हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५
धारा २३ :
कार्यवाहियों में डिक्री :
(१) यदि इस अधिनियम के अधीन होने वाली किसी कार्यवाही में, चाहे उसमें प्रतिरक्षा में की गई हो या नहीं, न्यायालय का समाधान हो जाए कि –
(a)(क) अनुतोष अनुदत्त करने के आधारों में से कोई न कोई आधार विद्यमान है और अर्जीदार १.(उन मामलों को छोडक़र, जिनमें उसके द्वारा धारा ५ के खण्ड (दो) के उपखंड (क), उपखण्ड (ख) या उपखण्ड (ग) में विनिर्दिष्ट आधार पर अनुतोष चाहा गया है ) अनुतोष के प्रयोजन से अपने ही दोष या न्यिोग्यता का किसी प्रकार फायदा नहीं उठा रहा या उठा रही है, और
(b)(ख) जहां कि अर्जी का आधार २.(***) धारा १३ की उपधारा (१) के खण्ड (एक) में निर्दिष्ट आधार हो वहां न तो अर्जीदार परिवादित कार्य या कार्यों का किसी प्रकार से उपसाधक रहा है और न उसने उनका मौनानुमोदन या उपमर्षण किया है अथवा जहां कि अर्जी का आधार क्रूरता हो वहां अर्जीदार ने उस क्रूरता का किसी प्रकार उपमर्षण नहीं किया है, और
(bb)१.(खख) जब विवाह-विच्छेद पारस्परिक सम्मत्ति के आधार पर चाहा गया है, और ऐसी सम्मति बल, कपट या असयमक अभियोजित नहीं की जाती है, और)
(c)(ग) ३.(अर्जी (जो धारा ११ के अधीन पेश की गई अर्जी नहीं है) प्रत्यर्थी के साथ दुस्सन्धि करके उपस्थापित या अभियोजित नहीं की जाती है, और
(d)(घ) कार्यवाही संस्थित करने में कोई अनावश्यक या अनुचित विलम्ब नहीं हुआ है, और
(e)(ङ) अनुतोष अनुदत्त न करने के लिए कोई अन्य वैध आधार नहीं है, तो ऐसी ही दशा में किन्तु अन्यथा नहीं,
न्यायालय तद्नुसार ऐसा अनुतोष डिक्री कर देगा ।
(२) इस अधिनियम के अधीन कोई अनुतोष अनुदत्त करने के लिए अग्रसर होने के पूर्व, यह न्यायालय का प्रथमत: कर्तव्य होगा कि वह ऐसी हर दशा में, जहां कि मामले की प्रकृति और परिस्थितियों से संगत रहते हुए ऐसा करना सम्भव हो पक्षकारों के बीच मेल मिलाप कराने का पूर्ण प्रयास करे :
१.(परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसी कार्यवाही को लागू नहीं होगी जिमसें धारा १३ की उपधारा (१) के खंड (दो), खंड (तीन), खंड (चार), खंड (पाच), खंड (छह) या खंड (सात) में विनिर्दिष्ट आधारों में से किसी आधार पर अनुतोष चाहा गया है।
१.(३) ऐसा मेल-मिलाप कराने में न्यायालय की सहायता के प्रयोजन के लिए न्यायालय, यदि पक्षकार ऐसा चाहते तो या यदि न्यायालय ऐसा करना न्यायसंगत और उचित समझे तो, कार्यवाहियों को १५ दिन से अनधिक की युक्तियुक्त कालावधि के लिए स्थगित कर सकेगा और उस मामले को पक्षकारों द्वारा इस निमित्त नामित किसी व्यक्ति को या यदि पक्षकार कोई व्यक्ति नामित करने में असफल रहते हैं तो न्यायालय द्वारा नामनिर्देशित किसी व्यक्ति को इन निदेशों के साथ निर्देशित कर सकेगा कि वह न्यायालय को इस बारे में रिपोर्ट दे कि मेल-मिलाप कराया जा सकता है या नहीं तथा करा दिया गया है या नहीं और न्यायालय कार्यवाही का निपटारा करने में ऐसी रिपोर्ट को सम्यक रूप से ध्यान में रखेगा ।
(४) ऐसे हर मामले में, जिसमें विवाह का विघटन विवाह-विच्छेद द्वारा होता है, डिक्री पारित करने वाला न्यायालय हर पक्षकार को उसकी प्रति मुफ्त देगा ।)
———-
१. १९७६ के अधिनियम सं० ६८ की धारा १६ द्वारा अन्त:स्थापित ।
२. १९७६ के अधिनियम सं० ६८ की धारा १६ द्वारा कतिपय शब्दों का लोप किया गया।
३. १९७६ के अधिनियम सं० ६८ की धारा १६ द्वारा अर्जी के स्थान पर प्रतिस्थापित ।