Constitution अनुच्छेद २१७ : उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें ।

भारत का संविधान
अनुच्छेद २१७ :
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें ।
१) १.( अनुच्छेद १२४ क में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर, राष्ट्रपति ) अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश २.(अपर या कार्यकारी न्यायाधीश की दशा में अनुच्छेद २२४ में उपबंधित रूप में पद धारण करेगा और किसी अन्य दशा में तब तक पद धारण करेगा जब तक वह ३.(बासठ वर्ष ) की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है : )
परंतु –
क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
ख) किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अनुच्छेद १२४ के खंड (४) में उपबंधित रीति से उसके पद से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा ;
ग) किसी न्यायाधीश का पद, राष्ट्रपति द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने पर या राष्ट्रपति द्वारा उसे भारत के राज्यक्षेत्र में किसी अन्य उच्च न्यायालय को, अंतरित किए जाने पर रिक्त हो जाएगा ।
२) कोई व्यक्ति, किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारत का नागरिक है और –
क) भारत के राज्यक्षेत्र में कम से कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका है ; या
ख) किसी ४.(***) उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा है ; ५.(***)
५.(***)
स्पष्टीकरण – इस खंड के प्रयाजनों के लिए, –
६.((क) भारत के राज्यक्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान कोई व्यक्ति न्यायिक पद धारण करने के पश्चात् किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है या उसने किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है ; )
७.(कक) किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात् ८.(न्यायिक पद धारण किया है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है ) ;
ख) भारत के राज्यक्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने या किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारंभ से पहले की वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने, यथास्थिति, ऐसे क्षेत्र में जो १५ अगस्त, १९४७ से पहले भारत शासन अधिनियम, १९३५ में परिभाषित भारत में समाविष्ट था, न्यायिक पद धारण किया है या वह ऐसे किसी क्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है ।
९.(३)यदि उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की आयु के बारे में कोई प्रश्न उठता है तो उस प्रश्न का विनिश्चय भारत का मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा और राष्ट्रपति का विनिश्चय अंतिम होगा । )
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१.संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, २०१४ की धारा ६ द्वारा (१३-४-२०१५ से ) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से, उस राज्य के राज्यपाल से और मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्, राष्ट्रपति शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख १६ अक्तूबर, २०१५ के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है ।
२.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा १२ द्वारा तब तक पद धारण करेगा जब तक कि वह साठ वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. संविधान (पंद्रहवां संशोधन) अधिनियम, १९६३ की धारा ४ द्वारा साठ वर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य में के शब्दों का लोप किया गया ।
५.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ३६ द्वारा ( ३-१-१९७७ से ) शब्द या और उपखंड (ग) अंत:स्थापित किए गए और संविधान (चवालीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७८ की धारा २८ द्वारा (२०-६-१९७९ से ) उनका लोप किया गया ।
६.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा २८ द्वारा (२०-६-१९७९ से ) अंत:स्थापित ।
७.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा २८ द्वारा (२०-६-१९७९ से) खंड (क) को खंड (कक) के रूप में पुन:अक्षरांकित किया गया ।
८.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ३६ द्वारा (३-१-१९७७ से) न्यायिक पद धारण किया हो के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
९. संविधान (पंद्रहवां संशोधन) अधिनियम, १९६३ की धारा ४ द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) अंत:स्थापित ।

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