भारत का संविधान
अनुच्छेद १४५ :
न्यायालय के नियम आदि ।
१)संसंद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय – समय पर, राष्ट्रपति के अनुमोदन से न्यायालय की पध्दति और प्रक्रिया के, साधारणतया, विनियमन के लिए नियम बना सकेगा जिसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात् :-
क) उस न्यायालय में विधि- व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों के बारे में नियम;
ख) अपीलें सुनने के लिए प्रक्रिया के बारे में और अपीलों संबंधी अन्य विषयों के बारे में, जिनके अंतर्गत वह समय भी है जिसके भीतर अपीलें उस न्यायालय में ग्रहण की जानी हैं, नियम;
ग) भाग ३ द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी का प्रवर्तन कराने के लिए उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम;
१.(गग) २.(अनुच्छेद १३९ क) के अधीन उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम;)
घ)अनुच्छेद १३४ के खंड (१) के उपखंड (ग) के अधीन अपीलों को ग्रहण किए जाने के बारे में नियम;
ड) उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी निर्णय या किए गए आदेश का जिन शर्तों के अधीन रहते हुए पुनर्विलोकन किया जा सकेगा उनके बारे में और ऐसे पुनर्विलोकन के लिए प्रक्रिया के बारे में, जिसके अंतर्गत वह समय भी है जिसके भीतर ऐसे पुनर्विलोकन के लिए आवेदन उस न्यायालय में ग्रहण किए जाने हैं, नियम :
च) उस न्यायालय में किन्हीं कार्यवाहियों के और उनके आनुषंगिक खर्चे के बारे में, तथा उसमें कार्यवाहियों के संबंध में प्रभारित की जाने वाली फीसों के बारे में नियम;
छ) जमानत मंजुर करने के बारे में नियम;
ज)कार्यवाहियों को रोकने के बारे में नियम;
झ)जिस अपील के बारे में उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि वह तुच्छ या तंग करने वाली है अथवा विलंब करने के प्रयोजन से की गई है, उसके संक्षिप्त अवधारण के लिए उपबंध करने वाले नियम;
त्र) अनुच्छेद ३१७ के खंड (१) में निर्दिष्ट जांचों के लिए प्रक्रिया के बारे में नियम ।
२) ३.(४.(***) खंड (३) के उपबंधों ) के अधीन रहते हुए, इस अनुच्छेद के अधीन बनाए गए नियम, उन न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या नियत कर सकेंगी जो किसी प्रयोजन के लिए बैठेंगे तथा एकल न्यायाधीशों और खंड न्यायालयों की शक्ति के लिए उपबंध कर सकेंगे।
३) जिस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है उसका विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए या इस संविधान के अनुच्छेद १४३ के अधीन निर्देश की सुनवाई करने के प्रयोजन के लिए बैठने वाले न्यायाधीशों की ५.( ४.(***) न्युनतम संख्या ) पांच होगी :
परन्तु जहां अनुच्छेद १३२ से भिन्न इस अध्याय के उपबंधों के अधीन अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय पांच से कम न्यायाधीशों से मिलकर बना है और अपील की सुनवाई के दौरान उस न्यायालय का समाधान हो जाता है कि अपील में संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का ऐसा सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है जिसका अवधारण अपील के निपटारे के लिए आवश्यक है वहां वह न्यायालय ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को, जो ऐसे प्रश्न अंतर्वलित करने वाले किसी मामले के विनिश्चय के लिए इस खंड की अपेक्षानुसार गठित किया जाता है, उसकी राय के लिए निर्देशित करेगा और ऐसी राय की प्राप्ति पर उस अपील को उस राय के अनुरूप निपटाएगा ।
४)उच्चतम न्यायालय प्रत्येक निर्णय खुले न्यायालय में ही सुनाएगा, अन्यथा नहीं और अनुच्छेद १४३ के अधीन प्रत्येक प्रतिवेदन खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं ।
५) उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक निर्णय और ऐसी प्रत्येक राय, मामले की सुनवाई में उपस्थित न्यायाधीशों की बहुसंख्या की सहमति से ही दी जाएगी, अन्यथा नहीं, किन्तु इस खंड की कोई बात किसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नहीं है, अपना विसम्मत निर्णय या राय देने से निवारित नहीं करेगी ।
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१.संविधान (बयालीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७६ की धारा २६ द्वारा (१-२-१९७७ से ) अंत:स्थापित ।
२.संविधान (तैतालीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७७ की धारा ६ द्वारा ( १३-४-१९७८ से ) अनुच्छेद १३१ क और १३९क के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३.संविधान (बयालीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७६ की धारा २६ द्वारा (१-२-१९७७ से ) खंड (३) के उपबंधों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४.संविधान (तैंतालीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७७ की धारा ६ द्वारा (१३-४-१९७८ से ) कुछ शब्दों, अंकों और अक्षरों का लोप किया गया ।
५.संविधान (बयालीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७६ की धारा २६ द्वारा (१-२-१९७७ से )न्युनतम संख्या के स्थान पर प्रतिस्थापित।