Constitution अनुच्छेद ३६६ : परिभाषाएं ।

भारत का संविधान
अनुच्छेद ३६६ :
परिभाषाएं ।
इस संविधान में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, निम्नलिखित पदों के निम्नलिखित अर्थ हैं, अर्थात् :-
१)कृषि -आय से भारतीय आय-कर से संबंधित अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिए यथा परिभाषित कृषि- आय अभिप्रेत है ;
२) आंग्ल भारतीय से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसका पिता या पितृ-परंपरा में कोई अन्य पुरूष जनक यूरोपीय उद्भव का है या था, किन्तु जो भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवासी है और जो ऐसे राज्यक्षेत्र में ऐसे माता-पिता से जन्मा है या जन्मा था जो वहां साधारणतया निवासी रहे हैं और केवल अस्थायी प्रयोजनों के लिए वास नहीं कर रहे हैं ;
३)अनुच्छेद से इस संविधान का अनुच्छेद अभिप्रेत है ;
४) उधार लेना के अंतर्गत वार्षिकियां देकर धन लेना है और उधार का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ;
१.(४क) ***)
५)खंड से उस अनुच्छेद का खंड अभिप्रेत है जिसमें वह पद आता है ;
६) निगम कर से कोई आय पर कर अभिप्रेत है जहां तक वह कर कंपनियों द्वारा संदेय है और ऐसा कर है जिसके संबंध में निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं, अर्थात् :-
क) वह कृषि- आय के संबंध में प्रभार्य नहीं है ;
ख) कंपनियों द्वारा संदत्त कर के संबंध में कंपनियों द्वारा व्यष्टियों को संदेय लाभांशों में से किसी कटौती का किया जाना उस कर को लागू अधिनियमितियों द्वारा प्राधिकृत नहीं है ;
ग) ऐसे लाभांश प्राप्त करने वाले व्यष्टियों की कुल आय की भारतीय आय-कर के प्रयोजनों के लिए गणना करने में अथवा ऐसे व्यष्टियों द्वारा संदेय या उनको प्रतिदेय भारतीय आय-कर की गणना करने में , इस प्रकार संदत्त कर को हिसाब में लेने के लिए कोई उपबंध विद्यमान नहीं है ;
७) शंका की दशा में, तत्स्थानी प्रांत तत्स्थानी देशी राज्य या तत्स्थानी राज्य से ऐसा प्रांत ,देशी राज्य या राज्य अभिप्रेत है जिसे राष्ट्रपति प्रश्नगत किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, तत्स्थानी प्रांत, तत्स्थानी देशी राज्य या तत्स्थानी राज्य अवधारित करे ;
८)ऋण के अंतर्गत वार्षिकियों के रूप में मूलधन के प्रतिसंदाय की किसी बाध्यता के संबंध में कोई दायित्व और किसी प्रत्याभूति के अधीन कोई दायित्व है और ऋणभार का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ;
९)संपदा शुल्क से वह शुल्क अभिप्रेत है जो ऐसे नियमों के अनुसार जो संसद् या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा ऐसे शुल्क के संबंध में बनाई गई विधियों द्वारा या उनके अधीन विहित किए जाएं, मृत्यु पर संक्रांत होने वाली या उक्त विधियों के उपबंधों के अधीन इस प्रकार संक्रांत हुई समझी गई सभी संपत्ति के मूल मूल्य पर या उसके प्रति निर्देश से निर्धारित किया जाए ;
१०)विद्यमान विधि से ऐसी विधि, अध्यादेश आदेश उपविधि नियम या विनियम अभिप्रेत है जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले ऐसी विधि, अध्यादेश, आदेश, उपविधि,नियम या विनियम बनाने की शक्ति रखने वाले किसी विधान-मंडल, प्राधिकारी या व्यक्ति द्वारा पारित किया गया है या बनाया गया है ;
११) फेडरल न्यायालय से भारत शासन अधिनियम, १९३५ के अधीन गठित फेडरल न्यायालय अभिप्रेत है ;
१२) माल के अंतर्गत सभी सामग्री वाणिज्या और वस्तुएं हैं ;
२.(१२क) माल और सेवा कर से मानवीय उपभोग के लिए एल्कोहाली लिकर के प्रदाय पर कर के सिवाय माल या सेवाओं अथवा दोनों के प्रदाय पर कोई कर अभिप्रेत है;)
