IPc धारा २९२ : १.(अश्लील पुस्तकों आदि का विक्रय (ब्रिक्रि) आदि :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २९२ :
१.(अश्लील पुस्तकों आदि का विक्रय (ब्रिक्रि) आदि :
(See section 294 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : अश्लील पुस्तकों, आदि का विक्रय, आदि ।
दण्ड :प्रथम दोषसिद्धी पर दो वर्ष के लिए कारावास और दो हजार रुपए का जुर्माना, और द्वितीय या पश्चातवर्ती दोषसिद्धी पर पाँच वर्ष के लिए कारावास और पाँच हजार रुपए का जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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२.(१) उपधारा (२) के प्रयोजनार्थ किसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रुपण, आकृति या अन्य वस्तु को अश्लील समझा जाएगा यदि वह कामोद्दीपक है या कामुक व्यक्तियों के लिए रुचिकर है, या उसका या ( जहां उसमें दो या अधिक सुभिन्न (निश्चित) मदें (बाबत/ शिर्षक) समाविष्ट है वहां) उसकी किसी मद (बाबत/ शिर्षक) का प्रभाव, समग्ररुप से विचार करने पर, ऐसा है जो उस व्यक्तियों को दुराचारी तथा भ्रष्ट बनाऐं जिनके द्वारा उसमें अन्तर्विष्ट या विषय का पढा जाना, देखा जाना, या सुना जाना समभी सुसंगत परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संभाव्य है ।)
३.(२)) जो कोई –
क) किसी अश्लील पुस्तक, पुस्तिका, कागज, रेखाचित्र, रंगचित्र, रुपण या आकृति या किसी भी अन्य अश्लील वस्तु को चाहे वह कुछ भी हो, बेचेगा, भाडे पर देगा, वितरित करेगा, लोक प्रदर्शित करेगा, या उसको किसी भी प्रकार परिचालित करेगा, या उसे विक्रय भाहे, वितरण , लोक प्रदर्शन या परिचालन के प्रयोजनों के लिए रचेगा, उत्पादित करेगा, या अपने कब्जे में रखेगा; अथवा
ख)किसी अश्लील वस्तु का आयात या निर्यात या प्रवहण पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिए करेगा या यह जानते हुए, या विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि ऐसी वस्तु बेची, भोडे पर दी, वितरित या लोक प्रदर्शित, या किसी प्रकार से परिचालित की जाएगी; अथवा
ग) किसी ऐसे कारोबार में भाग लेगा या उससे लाभ प्राप्त करेगा, जिस कारोबार में वह यह जानता है या वह विश्वास करने का कारण रखता है, कि कोई ऐसी अश्लील वस्तुएं पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिए रची जाती, उत्पादित की जाती, क्रय की जाती, रखी जाती, आयात की जाती, निर्यात की जाती, प्रवहण की जाती, लोक प्रदर्शित की जाती या किसी भी प्रकार से परिचालित की जाती है ; अथवा
घ) यह विज्ञापित करेगा या किन्ही साधनों द्वारा चाहे वे कुछ भी हों यह ज्ञात कराएगा कि कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य में, जो इस धारा के अधीन अपराध है, लगा हुआ है, या लगने के लिए तैयार है, या यह कि कोई ऐसी अश्लील वस्तु किसी व्यक्ति से या किसी व्यक्ति के द्वारा प्राप्त की जा सकती है, अथवा
ङ) किसी ऐसे कार्य को जो इस धारा के अधीन अपराध है, करने की प्रस्थापना करेगा का प्रयत्न करेगा;
४.(प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा , जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, और द्वितीय या पश्चातवर्ती दोषसिद्धि की दशा में दोनों में से किसी भांति के करावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो पाँच हजार रुपए तक का हो सकेगा,) दण्डित किया जाएगा ।
५.(अपवाद :
इस धारा का विस्तार निम्नलिखित पर न होगा –
क) कोई ऐसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र, रुपण या आकृति –
एक) जिसका प्रकाशन लोकहित में होने के कारण इस आधार पर न्यायोचित साबित हो गया है कि ऐसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रुपण या आकृति विज्ञान, साहित्य, कला या विद्या या सर्वजन संबंध अन्य उद्देश्यो के हित में है; अथवा
दो) जो सद्भावपूर्वक धार्मिक प्रयोजनों के लिए रखी या उपयोग में लाई जाती है;
ख) कोई ऐसा रुपण जो –
एक) प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, १९५८ (१९५८ का २४ ) के अर्थ में प्राचीन संस्मारक पर या उसमें; अथवा
दो) किसी मंदिर पर या उसमें या मूर्तियों के प्रवहण के उपयोग में लाए जाने वाले या किसी धार्मिक प्रयोजन के लिए रखे या उपयोग में लाए जाने वाले किसी रथ पर,
तक्षित, उत्कीर्ण, रंगचित्रित या अन्यथा रुपित हों ।))
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१. १९२५ के अधिनियम सं० ८ की धारा २ द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९६९ के अधिनियम सं० ३६ की धारा २ द्वारा अन्त:स्थापित ।
३. १९६९ के अधिनियम सं० ३६ की धारा २ द्वारा धारा २९२ को उस धारा की उपधारा (२) के रुप में पुन:संख्यांकित किया गया था ।
४. १९६९ के अधिनियम सं० ३६ की धारा २ द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. १९६९ के अधिनयम सं० ३६ की धारा २ द्वारा अपवाद के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

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