Bnss धारा ३५६ : उद्घोषित अपराधी की अनुपस्थिति में जांच, विचारण और निर्णय :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३५६ :
उद्घोषित अपराधी की अनुपस्थिति में जांच, विचारण और निर्णय :
इस संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जब किसी व्यक्ति को उद्घोषित अपराधी घोषित किया जाता है, चाहे उस पर संयुक्त रुप से आरोप लगाया गया हो या नहीं, विचारण की वंचना करने के लिए करार है और उसे गिरफ्तार करने का कोई अव्यवहित पूर्वेक्षण नहीं है, इस ऐसे व्यक्ति के उपस्थित होने और वैयक्तिक विचारण के अधिकार के अभित्याग के रुप में प्रवर्तित होना समझा जाएगा और न्यायालय ऐसे कारणों से जो अभिलिखित किए जाएं न्याय हित में ऐसी रीति में और ऐसे प्रभाव के साथ, जैसे कि वह उपस्थित था, इस संहिता के अधीन विचारण के लिए अग्रसर होगा और निर्णय सुनाएगा :
परंतु न्यायालय जब तक विचारण प्रारंभ नहीं करेगा, तब तब कि आरोप की विरचना की तारीख से नब्बे दिवस की अवधि की समाप्ति नहंीं हो जाती है ।
२) न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि आगामी प्रक्रिया का उपधारा (१) के अधीन कार्यवाहियों से पहले अनुपालन किया गया है, अर्थात् :-
एक) कम से कम तीन दिवस के अतंराल पर लगातार दो गिरफ्तारी वारंटो का निष्पादन;
दो) उद्घोषित अपराधों से विचारण के लिए न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने की अपेक्षा करते हुए और उसे सूचना देते हुए कि यदि वह ऐसे प्रकाशन की तारीख से तीस दिवस के भीतर प्रस्तुत होने में असफल रहता है, तो उसकी अनुपस्थिति में विचारण किया जाएगा, उसके अंतिम ज्ञात निवास स्थान पर परिचालित राष्ट्रीय स्थानीय दैनिक समाजार में प्रकाशन;
तीन) उसके नातेदार या मित्र को विचारण के प्रारंभ होने के बारे में सूचना, यदि कोई हो; और
चार) उस गृह या वास स्थान, जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है के किसी सहजदृश्य स्थान पर विचारण के प्रारंभ होने के बारे में सूचना चिपकाना और उसके अंतिम ज्ञात निवास के जिले के पुलिस स्टेशन में प्रदर्शन ।
३) जहां उद्घोषित अपराधी का किसी अधिवक्ता द्वारा प्रतिनिधित्व नहीं किया जाता है, तो उसके लिए राज्य के व्यय पर अपनी प्रतिरक्षा के लिए एक अधिवक्ता का प्रबंध किया जाएगा ।
४) जहां मामले का विचारण करने या विचारण के लिए सुपुर्दगी के लिए सक्षम न्यायालय ने अभियोजन के लिए किन्हीं साक्षियों की परीक्षा की है और उनके अभिसाक्ष्यों को अभिलिखित किया है, ऐसे अभिसाक्ष्य, ऐसे अपराध जिसके लिए उद्घोषित अपराधी को आरोपित किया गया है, की जांच या विचारण में उसके विरुद्ध साक्ष्य में दिए जाएंगे :
परंतु यदि उद्घोषित अपराधी ऐसे विचारण के दौरान गिरफ्तार किया जाता है या न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है या उपस्थित होता है, न्यायालय न्याय हित में उसे किसी ऐसे साक्ष्य, जो उसकी अनुपस्थिति में लिया गया है, की परीक्षा करने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा ।
५) जहां विचारण इस धारा के अधीन व्यक्ति से संबंधित है, तो साक्षियों का अभिसाक्ष्य और परीक्षा जहां तक व्यवहार्य हो, श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रानिक साधनों, अधिमानत: सेल-फोन द्वारा अभिलिखित की जा सकेगी और ऐसी रिकार्डिंग ऐसी रीति में रखी जाएगी, जो न्यायालय निदेश दे ।
६) इस संहिता के अधीन अपराधों के अभियोजन में, उपधारा (१) के अधीन विचारण प्रारंभ होने के पश्चात् अभियुक्त की स्वेच्छया अनुपस्थिति, विचारण जिसके अंतर्गत निर्णय सुनाया जाना भी है, जारी रहने को नहीं रोकेगी, यद्यपि वह ऐसे विचारण की समाप्ति पर गिरफ्तार और प्रस्तुत किया जाता है या उपस्थित होता है ।
७) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी उद्घोषित अपराधी की अनुपस्थिति में निर्णय की कोई अपील नहीं होगी :
परंतु दोषसिद्धि के विरुद्ध कोई अपील निर्णय की तारीख से तीन वर्ष के अवसान के पश्चात् नहीं होगी ।
८) राज्य अधिसूचना द्वारा धारा ८४ की उपधारा (१) में उल्लिखित किसी फरार व्यक्ति पर इस धारा के उपबंधों का विस्तार कर सकेगी ।

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