भारत का संविधान
सदस्यों की निरर्हताएं :
अनुच्छेद १०१ :
स्थानों का रिक्त होना ।
१) कोई व्यक्ति संसद् के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए संसद् विधि द्वारा उपबंध करेगी ।
२) कोई व्यक्ति संसद् और किसी १.(***) राज्य के विधान- मंडल के किसी सदन , दोनों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति संसद् और २.( किसी राज्य) के विधान- मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात् जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए ३.नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, संसद् में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने राज्य के विधान-मंडल में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है ।
३) यदि संसद् के किसी सदन का सदस्य –
(क) ४.(अनुच्छेद १०२ के खंड (१) या खंड (२)) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो जाता है, या
५.((ख) यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जात है,)
तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा :
६.(परन्तु उपखंड (ख) में निर्दिष्ट त्यागपत्र की दशा में, यदि प्राप्त जानकारी से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह ठीक समझे, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं करेगा। )
४)यदि संसद् के किसी सदन का कोई सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा :
परन्तु साठ दिन की उक्त अवधि की संगणना करने में किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसके दौरान सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित रहता है ।
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१.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्द और अक्षरों का लोप किया गया ।
२.संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा ऐसे किसी राज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३.देखिए, विधि मंत्रालय की अधिसूचना संख्या एफ. ४६/५०-सी, तारीख २६ जनवरी, १९५०, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृष्ठ ६७८ में प्रकाशित समसामयिक सदस्यता प्रतिषेध नियम, १९५० ।
४.संविधान (बावनवां संशोधन ) अधिनियम, १९८५ की धारा २ द्वारा ( १-३-१९८५ से ) अनुच्छेद १०२ के खंड (१) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५.संविधान (तैतीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७४ की धारा २ द्वारा उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
६.संविधान (तैतीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७४ की धारा २ द्वारा अंत:स्थापित ।