भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २५० :
किसी ऐसे सिक्के का परिदान जो परिवर्तित किया गया है, इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया हो :
(See section 180 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : दूसरे को ऐसे सिक्के का परिदान, जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया है कि उसे परिवर्तित किया गया है ।
दण्ड :पाँच वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई किसी ऐसे सिक्के को कब्जे में रखते हुए, जिसके बारे में धारा २४६ या २४८ में परिभांषित अपराध किया गया है, और जिसके बारे में उस समय, जब यह सिक्का उसके कब्जे में आया था, वह यह जानता था कि ऐसा अपराध उसके बारें में किया गया है, कपटपूर्वक या बेइमानी से इस आशय से कि कपट किया जाए, किसी अन्य व्यक्ती को वह सिक्का परिदान करेगा, या किसी अन्य व्यक्ती को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा ।