लागू हाने वाले सेवा के निबंधन और शर्तें ;
घ) विद्यमान प्रादेशिक परिषद् द्वारा बनाई गई और विहित तारीख से ठीक पहले प्रवृत्त किन्हीं विधियों का, ऐसे अनुकूलनों और उपांतरणों के, चाहे वे निरसन के रुप में हों या संशोधन के रुप में, अथीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस निमित्त किए जाएं, तब तक प्रवृत्त बना रहना जब तक सक्षम विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा ऐसी विधियों में परिवर्तन, निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है ;
ङ) ऐसे आनुषंगिक, पारिणामिक और अनुपूरक विषय जो प्रशासक आवश्यक समझे ।)
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१. संघ राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८३) की धारा १३ द्वारा (२९-४-१९७२ से) पैरा २०क, २०ख, २०ग के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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१.(परिच्छेद २०खक :
राज्यपाल द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन में वैवेकिक शक्तियों का प्रयोग :
राज्यपाल, इस अनुसूची के पैरा १ के उप-पैरा (२) और उप-पैरा (३), पैरा २ के उप-पैरा (१), उप-पैरा (६), उप-पैरा (६क) के पहले परन्तुक को छोडकर और उप-पैरा (७), पैरा ३ के उप-पैरा (३), पैरा ४ के उप-पैरा (४), पैरा ५, पैरा ६ के उप-पैरा (१), पैरा ७ के उप-पैरा (२), पैरा ८ के उप-पैरा (४), पैरा ९ के उप-पैरा (३), पैरा १० के उप-पैरा (३), पैरा १४ के उप-पैरा (१), पैरा १५ के उप-पैरा (१) और पैरा १६ के उप-पैरा (१) और उप-पैरा (२) के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन में, मंत्रि-परिषद् और, यथास्थिति, उत्तरी कछार पहाडी स्वशासी परिषद् या कार्बी आंगलांग पहाडी स्वशासी परिषद् से परामर्श करने के पश्चात् ऐसी कार्रवाई करेगा, जो वह स्वविवेकानुसार आवश्यक मानता है ।)
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९९५ (१९९५ का ४२) की धारा २ द्वारा (१२-९-१९९५ से) आसाम में लागू होने के लिए पैरा २०खक अंत:स्थापित किया गया ।
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१.(परिच्छेद २०खख :
राज्यपाल द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन में वैवकिक शक्तियों का प्रयोग :
राज्यपाल, इस अनुसूची के पैरा १ के उप-पैरा (२) और उप-पैरा (३), पैरा २ के उप-पैरा (१) और उप-पैरा (७), पैरा ३ का उप-पैरा (३), पैरा ४ का उप-पैरा (४), पैरा ५, पैरा ६ का उप-पैरा (१), पैरा ७ का उप-पैरा (२), पैरा ९ का उप-पैरा (३), पैरा १४ का उप-पैरा (१), पैरा १५ का उप-पैरा (१) और पैरा १६ का उप-पैरा (१) और उप-पैरा (२) के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन में, मंत्रि-परिषद् से और यदि वह आवश्यक समझे तो संबंधित जिला परिषद् या प्रादेशिक परिषद् से परामर्श करने के पश्चात्, ऐसी कार्रवाई करेगा, जो वह स्वविवेकानुसार आवश्यक समझे ।)
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१. संविधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधिनियम १९८८ (१९८८ का ६७) की धारा २ द्वारा (१६-१२-१९८८ से) त्रिपुरा और मिजोरम राज्यो को लागू करने में, पैरा २०ख के पश्चात् निम्नलिखित पैरा अंत:स्थापित किया गया ।
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१.(परिच्छेद २०ग :
निर्वचन :
इस निमित्त बनाए गए किसी उपबंध के अधीन रहते हुए, इस अनुसूची के उपबंध मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होेंगे –
१) मानो राज्य के राज्यपाल और राज्य की सरकार के प्रति निर्देश अनुच्छेद २३९ के अधीन नियुक्त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रति निर्देश हों; (राज्य की सरकार पद के सिवाय) राज्य के प्रति निर्देश मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र के प्रति निर्देश हों और राज्य विधान-मंडल के प्रति निर्देश मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र की विधान सभा के प्रति निर्देश हों ;
२) मानो –
क) पैरा ४ के उप-पैरा (५) में संबंधित राज्य की सरकार से परामर्श करने के उपबंध का लोप कर दिया गया हो ;
ख) पैरा ६ के उप-पैरा (२) में, जिस पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है शब्दों के स्थान पर जिसके संबंध में मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र की विधान सभा को विधियों बनाने की शक्ति है शब्द रख दिए गए हों ;
ग) पैरा १३ में, अनुच्छेद २०२ के अधीन शब्दों और अंकों का लोप कर दिया गया हो ।)
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१. संघ राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ८३) की धारा १३ द्वारा (२९-४-१९७२ से) पैरा २०क, २०ख, २०ग के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
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परिच्छेद २१ :
अनुसूची का संशोधन :
१) संसद्, समय-समय पर विधि द्वारा, इस अनुसूची के उपबंधों में से किसी का, परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रुप में संशोधन कर सकेगी और जब अनुसूची का इस प्रकार संशोधन किया जाता है तब इस संविधान में इस अनुसूची के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह इस प्रकार संशोधित ऐसी अनुसूची के प्रति निर्देश है ।
२) ऐसी कोई विधि जो इस पैरा के उप-पैरा (१) में उल्लिखित है, इस संविधान के अनुच्छेद ३६८ के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।