Hsa act 1956 धारा ६ : १.(सहदायिकी सम्पत्ति में के हित का न्यागमन :

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६
धारा ६ :
१.(सहदायिकी सम्पत्ति में के हित का न्यागमन :
१) हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन ) अधिनियम, २००५ के प्रारंभ से ही मिताक्षरा विधि द्वारा शासित किसी संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब में किसी सहदायिक की पुत्री, –
(a)(क) जन्म से ही अपने स्वयं के अधिकार से उसी रीति से सहदायिक बन जाएगी जैसे पुत्र होता है।
(b)(ख) सहदायिकी संपत्ति में उसे वही अधिकार प्राप्त होंगे जो उसे तब प्राप्त हुए होते जब वह पुत्र होती ;
(c)(ग) उक्त सहदायिकी संपत्ति के संबंध में पुत्र के समान ही दायित्वों के अधीन होगी, और हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक के प्रति किसी निर्देश से यह समझा जाएगा कि उसमें सहदायिक की पुत्री के प्रति कोई निर्देश सम्मलित है :
परंतु इस उपधारा की कोई बात किसी व्ययन या अन्यसंक्रामण को, जिसके अंतर्गत संपत्ति का ऐसा कोई विभाजन या वसीयती व्यय भी है, जो २० दिसम्बर, २००४ से पूर्व किया गया था, प्रभावित या अविधिमान्य नहीं करेगी ।
(२) कोई संपत्ति, जिसके लिए कोई हिन्दू नारी उपधारा (१) के आधार पर हकदार बन जाती है, उसके द्वारा सहदायिकी स्वामित्व की प्रसंगतियों सहित धारित की जाएगी और, इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी वसीयती व्ययन द्वारा उसके द्वारा किए जाने योग्य संपत्ति के रूप में समझी जाएगी।
(३) जहां किसी हिन्दू की, हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम २००५ के प्रारंभ के पश्चात मृत्यु हो जाती है, वहां मिताक्षरा विधि द्वारा शासित किसी संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब की संपत्ति में उसका हित, यथास्थिति, इस अधिनियम के अधीन वसीयती या निर्वसीयती उत्तराधिकार द्वारा न्यागत हो जाएगा परंतु उत्तरजीविता के आधार पर नहीं और सहदायिकी संपत्ति इस प्रकार विभाजित की गई समझी जाएगी मानो विभाजन हो चुका था, और –
(a)(क) पुत्री को वही अंश आबंटित होगा जो पुत्र को आबंटित किया गया है ;
(b)(ख) पूर्व मृत पुत्र या किसी पूर्व मृत पुत्री का अंश, जो उन्हें तब प्राप्त हुआ होता यदि वे विभाजन के समय जीवित होते, ऐसे पूर्व मृत पुत्र या ऐसी पूर्व मृत पुत्री की उत्तरजीवी संतान को आबंटित किया जाएगा; और
(c)(ग) किसी पूर्व मृत पुत्र या किसी पूर्व मृत पुत्री की पूर्व मृत संतान का अंश जो उस संतान ने उस रूप में प्राप्त किया होता यदि वह विभाजन के समय जीवित होती, यथास्थिति, पूर्व मृत पुत्र या किसी पूर्व मृत पुत्री की पूर्व मृत संतान की संतान को आबंटित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण :
इस धारा के प्रयोजनों के लिए हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक का हित संपत्ति में का वह अंश समझा जाएगा जो उसे आबंटित किया गया होता यदि उसकी अपनी मृत्यु से अव्यवहित पूर्व संपत्ति का विभाजन किया गया होता, इस बात का विचार किए बिना कि वह विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं।
(४) हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, २००५ के प्रारंभ के पश्चात कोई न्यायालय किसी पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध उसके पिता, पितामह, या प्रपितामह से शोध्य किसी ऋण की वसूली के लिए हिन्दू विधि के अधीन पवित्र बाध्यता के आधार पर ही ऐसे किसी ऋण को चुकाने के लिए ऐसे पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध कार्यवाही करने के किसी अधिकार को मान्यता नहीं देगा :
परन्तु हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, २००५ के प्रारंभ से पूर्व लिए गए ऋण की दशा में इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई बात निम्नलिखित को प्रभावित नहीं करेगी, –
(a)(क) यथास्थिति, पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए किसी ऋणदाता का अधिकार ; या
(b)(ख) किसी ऐसे ऋण के संबंध में या उसके चुकाए जाने के लिए किया गया कोई संक्रामण और कोई ऐसा अधिकार या संक्रामण पवित्र बाध्यता के नियम के अधीन वैसी ही रीति में और उसी सीमा तक प्रवर्तनीय होगा जैसा कि उस समय प्रवर्तनीय होता जबकि हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, २००५ अधिनियमित न किया गया होता।
स्पष्टीकरण :
खंड (क) के प्रयोजनों के लिए, पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र पद से यह समझा जाएगा कि वह, यथास्थिति, ऐसे पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के प्रति निर्देश है, जो हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, २००५ के प्रारंभ के पूर्व पैदा हुआ था दत्तक ग्रहण किया गया था।
(५) इस धारा में अन्तर्विष्ट कोई बात ऐसे विभाजन को लागू नहीं होगी जो २० दिसम्बर, २००४ से पूर्व किया गया है।
स्पष्टीकरण :
इस धारा के प्रयोजनों के लिए विभाजन से रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, १९०८ (१९०८ के १६) अधीन सम्यक रूप से रजिस्ट्रीकृत किसी विभाजन विलेख के निष्पादन द्वारा किया गया कोई विभाजन या किसी न्यायालय की किसी डिक्री द्वारा किया गया विभाजन अभिप्रेत है।)
————
१. २००५ के अधिनियम सं० ३९ की धारा ३ द्वारा (९-९-२००५ से) धारा ६ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

Leave a Reply