भारत का संविधान
अनुच्छेद १०० :
सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति ।
१)इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक सदन की बैठक में या सदनों की सयुक्त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष को अथवा सभापति या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोडकर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा ।
सभापति या अध्यक्ष, अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमत: मत नहीं देना, किन्तु मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा ।
२) संसद् के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी संसद् की कोई कार्यवाही विधिमान्य होगी।
१.(३) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद् के प्रत्येक सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग होगी ।
४) यदि सदन के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो सभापति या अध्यक्ष अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है ।)
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१. संविधान (बयालीसवां संशोध) अधिनियम १९७६ की धारा १८ द्वारा (तारीख अधिसूचित नहीं हुई थी) खंड (३) और खंड (४) को लोप किया गया किन्तु संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम १९७८ की धारा ४५ द्वारा (२०-६-१९७८ से) उक्त संशोधन को निरसित कर दिया गया ।