भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ३२२ :
स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना :
(See section 117(1) of BNS 2023)
जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करता है, यदि वह उपहति, जिसे कारित करने का उसका आशय है या जिसे वह जानता है कि उसके द्वारा उसका किया जाना संभाव्य है घोर उपहति है और यदि वह उपहति, जो वह कारित करता है, यह घोर उपहति हो, तो वह स्वेच्छया घोर उपहति करता है , यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण :
कोई व्यक्ती स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह नहीं कहा जाता है सिवाय जबकि वह घोर उपहति कारित करता है और घोर उपहति कारित करने का उसका आशय हो या घोर उपहति कारित होना संभाव्य जानता हो । किन्तु यदि वह यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए कि वह सिी एक किस्म की घोर उपहति कारित कर दे वास्तव में दूसही ही किस्म की घोर उपहति कारित करता है तो वह स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह कहा जाता है ।
दृष्टांत :
(क) यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह (य) के चेहरे को स्थायी रुप से विद्रुपित कर दे, (य) के चेहरे पर प्रहार करता है जिससे (य) का चेहरा स्थायी रुप से विद्रुपित तो नहीं होता, किन्तु जिससे (य) को बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीडा कारित होती है । (क) ने स्वेच्छया घोर उपहति की है ।