भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २१६ क :
१.(लुटेरों या डाकुओ को संश्रय (आसरा) देने के लिए शास्ति (सजा) :
(See section 254 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : लुटेरों या डाकुओं को संश्रय देना ।
दण्ड :सात वर्ष के लिए कठिन कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई व्यक्ती लूट या डकैती हाल ही में करने वाले है या हालही में लूट या डकैती कर चुके है, उसको या उनमें से किसी को, ऐसी लुट या डकैती का किया जाना सुकर बनाने के, या उनको या उनमें से किसी को दण्ड से प्रतिच्छादित (बजाना) करने के आशय से संश्रय (आसरा) देगा, वह कठिन कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तत्वहीन है कि लूट या डकैती २.(भारत) में या २.(भारत) के बाहर करनी आशयित है या की जा चुकी है ।
अपवाद :
इस उपबंध का विस्तार,ऐसे मामले में नही है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना अपराधी के पति या पत्नी द्वारा हो ।)
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१. १८९४ के अधिनियम सं० ३ की धारा ८ द्वारा अन्तस्थापित ।
२. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर प्रतिस्थापित ।