भारत का संविधान
अनुच्छेद २४९ :
राज्य सूची में के विषय के संबंध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद् की शक्ति ।
१)इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, यदि राज्य सभा में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित किया है कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक या समीचीन है कि संसद् १.(अनुच्छेद २४६क के अधीन उपबंधित माल और सेवा कर या) राज्य सूची में प्रगणित ऐसे विषय के संबंध में, जो उस संकल्प में विनिर्दिष्ट है, विधि बनाए तो जब तक वह संकल्प प्रवृत्त है, संसद् के लिए उस विषय के संबंध में भारत के संपूर्ण राज्य-क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाना विधिपूर्ण होगा ।
२)खंड (१) के अधीन पारित संकल्प एक वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए प्रवृत्त रहेगा जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाए :
परंतु यदि और जितनी बार किसी ऐसे संकल्प को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प खंड (१ ) में उपबंधित रीति से पारित हो जाता है तो और उतनी बार ऐसा संकल्प उस तारीख से, जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवृत्त नहीं रहता , एक वर्ष की और अवधि तक प्रवत्त रहेगा ।
३) संसद् द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद् खंड (१) के अधीन संकल्प के पारित होने के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, संकल्प के प्रवृत्त न रहने के पश्चात् छह मास की अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उक्त अवधि की समाप्ति से पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है ।
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१. संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम २०१६ की धारा ४ द्वारा (१६-९-२०१६ से) अन्त:स्थापित ।