भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ७५ :
१.(अध्याय १२ या अध्याय १७ के अधीन पुर्व दोषसिद्धि के पश्चात् कतिपय(कुछ) अपराधों के लिए वर्धित (जादा/बढाकर) दण्ड :
(See section 13 of BNS 2023)
जो कोई व्यक्ती –
क) २.(भारत) में के किसी न्यायालय द्वारा इस संहिता के अधाय १२ या अध्याय १७ के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए, ३.(***)
ख) ३.(***)
दोषसिद्ध ठहराए जाने के पश्चात् १२ और १७ इन दोनों अध्यायों में से किसी अध्याय के अधीन उतनी ही अवधि के लिए वैसे ही कारावास से दण्डनीय किसी अपराध का दोषी हो, तो वह हर ऐसे पश्चात्वर्ती अपराध के लिए ४.(आजीवन कारावास) से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा ।)
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१. १९१० के अधिनियम सं० ३ की धारा २ द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा खंड (क) के अंत में अथवा शब्द और खंड (ख) का लोप किया गया ।
४. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा (१-१-१९५६ से) आजीवन निर्वसन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।