भारत का संविधान
तीसरी अनुसूची :
*.(अनुच्छेद ७५(४), ९९, १२४(६), १४८(२), १६४(३), १८८ और २१९) :
शपथ या प्रतिज्ञान के प्ररुप :
एक :
संघ के मंत्री के लिए पद की शपथ का प्ररुप :-
मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, १(मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा,) मैं संघ के मंत्री के रुप ेमं अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंत:करण से निर्वहन करुंगा तथा मैं भय या पक्षकात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करुंगा ।
दोन :
संघ के मंत्री के लिए गोपनीयता की शपथ का प्ररुप :-
मै, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि जो विषय संघ के मंत्री के रुप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रुप में अपने कर्तव्यों के सम्यक् निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से संसूचित या प्रकट नहीं करुंगा ।
२.(तीन :
क :
संसद के लिए निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररुप :-
मैं, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) में स्थान भरने के लिए अभ्यर्थी के रुप में नामनिर्देशित हुआ हूं ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, और मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा ।
ख :
संसद् के सदस्य द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररुप :-
मैं, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) का सदस्य निर्वाचित (या नामनिर्देशित) हुआ हूं ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूं उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करुंगा ।
चार :
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक-महालेखापरिक्षक द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररुप :-
मैं, अमुक, जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति (या न्यायाधीश) (या भारत का नियंत्रक -महालेखापरीक्षक) नियुक्त हुआ हूं, ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, १.( मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा,) तथा मैं सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करुंगा तथा मै संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूंगा ।
पांच :
किसी राज्य के मंत्री के लिए पद की शपथ का प्ररुप :-
मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, १.(मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा,) मैं ————- राज्य के मंत्री के रुप में अपने कर्तव्यों का श्रद्वापूर्वक और शुद्ध अंत:करण से निर्वहन करुंगा तथा मैं भया या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करुंगा ।
छह :
किसी राज्य के मंत्री के लिए गोपनियता की शपथ का प्ररुप :-
मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि जो विषय ————- राज्य के मंत्री के रुप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रुप में अपने कर्तव्यों के सम्यक् निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से संसूचित या प्रकट नहीं करुंगा ।
३.(सात :
क :
किसी राज्य के विधान-मंडल के लिए निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररुप :-
मैं, अमुक, ————- जो विधान सभा (या विधान परिषद्) में स्थान भरने के लिए अभ्यर्थी के रुप में नामनिर्देशित हुआ हूं, ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, और मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखुंगा ।
ख) किसी राज्य के विधान-मंडल के सदस्य द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररुप :-
मैं, अमुक, जो विधान सभा (या विधान परिषद्) का सदस्य निर्वाचित (या नामनिर्देशित) हुआ हूं ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखुंगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूं उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करुंगा ।
आठ :
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररुप :-
मैं, अमुक, जो ————– उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति (या न्यायाधीश) नियुक्त हुआ हूं ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, १.(मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा,) तथा मैं सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करुंगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूंगा ।
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*. अनुच्छेद ८४(क) और अनुच्छेद १७३(क) भी देखिए ।
१. संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम १९६३ की धारा ५ द्वारा अंत:स्थापित ।
२. संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम १९६३ की धारा ५ द्वारा प्ररुप ३ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. संविधान (सोलहवा संशोधन) अधिनियम १९६३ की धारा ५ द्वारा प्ररुप ७ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।