भारत का संविधान
अनुच्छेद ३५७ :
अनुच्छेद ३५६ के अधीन की गई उद्घोषणा के अधीन विधायी शक्तियों का प्रयोग ।
१)जहां अनुच्छेद ३५६ के खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा द्वारा यह घोषणा की गई है कि राज्य के विधान- मंडल की शक्तियां संसद् द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी वहां –
क) राज्य के विधान-मंडल की विधि बनाने की शक्ति राष्ट्रपति को प्रदान करने की और इस प्रकार प्रदत्त शक्ति का किसी अन्य प्राधिकारी को, जिसे राष्ट्रपति इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, ऐसी शर्तों के अधीन, जिन्हें राष्ट्रपति अधिरोपित करना ठीक समझे, प्रत्यायोजन करने के लिए राष्ट्रपति को प्राधिकृत करने की संसद् को,
ख) संघ या उसके अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियां प्रदान करने या उन पर कर्तव्य अधिरोपित करने के लिए अथवा शक्तियों का प्रदान किया जाना या कर्तव्यों का अधिरोपित किया जाना प्राधिकृत करने के लिए, विधि बनाने की संसद् को अथवा राष्ट्रपति को या ऐसे अन्य प्राधिकारी को, जिसमें ऐसी विधि बनाने की शक्ति उपखंड (क) के अधीन निहित है,
ग) जब लोक सभा सत्र में नहीं है तब राज्य की संचित निधि में से व्यय के लिए, संसद् की मंजूरी लंबित रहने तक ऐसे व्यय की संचित निधि में से व्यय के लिए, संसद् की मंजूरी लंबित रहने तक ऐसे व्यय को प्राधिकृत करने की राष्ट्रपति को, क्षमता होगी ।
१.(२) राज्य के विधान-मंडल की शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद् द्वारा, अथवा राष्ट्रपति या खंड (१) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट अन्य प्राधिकारी द्वारा, बनाई गई ऐसी विधि, जिसे संसद् अथवा राष्ट्रपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी अनुच्छेद ३५६ के अधीन की गई उद्घोषणा के अभाव मे बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात् तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक सक्षम विधान-मंडल या अन्य प्राधिकारी द्वारा उसका परिवर्तन या निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है । )
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१.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ५१ द्वारा (३-१-१९७७ से) खंड (२) के स्थान पर प्रतिस्थापित।