सूचना का अधिकार अधिनियम २००५
(२००५ का अधिनियम संख्यांक २२) (१५ जून, २००५)
प्रस्तावना :
अध्याय १ :
प्रारंभिक :
धारा १ :
संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ :
प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कार्यकरण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के संवर्धन के लिए, लोक प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन सूचना तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों के सूचना के अधिकार की व्यावहारिक शासन पद्धति स्थापित करने, एक केन्द्रीय सूचना आयोग तथा राज्य सूचना आयोग का गठन करने के और उनसे संबंधित या उनके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम ;
भारत के संविधान ने लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की है ;
और लोकतंत्र शिक्षित नागरिक वर्ग तथा ऐसी सूचना की पारदर्शिता की अपेक्षा करता है, जो उसके कार्यकरण तथा भ्रष्टाचार को राकने के लिए भी और सरकारों तथा उनके परिकरणों को शासन के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिए अनिवार्य है;
और वास्तविक व्यवहार में सूचना के प्रकटन से संभवत: अन्य लोक हितों, जिनके अंतर्गत सरकारों के दक्ष प्रचालन, सीमित राज्य वित्तीय संसाधनों के अधिकतम उपयोग और संवेदनशील सूचना की गोपनीयता को बनाए रखना भी है, के साथ विरोध हो सकता है;
और लोकतंत्रात्मक आदर्श की प्रभुता को बनाए रखते हुए इन विरोधी हितों के बीच सामंज्यस्य बनाना आवश्यक है;
अत: अब यह समीचीन है कि ऐसे नागरिकों को, कतिपय (कुछ) सूचना देने के लिए, जो उसे पाने के इच्छुक है, उपबंध किया जाए;
भारत गणराज्य के छप्पनवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रुप में यह अधिनियमित हो :-
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१) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम सूचना का अधिकार अधिनियम, २००५ है ।
२) इसका विस्तार १.(***) सम्पूर्ण भारत पर है ।
३) धारा ४ की उपधारा (१), धारा ५ की उपधारा (१) और उपधारा (२), धारा १२, धारा १३, धारा १५, धारा १६, धारा २४,धारा २७ और धारा २८ के उपबंध तुरंत प्रभावी होंगे और इस अधिनियम के शेष उपबंध इसके अधिनियम के एक सौ बीसवें दिन (*) को प्रवृत्त होंगे ।
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* १२ अक्तूबर २००५.
१. सन २०१९ का अधिनियम क्रमांक ३४ की धारा ९५ और पाचवी अनुसूची द्वारा (जम्मू- कश्मीर राज्य के सिवाय) शब्दों का लोप किया गया ।