सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम १९५५
धारा ३ :
धार्मिक निर्योग्यता लागू करने के लिए दण्ड :
जो कोई किसी व्यक्ति को, –
(a)(क) किसी ऐसे लोक-पूजा स्थान में प्रवेश करने से, जो उसी धर्म को मानने वाले १(***) या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए खुला हो, जिसका वह व्यक्ति हो, अथवा
(b)(ख) किसी लोक पूजा-स्थान में पूजा या प्रार्थना या कोई धार्मिक सेवा अथवा, किसी पुनीत तालाब, कुएं, जलस्रोत या २.(जल-सरणी, नदी या झील में स्नान या उसके जल का उपयोग या ऐसे तालाब, जल-सरणी, नदी या झील के किसी घाट पर स्नान) उसी रीति से और उसी विस्तार तक करने से, जिस रीति से और जिस विस्तार तक ऐसा करना उसी धर्म को मानने वाले १.(***) या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए अनुज्ञेय हो, जिसका वह व्यक्ति हो,
अस्पृश्यता के आधार पर निवारित करेगा ३.(वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा। )
स्पष्टीकरण :
इस धारा और धारा ४ के प्रयोजनों के लिए बौद्ध, सिक्ख या जैन धर्म को मानने वाले व्यक्ति या हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास को मानने वाले व्यक्ति, जिनके अंतर्गत वीरशैव, लिंगायत, आदिवासी, ब्राह्मो समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज और स्वामी नारायण संप्रदाय के अनुयायी भी हैं, हिन्दू समझे जाएंगे।
———
१.१९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा ५ द्वारा (१९-११-१९७६ से) या उसी धार्मिक संप्रदाय शब्दों का लोप किया गया।
२. १९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा ५ द्वारा (१९-११-१९७६ से) अन्त:स्थापित।
३. १९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा ५ द्वारा (१९-११-१९७६ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।