१३) प्रत्याभूति के अंतर्गत ऐसी बाध्यता है जिसका, किसी उपक्रम के लाभों के किसी विनिर्दिष्ट रकम से कम होने की दशा में, संदाय करने का वचनबंध इस संविधान के प्रारंभ से पहले किया गया है ;
१४ उच्च न्यायालय से ऐसा न्यायालय अभिप्रेत है जो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए किसी राज्य के लिए उच्च न्यायालय समझा जाता है और इसके अंतर्गत –
क) भारत के राज्यक्षेत्र में इस संविधान के अधीन उच्च न्यायालय के रूप में गठित या पुनर्गठित कोई न्यायालय है, और
ख) भारत के राज्यक्षेत्र में संसद् द्वारा विधि द्वारा इस संविधान के सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए उच्च न्यायालय के रूप में घोषित कोई अन्य न्यायालय है ;
१५) देशी राज्य से ऐसा राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है जिसे भारत डोमिनियन की सरकार से ऐसे राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त थी;
१६) भाग से इस संविधान का भाग अभिप्रेत है ;
१७) पेंशन से किसी व्यक्ति को या उसके संबंध में संदेय किसी प्रकार की पेंशन अभिप्रेत है चाहे वह अभिदायी है या नहीं है और इसके अंतर्गत इस प्रकार संदेय सेवानिवृत्ति वेतन, इस प्रकार संदेय उपदान और किसी भविष्य निधि के अभिदानों की, उन पर ब्याज या उनमें अन्य परिवर्धन सहित या उसके बिना, वापसी के रूप में इस प्रकार संदेय कोई राशि या राशियां हैं ;
१८)आपात की उद्घोषणा से अनुच्छेद ३५२ के खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा अभिप्रेत है ;
१९) लोक अधिसूचना से यथास्थिति, भारत के राजपत्र में या किसी राज्य के राजपत्र में अधिसूचना अभिप्रेत है ;
२०)रेल के अंतर्गत –
क) किसी नगरपालिक क्षेत्र में पूर्णतया स्थित ट्राम नहीं है, या
ख) किसी राज्य में पूर्णतया स्थित संचार की ऐसी अन्य लाइन नहीं है जिसकी बाबत संसद् ने विधि द्वारा घोषित किया है कि वह रेल नहीं है 😉
३.(२१) ***)
४.(२२) शासक से ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ के प्रारंभ से पहले किसी समय, राष्ट्रपति से किसी देशी राज्य के शासक के रूप में मान्यता प्राप्त थी या ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे ऐसे प्रारंभ से पहले किसी समय, राष्ट्रपति से ऐसे शासक के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता प्राप्त थी 😉
२३) अनुसूची से इस संविधान की अनुसूची अभिप्रेत है ;
२४) अनुसूचित जातियों से ऐसी जातियां, मूलवंश या जनजातियां अथवा ऐसी जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भाग या उनमें के यूथ अभिप्रेत हैं जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद ३४१ के अधीन अनुसूचित जातियां समझा जाता है ;
२५) अनुसूचित जनजातियों से ऐसी जनजातियां या जनजाति समुदाय अथवा ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदायों के भाग या उनमें के यूथ अभिप्रेत हैं जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद ३४२ के अधीन अनुसूचित जनजातियां समझा जात है ;
२६) प्रतिभूतियों के अंतर्गत स्टाक है ;
५.(२६क) सेवाओं से माल से भिन्न कुछ भी अभिप्रेत है;
२६ख) राज्य के अंतर्गत अनुच्छेद २४६क, अनुच्छेद २६८, अनुच्छेद २६९, अनुच्छेद २६९क और अनुच्छेद २७९क के संदर्भ में, विधान-मंडल वाला कोई संघ राज्यक्षेत्र भी आता है;)
६.(२६ग) समाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछडे वर्गों से ऐसे पिछडे वर्ग अभिप्रेत है, जिन्हें, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद ३४२क के अधीन ऐसा समझा गया है ।)
२७) उपखंड से उस खंड का उपखंड अभिप्रेत है जिसमें वह पद आता है ;
२८) कराधान के अंतर्गत किसी कर या लाग का अधिरोपण है चाहे वह साधारण या स्थानीय या विशेष है और कर का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ;
