सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम १९५५
धारा १ :
संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ :
१.(१९५५ का अधिनियम संख्यांक २२)
२.(अस्पृश्यता का प्रचार और आचरण करने) और उससे उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करने और, उससे संबंधित बातों के लिए दंड विहित करने के लिए अधिनियम
भारत गणराज्य के छठे वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
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(१) यह अधिनियम ३.(सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, १९५५) कहा जा सकेगा।
(२) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(३) यह उस तारीख ४.() को प्रवृत्त होगा, जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे।
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१.१९६२ के विनियम सं० १२ की धारा ३ तथा अनुसूची द्वारा उपांतरों सहित गोवा, दमण और दीव पर, १९६३ के विनियम सं०६ की धारा २ तथा अनुसूची १ द्वारा (१ जुलाई, १९६५ से) दादरा और हवेली पर, और १९६३ के विनियम सं०७ की धारा ३ तथा अनुसूची १ द्वारा (१ अक्तूबर, १९६३ से) पाण्डिचेरी पर, विस्तार किया गया।
२. १९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा २ द्वारा (१९-११-१९७६ से) अस्पृश्यता का आचरण करने के स्थान पर प्रतिस्थापित।
३. १९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा ३ द्वारा (१९-११-१९७६ से) अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. १ जून, १९५५, देखिए अधिसूचना सं० का०नि०आ० ११०९, तारीख २३ मई, १९५५, भारत का राजपत्र, १९५५, असाधारण, भाग २, खण्ड ३, पृ० १९७१।