Constitution अनुच्छेद ३५२ : आपात की उद्घोषणा ।

भारत का संविधान
भाग १८ :
आपात उपबंध :
अनुच्छेद ३५२ :
आपात की उद्घोषणा ।
१)यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि गंभीर आपात विद्यमान है जिससे युध्द या बाह्य आक्रमण या १.(सशस्त्र विद्रोह ) के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा २.(संपूर्ण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के संबध में जो उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट किया जाए ) इस आशय की घोषणा कर सकेगा ।
३.(स्पष्टीकरण :
यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि युध्द या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का संकट सन्निकट है तो यह घोषित करने वाली आपात की उद्घोषणा कि युध्द या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है, युध्द या ऐसे किसी आक्रमण या विद्रोह के वास्तव में होने से पहले भी की जा सकेगी। )
४.(२) खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा में किसी पश्चात्वर्ती उद्घोषणा द्वारा परिवर्तन किया जा सकेगा या उसको वापस लिया जा सकेगा ।
(३) राष्ट्रपति, खंड (१) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्घोषणा तब तक नहीं करेगा जब तक संघ के मंत्रिमंडल का (अर्थात् उस परिषद् का जो अनुच्छेद ७५ के अधीन प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल स्तर के अन्य मंत्रियों से मिलकर बनती है) यह विनिश्चय कि ऐसी उद्घोषणा की जाए, उसे लिखित रूप में संसूचित नहीं किया जाता है ।
४)इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी और जहां वह पूर्ववर्ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है वहां वह एक मास की समाप्ति पर, यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है तो, प्रवर्तन में नहीं रहेगी :
परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पूर्ववर्ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है ) उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक सभा का विघटन इस खंड में निर्दिष्ट एक मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबंध में कोर्स संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है ।
५) इस प्रकार अनुमोदित उद्घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, खंड (४) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में दूसरे संकल्प के पारित किए जाने की तारीख से छह मास की अवधि की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी :
परन्तु यदि और जितनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प संसद् के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है तो और उतनी बार वह उद्घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहती ; छह मास की और अवधि तक प्रवृत्त बनी रहेगी :
परन्तु यह और कि यदि लोक सभा का विघटन छह मास की ऐसी अवधि के दौरान हो जाता है और ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अवधि के दौरान पारित नहीं किया गया है तो , उद्घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है ।
६)खंड (४) और खंड (५) के प्रयोजनों के लिए संकल्प संसद् के किसी सदन द्वारा उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा ही पारित किया जा सकेगा ।
७)पूर्वगामी खंडों में किसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सभा खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्घोषणा का, यथास्थिति, अननुमोदन या उसे प्रवृत्त बनाए रखने का अननुमोदन करने वाला संकल्प पारित कर देती है तो राष्ट्रपति ऐसी उद्घोषणा को वापस ले लेगा ।
८) जहां खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्घोषणा का, यथास्थिति, अननुमोदन या उसको प्रवृत्त बनाए रखने का अननुमोदन करने वाले संकल्प को प्रस्तावित करने के अपने आशय की सूचना लोक सभा की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दसवें भाग द्वारा हस्ताक्षर करके लिखित रूप में, –
क)यदि लोक सभा सत्र में है तो अध्यक्ष को, या
ख) यदि लोक सभा सत्र में नहीं है तो राष्ट्रपति को, दी गई है वहां ऐसे संकल्प पर विचार करने के प्रयोजन के लिए लोक सभा की विशेष बैठक, यथास्थिति, अध्यक्ष या राष्ट्रपति को ऐसी सूचना प्राप्त होने की तारीख से चौदह दिन के भीतर की जाएगी । )
५.(६.(९) इस अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत, युध्द या बाह्य आक्रमण या ७.(सशस्त्र विद्रोह ) के अथवा युध्द या बाह्य आक्रमण या ३(सशस्त्र विद्रोह ) का संकट सन्निकट होने के विभिन्न आधारों पर विभिन्न उद्घोषणाएं करने की शक्ति होगी चाहे राष्ट्रपति ने खंड (१) के अधीन पहले ही कोई उद्घोषणा की है या नहीं और ऐसी उद्घोषणा प्रवर्तन में है या नहीं ।
८. (***)
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१.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ३७ द्वारा (२०-६-१९७९ से) आभ्यंतरिक अशान्ति के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७६ की धारा ४८ द्वारा (३-१-१९७७ से) अंत:स्थापित ।
३.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ३७ द्वारा (२०-६-१९७९ से) अंत:स्थापित ।
४.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ३७ द्वारा (२०-६-१९७९ से) खंड (२), खंड (२क) और खंड (३) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५.संविधान (अडतीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७५ की धारा ५ द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) अंत:स्थापित ।
६.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ३७ द्वारा (२०-६-१९७९ से) खंड (४) को खंड (९) रूप में पुन:संख्यांकित किया गया ।
७.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ३७ द्वारा (२०-६-१९७९ से) आभ्यंतरिक अशान्ति के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
८.संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७८ की धारा ३७ द्वारा (२०-६-१९७९ से) खंड (५) का लोप किया गया ।

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