स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम १९८५
धारा ३० :
तैयारी :
यदि कोई व्यक्ति, ऐसा कोई कार्य, जो १.(धारा १९, धारा २४ और धारा २७-क के किसी उपबंध के अधीन दंडनीय अपराध और किसी ऐसे अपराध के लिए जो किसी स्वापक ओषधि या मन:प्रभावी पदार्थ की वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है) गठित करता है, करने की तैयारी करेगा या करने का लोप करेगा और मामले की परिस्थितियों से युक्तियुक्त रुप से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह उस अपराध को करने के अपने आशय को कार्यान्वित करने के लिए दृढ संकल्प था किन्तु उसे उसकी इच्छा से स्वतंत्र परिस्थितियों द्वारा रोका गया था । तो वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की, जिससे वह यदि वह ऐसा अपराध करता तो दण्डनीय होता, न्यूनतम अवधि (यदि कोई हो) के आधी से कम की नहीं होगी किन्तु ऐसे कारावास की, अधिकतम अवधि के आधे तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो ऐसे जुर्माने की जिससे वह पूर्वोक्त दशा में दण्डनीय होता, न्यूनतम रकम (यदि कोई हो) के आधे से कम का नहीं होगा किन्तु ऐसे जुर्माने की, जिससे वह साधारणतया (अर्थात, विशेष कारणों के अभाव में) दण्डनीय होता, अधिकतम रकम के आधे तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा :
परन्तु न्यायालय ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, उच्चतर जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।
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१.२००१ के अधिनियम सं. ९ की धारा ११ द्वारा प्रतिस्थापित ।
