Constitution अनुच्छेद ३६१ : राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण ।

भारत का संविधान
भाग १९ :
प्रकीर्ण :
अनुच्छेद ३६१ :
राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण ।
१)राष्ट्रपति अथवा राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन के लिए या उन शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने द्वारा किए गए या किए जाने के लिए तात्पर्यित किसी कार्य के लिए किसी न्यायालय को उत्तरदायी नहीं होगा :
परन्तु अनुच्छेद ६१ के अधीन आरोप के अन्वेषण के लिए संसद् के किसी सदन द्वारा नियुक्त या अभिहित किसी न्यायालय, अधिकरण या निकाय द्वारा राष्ट्रपति के आचरण का पुनर्विलोकन किया जा सकेगा :
परन्तु यह और कि इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के विरूध्द समुचित कार्यवाहियां चलाने के किसी व्यक्ति के अधिकार को निर्बंधित करती है ।
२)राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल १.(***) के विरूध्द उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दांडिक कार्यवाही संस्थित नहीं की जाएगी या चालू नहीं रखी जाएगी ।
३) राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल १.(***) की पदावधि के दौरान उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए किसी न्यायालय से कोई आदेशिका निकाली नहीं जाएगी ।
४)राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल १.(***) के रूप में अपना पद ग्रहण करने से पहले या उसके पश्चात् , उसके द्वारा अपनी वैयक्तिक हैसियत में किए गए या किए जाने के लिए तात्पर्यित किसी कार्य के संबंध में कोई सिविल कार्यवाहियां, जिनमें राष्ट्रपति या ऐसे राज्य के राज्यपाल १.(***) के विरूध्द अनुतोष का दावा किया जाता है, उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में तब तक संस्थित नहीं की जाएगी जब तक कार्यवाहियों की प्रकृति, उनके लिए वाद हेतुक, ऐसी कार्यवाहियों को संस्थित करने वाले पक्षकार का नाम, वर्णन, निवास-स्थान और उस अनुतोष का जिसका वह दावा करता है, कथन करने वाली लिखित सूचना, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल १.(***) को परिदत्त किए जाने या उसके कार्यालय में छोडे जाने के पश्चात् दो मास का समय समाप्त नहीं हो गया है ।
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१.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा या राजप्रमुख शब्दों का लोप किया गया ।

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