भारत का संविधान
अनुच्छेद ३७१घ :
१.(२.(आंध्रप्रदेश राज्य या तेलंगाना राज्य के संबंध में विशेष उपबंध । )
२.(१) राष्ट्रपति, आंध्रप्रदेश राज्य या तेलंगाना राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा, प्रत्येक राज्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए दोनों राज्यों के विभिन्न भागों के लोगों के लिए लोक नियोजन के विषय में और शिक्षा के विषय में साम्यापूर्ण अवसरों और सुविधाओं का उपबंध कर सकेगा और दोनों राज्यों के विभिन्न भागों के लिए भिन्न-भिन्न उपबंध किए जा सकेंगे । )
२) खंड (१) के अधीन किया गया आदेश विशिष्टतया-
क) राज्य सरकार से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह राज्य की सिविल सेवा में पदों के किसी वर्ग या वर्गों का अथवा राज्य के अधीन सिविल पदों के किसी वर्ग या वर्गों का राज्य के भिन्न भागों के लिए भिन्न स्थानीय काडरों में गठन करे और ऐसे सिध्दांतों और प्रक्रिया के अनुसार जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे पदों को धारण करने वाले व्यक्तियों का इस प्रकार गठित स्थानीय काडरों में आबंटन करे ;
ख)राज्य के ऐसे भाग या भागों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा जो –
१) राज्य सरकार के अधीन किसी स्थानीय काडर में (चाहे उसका गठन इस अनुच्छेद के अधीन आदेश के अनुसरण में या अन्यथा किया गया है ) पदों के लिए सीधी भर्ती के लिए,
२) राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन किसी काडर में पदों के लिए सीधी भर्ती के लिए, और
३)राज्य के भीतर किसी विश्वविद्यालय में या राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी अन्य शिक्षा संस्था में प्रवेश के प्रयोजन के लिए,
स्थानीय क्षेत्र समझे जाएंगे ;
ग) वह विस्तार विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिस तक, वह रीति विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिससे और व शर्तें विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिनके अधीन, यथास्थिति, ऐसे काडर, विश्वविद्यालय या अन्य शिक्षा संस्था के संबंध में ऐसे अभ्यर्थियों को, जिन्होंने आदेश में विनिर्दिष्ट किसी अवधि के लिए स्थानीय क्षेत्र में निवास या अध्ययन किया है –
१)उपखंड (ख) में निर्दिष्ट ऐसे काडर में जो इस निमित्त आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, पदों के लिए सीधी भर्ती के विषय में ;
२)उपखंड (ख) में निर्दिष्ट ऐसे विश्वविद्यालय या अन्य शिक्षा संस्था में जो इस निमित्त आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, प्रवेश के विषय में,
अधिमान दिया जाएगा या उनके लिए आरक्षण किया जाएगा ।
३)राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, ३.(आंध्र प्रदेश राज्य के लिए और तेलंगाना राज्य के लिए ) एक प्रशासनिक अधिकरण के गठन के लिए उपबंध कर सकेगा जो अधिकरण निम्नलिखित विषयों की बाबत ऐसी अधिकारिता, शक्ति और प्राधिकार का जिसके अंतर्गत वह अधिकारिता, शक्ति या प्राधिकार है जो संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७३ के प्रारंभ से ठीक पहले (उच्चतम न्यायालय से भिन्न) किसी न्यायालय द्वारा अथवा किसी अधिकरण या अन्य प्राधिकारी द्वारा प्रयोक्तव्य था प्रयोग करेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, अर्थात् :-
क) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, नियुक्त, आबंटन या प्रोन्नति ;
ख) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, नियुक्त, आबंटित या प्रोन्नत व्यक्तियों की ज्येष्ठता ;
ग) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर नियुक्त, आबंटित या प्रोन्नत व्यक्तियों की सेवा की ऐसी अन्य शर्तें जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं ।
४) खंड (३) के अधीन किया गया आदेश –
क) प्रशासनिक अधिकरण को उसकी अधिकारिता के भीतर किसी विषय से संबंधित व्यथाओं के निवारण के लिए ऐसे अभ्यावेदन प्राप्त करने के लिए, जो राष्ट्रपति आदेश में विनिर्दिष्ट करे और उस पर ऐसे आदेश करने के लिए जो वह प्रशासनिक अधिकरण ठीक समझता है, प्राधिकृत कर सकेगा ;
ख) प्रशासनिक अधिकरण की शक्तियों और प्राधिकारों और प्रक्रिया के संबंध में ऐसे उपबंध (जिनके अंतर्गत प्रशासनिक अधिकरण की अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति के संबंध में उपबंध हैं ) अंतर्विष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रपति आवश्यक समझे ;
