Constitution अनुच्छेद ५५ : राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति ।

भारत का संविधान
अनुच्छेद ५५ :
राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति ।
१)जहां तक साध्य हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न- भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता होगी ।
२)राज्यों में आपस में ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में समतुल्यता प्राप्त कराने के लिए संसद् और प्रत्येक राज्य की विधान सभा का प्रत्येक निर्वाचित सदस्य ऐसे निर्वाचन में जितने मत देने का हकदार है उनकी संख्या निम्नलिखित रीति से अवधारित की जाएगी, अर्थात्: –
क) किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने कि एक हजार के गुणित उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वांचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए ;
ख) यदि एक हजार के उक्त गुणितों को लेने के बाद शेष पांच सौ कम नहीं है तो उपखंड (क) में निर्दिष्ट प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड दिया जाएगा;
ग)संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या वह होगी जो उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या संसद् के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए. जिसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा और अन्य भिन्नों की उपेक्षा की जाएगी ।
३)राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रातिनिधित्व पध्दति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा ।
१.(स्पष्टीकरण :
इस अनुच्छेद में, जनसंख्या पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आकडे प्रकाशित हो गए हैं :
परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकडे प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन् २.(२०२६) के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकडे प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह १९७१ की जनगणना के प्रति निर्देश है ।)
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१.संविधान (बयासीवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा १२ द्वारा ( ३-१-१९७७ से) स्पष्टीकरण के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२.संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम,२००१ की धारा २ द्वारा २००० के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

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