Ipc धारा २२८क : कतिपय (कुछ) अपराधों आदि से पीडित व्यक्ती की पहचान का प्रकटीकरण ( प्रकट की गई बात) :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २२८ क :
१.(कतिपय (कुछ) अपराधों आदि से पीडित व्यक्ती की पहचान का प्रकटीकरण ( प्रकट की गई बात) :
(See section 72 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : कुछ अपराधों आदि से पीडित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण ।
दण्ड :दो वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना किसी कार्यवाही का मुद्रण या प्रकाशन ।
दण्ड :दो वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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१) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को, जिससे किसी ऐसे व्यक्ती की (जिसे धारा में इसके पश्चात व्यक्ती कहा गया है ) पहचान हो सकती है, २.(जिसके विरुद्ध धारा ३७६, ३.(धारा ३७६ क, धारा ३७६ कख, धारा ३७६ ख, धारा ३७६ ग, धारा ३७६ घ, धारा ३७६ घक, धारा ३७६ घख ) या धारा ३७६ ङ ) के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है, मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दो वर्ष की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
२) उपधारा (१) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के मुद्रण या प्रकाशन पर, यदि उससे पीडित व्यक्ती की पहचान हो सकती है, तब नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन –
क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए सद्भावपूर्व कार्य करता है, द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है; अथवा
ख) पीडित व्यक्ती द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है ; अथवा
ग) जहां पीडित व्यक्ती की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकृतचित्त है वहां, पीडित व्यक्ती के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है :
परन्तु निकट संबंधी द्वारा कोई ऐसा प्राधिकार किसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से, चाहे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी अन्य व्यक्ती को नहीं दिया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता प्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है ।
३) जो कोई उपधारा (१) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में कोई बात, उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
स्पष्टीकरण :
किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायलय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में अपराध कोटि में नहीं आता है ।
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१. १९८३ के अधिनयम सं० ४३ की धारा २ द्वारा अन्त:स्थापित ।
२. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम २०१३ धारा ४ द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान प्रर प्रतिस्थापित ।
३. दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, २०१८ (क्र. २२ सन २०१८) की धारा ३ द्वारा प्रतिस्थापित (भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग-२, खंड १, दिनांक ११-८-२०१८) पर अंग्रेजी में प्रकाशित ।

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