ग) प्रशासनिक अधिकरण को उसकी अधिकारिता के भीतर आने वाले विषयों से संबंधित और उस आदेश के प्रारंभ से ठीक पहले (उच्चतम न्यायालय से भिन्न) किसी न्यायालय अथवा किसी अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के ऐसे वर्गों के , जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, अंतरण के लिए उपबंध कर सकेगा ;
घ)ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में और परिसीमा, साक्ष्य के बारे में या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि को किन्हीं अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू करने के लिए उपबंध हैं ) अंतर्विष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रपति आवश्यक समझे ।
*५) प्रशासनिक अधिकरण का किसी मामले को अंतिम रूप से निपटाने वाला आदेश, राज्य सरकार द्वारा उसकी पुष्टि किए जाने पर या आदेश किए जाने की तारीख से तीन मास की समाप्ति पर, इनमें से जो भी पहले हो, प्रभावी हो जाएगा :
परंतु राज्य सरकार, विशेष आदेश द्वारा, जो लिखित रूप में किया जाएगा और जिसमें उसके कारण विनिर्दिष्ट किए जाएंगे, प्रशासनिक अधिकरण के किसी आदेश को उसके प्रभावी होने के पहले उपांतरित या रद्द कर सकेगी और ऐसे मामले में प्रशासनिक अधिकरण का आदेश, यथास्थिति, ऐसे उपांतरित रूप में ही प्रभावी होगा या वह निष्प्रभाव हो जाएगा ।
६) राज्य सरकार द्वारा खंड (५) के परंतुक के अधीन किया गया प्रत्येक विशेष आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, राज्य विधान-मंडल के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा ।
७)राज्य के उच्च न्यायालय को प्रशासनिक अधिकरण पर अधीक्षण की शक्ति नहीं होगी और (उच्चतम न्यायालय से भिन्न ) कोई न्यायालय अथवा कोई अधिकरण, प्रशासनिक अधिकरण की या उसके संबंध में अधिकारिता, शक्ति या प्राधिकार के अधीन किसी विषय की बाबत किसी अधिकारिता, शक्ति या प्राधिकार का प्रयोग नहीं करेगा ।
८) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि प्रशासनिक अधिकरण का निरंतर बने रहना आवश्यक नहीं है तो राष्ट्रपति आदेश द्वारा प्रशासनिक अधिकरण का उत्सादन कर सकेगा और ऐसे उत्सादन से ठीक पहले अधिकरण के समक्ष लंबित मामलों के अंतरण और निपटारे के लिए ऐसे आदेश में ऐसे उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।
९) किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के होते हुए भी, –
क) किसी व्यक्ति की कोई नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण की बाबत जो-
एक)१ नवंबर, १९५६ से पहले यथाविद्यमान हैदराबाद राज्य की सरकार के या उसके भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन उस तारीख से पहले किसी पद पर किया गया था, या
दो) संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७३ के प्रारंभ से पहले आंध्र प्रदेश राज्य की सरकार के अधीन या उस राज्य के भीतर किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन किसी पद पर किया गया था, और
ख) उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा या उसके समक्ष की गई किसी कार्रवाई या बात की बाबत,
केवल इस आधार पर कि ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण, ऐसी नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण की बाबत,यथास्थिति, हैदराबाद राज्य के भीतर या आंध्र प्रदेश राज्य के किसी भाग के भीतर निवास के बारे में किसी अपेक्षा का उपबंध करने वाली तत्समय प्रवृत्त विधि के अनुसार नहीं किया गया था, यह नहीं समझा जाएगा कि वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शून्य रहा था ।
१०) इस अनुच्छेद के और राष्ट्रपति द्वारा इसके अधीन किए गए किसी आदेश के उपबंध इस संविधान के किसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।
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१.संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७३ की धारा ३ द्वारा (१–७-१९७४ से ) अंत:स्थापित ।
२.आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०१४ (२०१४ का ६ ) की धारा ९७ द्वारा (२-६-२०१४ से ) प्रतिस्थापित ।
३.आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०१४ (२०१४ का ६ ) की धारा ९७ द्वारा (२-६-२०१४ से ) प्रतिस्थापित ।
* उच्चतम न्यायालय ने पी. सांबमूर्ति और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और एक अन्य १९८७ (१) एस.सी.सी. पृ.३६२ में अनुच्छेद ३७१ घ के खंड (५) और उसके परंतुक का असंवैधानिक और शून्य घोषित किया ।