२९) आय पर कर के अंतर्गत अतिलाभ-कर की प्रकृति का कर है ;
७.(२९क) माल के क्रय या विक्रय पर कर के अंतर्गत –
क)वह कर है जो नकदी, आस्थगित संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए किसी माल में संपत्ति के ऐसे अंतरण पर है जो किसी संविदा के अनुसरण में न करके अन्यथा किया गया है ;
ख) वह कर है जो माल में संपत्ति के (चाहे वह माल के रूप में हो या किसी अन्य रूप में ) ऐसे अंतरण पर है जो किसी संकर्म संविदा के निष्पादन में अंतर्वलित है ;
ग) वह कर है जो अवक्रय या किस्तों में संदाय की पध्दति से माल के परिदान पर है ;
घ) वह कर है जो नकदी, आस्थगित संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए किसी माल का किसी प्रयोजन के लिए उपयोग करने के अधिकार के (चाहे वह विनिर्दिष्ट अवधि के लिए हों या नहीं ) अंतरण पर है ;
ड) वह कर है जो नकदी, आस्थगित संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए किसी माल के प्रदाय पर है जो किसी अनिगमित संगम या व्यक्ति – निकाय द्वारा अपने किसी सदस्य को किया गया है ;
च) वह कर है, जो ऐसे माल के, जो खाद्य या मानव उपभोग के लिए कोई अन्य पदार्थ या कोई पेय है (चाहे वह मादक हो या नहीं ) ऐसे प्रदाय पर है, जो किसी सेवा के रूप में या सेवा के भाग के रूप में या किसी भी अन्य रीति से किया गया है और ऐसा प्रदाय या सेवा नकदी, आस्थगित संदाय या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए की गई है ,
और माल के ऐसे अंतरण, परिदान या प्रदाय के बारे में यह समझा जाएगा कि वह उस व्यक्ति द्वारा, जो ऐसा अंतरण, परिदान या प्रदाय कर रहा है, उस माल का विक्रय है, और उस व्यक्ति द्वारा जिसको ऐसा अंतरण, परिदान या प्रदाय किया जाता है, उस माल का क्रय है ।)
८.(३०) संघ राज्यक्षेत्र से पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट कोई संघ राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत ऐसा अन्य राज्यक्षेत्र है जो भारत के राज्यक्षेत्र में समाविष्ट है किंतु उस अनुसूची में विनिर्दिष्ट नहीं है । )
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१.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ५४ द्वारा (१-२-१९७७ से) खंड ४क अंत:स्थापित किया गया और उसका संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७७ की धारा ११ द्वारा (१३-४-१९७८ से) लोप किया गया ।
२. संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम २०१६ की धारा १४ द्वारा (१६-९-२०१६ से) अन्त:स्थापित ।
३.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा खंड (२१)का लोप किया गया ।
४.संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७१ की धारा ४ द्वारा खंड (२२)के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ५४ द्वारा (१-२-१९७७ से) खंड (२६क) अंत:स्थापित किया गया और उसका संविधान (तैतालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७७ की धारा ११ द्वारा (१३-४-१९७८ से) लोप किया गया और संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम २०१६ की धारा १४ द्वारा (१६-९-२०१६ से) अन्त:स्थापित ।
६. संविधान (एक सौ पाचवां संशोधन) अधिनियम २०२१ की धारा ४ द्वारा (१५-९-२०२१ से) खंड (२६ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
७.संविधान (छियालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९८२ की धारा ४ द्वारा अंत:स्थापित ।
८.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा खंड (३०) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

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