सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम १९५५
धारा २ :
परिभाषाए :
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(a)१.(क) सिविल अधिकार से कोई ऐसा अधिकार अभिप्रेत है, जो संविधान के अनुच्छेद १७ द्वारा अस्पृश्यता का अन्त कर दिए जाने के कारण किसी व्यक्ति को प्रोद्भूत होता है ।)
(aa)२.(कक)) होटल के अन्तर्गत जलपान-गृह, भोजनालय, बासा, कॉफी हाउस और केफे भी हैं;
(b)३.(ख) स्थान के अन्तर्गत गृह, भवन और अन्य संरचना तथा परिसर हैं और उसके अन्तर्गत तम्बू, यान और जलयान भी हैं;
(c)(ग) लोक मनोरंजन-स्थान के अन्तर्गत कोई भी ऐसा स्थान है जिसमें जनता को प्रवेश करने दिया जाता है और जिसमें मनोरंजन की व्यवस्था की जाती है या मनोरंजन किया जाता है।
स्पष्टीकरण :
मनोरंजन के अन्तर्गत कोई प्रदर्शनी, तमाशा, खेलकूद, क्रीड़ा और किसी अन्य प्रकार का आमोद भी है;
(d)(घ) लोक पूजा-स्थान से, चाहे जिस नाम से ज्ञात हो, ऐसा स्थान अभिप्रेत है, जो धार्मिक-पूजा के सार्वजनिक स्थान के तौर पर उपयोग में लाया जाता है या जो वहां कोई धार्मिक सेवा या प्रार्थना करने के लिए, किसी धर्म को मानने वाले या किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी विभाग के व्यक्तियों को साधारणत: समर्पित किया गया है या उनके द्वारा साधारणत: उपयोग में लाया जाता है, ४.(और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित हैं –
(एक) ऐसे किसी स्थान के साथ अनुलग्न या संलग्न सब भूमि और गौण पवित्र स्थान;
(दो) निजी स्वामित्व का कोई पूजा-स्थान जिसका स्वामी वस्तुत: उसे लोक पूजा-स्थान के रूप में उपयोग में लाने की अनुज्ञा देता है; और
(तीन) ऐसे निजी स्वामित्व वाले पूजा-स्थान से अनुलग्न ऐसी भूमि या गौण पवित्र स्थान जिसके स्वामी उसे लोक धार्मिक पूजा-स्थान के रूप में उपयोग में लाने की अनुज्ञा देता है;
(da)१.(घक) विहित से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(db)(घख) अनुसूचित जाति का वही अर्थ है जो संविधान के अनुच्छेद ३६६ के खंड (२४) में उसे दिया गया है।
(e)(ङ) दुकान से कोई ऐसा परिसर अभिप्रेत है, जहां वस्तुओं का या तो थोक या फुटकर या थोक और फुटकर दोनों
प्रकार का विक्रय किया जाता है ४.(और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित हैं :-
(एक) कोई ऐसा स्थान जहां फेरीवाले या विक्रेता द्वारा या चलते-फिरते यान या गाड़ी से माल का विक्रय किया जाता है;
(दो) लांड्री और बाल काटने का सैलून;
(तीन) कोई अन्य स्थान जहां ग्राहकों की सेवा की जाती है।)
———
१. १९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा ४ द्वारा(१९-११-१९७६ से) अन्त:स्थापित ।
२. १९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा ४ द्वारा (१९-११-१९७६ से) खण्ड (क) को खण्ड (कक) के रूप में पुन:अक्षरांकित किया गया।
३. १९७६ के अधिनियम सं० की धारा ४ द्वारा (१९-११-१९७६ से) खण्ड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. १९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा ४ द्वारा (१९-११-१९७६ से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।