Mv act 1988 धारा ५८ : परिवहन यानों के बारे में विशेष उपबंध :

मोटर यान अधिनियम १९८८
धारा ५८ :
परिवहन यानों के बारे में विशेष उपबंध :
१) केन्द्रीय सरकार (मोटर टैक्सी से भिन्न) किसी परिवहन यान के पहियों में लगे टायरों की संख्या, प्रकार और आकार और उनकी बनावट और माडल और अन्य सुसंगत बातों को ध्यान में रखते हुए, हर बनावट और माडल के परिवहन यान के संबंध में ऐसे यान का १.(अधिकतम सकल यान भार) और ऐसे यान की हर धुरी का निरापद अधिकतम धुरी भार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट कर सकेगी ।
२)रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी मोटर टैक्सी से भिन्न किसी परिवहन यान को रजिस्टर करते समय, रजिस्ट्रीकरण में और अभिलेख में औ यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में भी निम्नलिखित विशिष्टियां प्रविष्ट करेगा, अर्थात् :-
(a)क) यान का लदान रहित भार;
(b)ख) हर पहिए में लगे टायरों की संख्या, प्रकार और आकार;
(c)ग) यान का सकल यान भार और उसकी विभिन्न धुरियो से संबंधित रजिस्ट्रीकृत धुरी भार, और
(d)घ) यदि केवल यात्रियों का या माल के साथ-साथ यात्रियों का वहन करने के लिए यान का उपयोग किया जाता है या वह उपयोग करने के लिए अनुकूलित किया जाता है तो उन यात्रियों की संख्या जिनके लिए उसमें बैठने की व्यवस्था है,
तथा यान स्वामी उस विशिष्टियों को विहित रीति से यान पर प्रदर्शित कराएगा ।
३) ऐसे किसी यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में कोई सकल यान भार या उसकी धुरियों में से किसी का ऐसा रजिस्ट्रीकृत धुरी भार प्रविष्ट नहीं किया जाएगा जो ऐसे यान की बनावट और माडल के तथा उसके पहियों पर लगे टायरों की संख्या, प्रकार और आकार के संबंध में उपधारा (१) के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट भार से भिन्न हो :
परन्तु जहां केन्द्रीय सरकार को यह प्रतीत होता है कि उपधारा (१) के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट भार से अधिक भारी भार किसी विशिष्ट प्रकार के यानों के लिए किसी विशिष्ट क्षेत्र में अनुज्ञात किए जा सकते हैं, वहां केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में आदेश द्वारा निदेश दे सकेगी कि इस उपधारा के उपबंध ऐसे उपांतरणों के साथ लागू होंगे जो आदेश मे विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
२.(* * * )
५)किसी यान के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में दर्ज सकल यान भार का उपधारा (३) के उपबंधों के अनुसार, पुनरीक्षण करने की दृष्टि से रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी परिवहन यान के स्वामी से ऐसी प्रक्रिया के अनुसार, जैसी विहित की जाए, यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह इतने समय के भीतर, जितना रजिस्ट्रीकर्ता प्राधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र प्रस्तुत करे ।
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१.१९९४ के अधिनियम सं. ५४ की धारा १८ द्वारा (१४-११-१९९४ से ) प्रतिस्थापित ।
२.२००० के अधिनियम सं. २७ की धारा ३द्वारा लोप किया गया ।

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