भारत का संविधान
अध्याय ३ :
राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां
अनुच्छेद १२३ :
संसद् के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति ।
१) उस समय को छोडकर जब संसद् के दोनों सदन सत्र में हैं, यदि किसी समय राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण तुरंत कारवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों ।
२) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद् के अधिनियम का होता है, किन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश –
क) संसद् के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद् के पुन: समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले दोनों सदन उसके अननुमोदन का संकल्प पारित कर देते हैं तो, इनमें से दूसरे संकल्प के पारित होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा; और
ख) राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा ।
स्पष्टीकरण – जहां ससंद् के सदन, भिन्न- भिन्न तारीखों का पुन: समवेत होने के लिए, आहत किए जाते हैं वहां इस खंड के प्रयोजनों के लिए, छह सप्ताह की अवधि की गणना उन तारीखों में से पश्चात्वर्ती तारीख से की जाएगी ।
३) यदि और जहां तक इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद् इस संविधान के अधीन सक्षम नहीं है तो और वहां तक वह अध्यादेश शून्य होगा ।
१.(***)
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१.संविधान ( अडतीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७५ की धारा २ द्वारा खंड (४) अंत:स्थापित किया गया और संविधान (चवालीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७८ की धारा १६ द्वारा ( २०-६-१९७९ से ) उसका लोप किया गया ।