भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा १९३ :
अन्वेषण के समाप्त हो जाने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट :
१) इस अध्याय के अधीन किया जाने वाला प्रत्येक अन्वेषण अनावश्यक विलम्ब के बिना पूरा किया जाएगा ।
२) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ६४, धारा ६५, धारा ६६, धारा ६७, धारा ६८, धारा ७० या धारा ७१ या लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम २०१२ की धारा ४, धारा ६, धारा ८ या धारा १० के अधीन किसी अपराध के संबंध में अन्वेषण उस तारीख से, जिसको पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा इत्तिला अभिलिखित की गई थी, दो मास के भीतर पूरा किया जाऐगा ।
३) एक) जैसे ही जांच पूरा होता है, वैसे ही पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार द्वारा विहित प्ररुप में, जिसमें इलैक्ट्रानिक संसूचना का माध्यम भी है, एक रिपोर्ट भेजेगा, जिसमें निम्नलिखित बातें कथित होंगी –
(a) क) पक्षकारों के नाम ;
(b) ख) इत्तिला का स्वरुप ;
(c) ग) मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम;
(d) घ) क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है और यदि किया गया प्रतीत होता है, तो किसके द्वारा;
(e) ङ) क्या अभियुक्त गिरफ्तार कर लिया गया है;
(f) च) क्या अभियुक्त अपने बंधपत्र या जमानतपत्र पर छोड दिया गया है;
(g) छ) क्या अभियुक्त धारा १९० के अधीन अभिरक्षा में भेजा जा चुका है ;
(h) ज) जहाँ अन्वेषण भारतीय न्याय संहिता, २०२३ की धारा ६४, धारा ६५, धारा ६६, धारा ६७, धारा ६८, धारा ७० या धारा ७१ के अधीन अपराध से संबंधित है, क्या स्त्री की, चिकित्सीय परीक्षण की रिपोर्ट संलग्न की गई है ।
(i) झ) इलैक्ट्रानिक युक्ति की दशा में अभिरक्षा का अनुक्रम;
दो) पुलिस अधिकारी नब्बे दिनों की अवधि के भीतर अन्वेषण की प्रगति की सूचना, किन्ही साधनों द्वारा, जिसके अंतर्गत इलेक्ट्रानिक संसूचना के माध्यम से भी है, सूचना देने वाले या पीडित को देगा ।
तीन) वह अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्यवाही की संसूचना, उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसने अपराध किए जाने के संबंध में सर्वप्रथम इत्तिला दी उस रीति से देगा, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए ।
४) जहाँ धारा १७७ के अधीन कोई वरीष्ठ पुलिस अधिकारी नियुक्त किया गया है वहाँ ऐसे किसी मामले में, जिसमें राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसा निदेश देती है, वह रिपोर्ट उस अधिकारी के माध्यम से दी जाएगी और वह, मजिस्ट्रेट का आदेश होने तक के लिए, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह निदेश दे सकता है कि वह आगे और अन्वेषण करे ।
५) जब कभी इस धारा के अधीन भेजी गई रिपोर्ट से यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त को उसके बंधपत्र या जमानतपत्र पर छोड दिया गया है तब मजिस्ट्रेट उस बंधपत्र या जमानतपत्र के उन्मोचन के लिए या अन्यथा ऐसा आदेश करेगा जैसा वह ठीक समझे ।
६) जब ऐसी रिपोर्ट का संबंध ऐसे मामले से है, जिसको धारा १९० लागू होती है, तब पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट के साथ-साथ निम्नलिखित भी भेजेगा :-
(a) क) वे सब दस्तावेज या उनके सुसंगत उद्धरण, जिन पर निर्भर करने का अभियोजन का विचार है और जो उनसे भिन्न है जिन्हें अन्वेषण के दौरान मजिस्ट्रेट को पहले ही भेज दिया गया है;
(b) ख) उन सब व्यक्तियों के, जिनकी साक्षियों के रुप में परीक्षा करने का अभियोजन का विचार है, धारा १८० के अधीन अभिलिखित कथन ।
७) यदि पुलिस अधिकारी की यह राय है कि ऐसे किसी कथन का कोई भाग कार्यवाही की विषयवस्तु से सुसंगत नहीं है या उसे अभियुक्त को प्रकट करना न्याय के हित में आवश्यक नहीं है और लोकहित के लिए असमीचीन है तो वह कथन के उस भाग को उपदर्शित करेगा और अभियुक्त को दी जाने वाली प्रतिलिपि में से उस भाग को निकाल देने के लिए निवेदन करते हुए और ऐसा निवेदन करने के अपने कारणों का कथन करते हुए एक नोट मजिस्ट्रेट को भेजेगा ।
८) उपधारा (७) में अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन जहां मामले का अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी धारा २३० के अधीन यथा अपेक्षित अभियुक्त को प्रदान करने के लिए मजिस्ट्रेट को सम्यक रुप से सूचीबद्ध अन्य दस्तावेजों के साथ पुलिस रिपोर्ट की उतनी संख्या में प्रतियां जो अपेक्षित की जाएं, भी दाखिल करेगा :
परन्तु इलैक्ट्रानिक सूचना द्वारा रिपोर्ट या अन्य दस्तावेजों का प्रदाय पर विचार किया जाएगा, जैसेही सम्यक् रुप से तामील की गई है ।
९) इस धारा की कोई बात किसी अपराध के बारे में उपधारा (३) के अधीन मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेज दी जाने के पश्चात् आगे और अन्वेषण को प्रवरित करने वाली नहीं समझी जाएगी तथा जहाँ ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को कोई अतिरिक्त मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य मिले वहाँ वह ऐसे साक्ष्य के संबंध में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्टें मजिस्ट्रेट को विहित प्ररुप में भेजेगा जो राज्य सरकार नियमों द्वारा बनाए, और उपधारा (३) से (७) तक के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टों के बारे में, जहाँ तक हो सके, ऐसे लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (३) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में लागू होते है :
परन्तु विचारण के दौरान और अन्वेषण मामले का विचार करने वाले न्यायालय की अनुज्ञा से संचालित किया जा सकेगा और जो नब्बे दिनों की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा जिसका विस्तार न्यायालय की अनुज्ञा से किया जा सकता ।