भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
(D) घ – स्थावर संपत्ति के बारें में विवाद :
धारा १६४ :
जहाँ भूमि या जल से संबद्ध विवादों से परिशांति भंग होना संभाव्य है वहाँ प्रक्रिया :
१) जब कभी किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट का, पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से या अन्य इत्तिला पर समाधान हो जाता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भूमि या जल या उसकी सीमाओं से संबद्ध ऐसा विवाद विद्यमान है, जिससे परिशांति भंग होना संभाव्य है, तब वह अपना ऐसा समाधान होने के आधारों का कथन करते हुए और ऐसे विवाद से संबद्ध पक्षकारों से यह अपेक्षा करते हुए लिखित आदेश देगा कि वे विनिर्दिष्ट तारीख और समय पर स्वयं या वकिल द्वारा उसके न्यायालय में हजिर हों, और विवाद की विषयवस्तु पर वास्तविक कब्जे के तथ्य के बारे में अपने अपने दावों का लिखित कथन पेश करें ।
२) इस धारा के प्रयोजनों के लिए भूमि या जल पद के अन्तर्गत भवन, बाजार, मीनक्षेत्र, फसलें, भूमि की अन्य उपज और ऐसी किसी संपत्ति के भाटक या लाभ भी है ।
३) इस आदेश की एक प्रति की तामील इस संहिता द्वारा समनों की तामील के लिए उपबंधित रीति से ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों पर की जाएगी, जिन्हें मजिस्ट्रेट निर्दिष्ट करने, और कम से कम एक प्रति विवाद की विषयवस्तु पर या उसके निकट किसी सहजदृश्य स्थान पर लगाकर प्रकाशित की जाएगी ।
४) मजिस्ट्रेट तब की विषयवस्तु को पक्षकारों में से किसी के भी कब्जे में रखने के अधिकार के गुणागुण या दावे के प्रति निर्देश किए बिना उन कथनों का, जो ऐसे पेश किए गए है, परिशीलन करेगा, पक्षकारों को सुनेगा और ऐसे सभी साक्ष्य लेगा जो उनके द्वारा प्रस्तुत किया जाए, ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य, यदि कोई हो, लेगा जैसा वह आवश्यक समझे और यदि संभव हो तो वह विनिश्चित करेगा कि क्या उन पक्षकारों में से कोई उपधारा (१) के अधीन उसके द्वारा दिए गए आदेश की तारीख पर विवाद की विषयवस्तु पर कब्जा रखता था और यदि रखता था तो वह कौन-सा पक्षकार था :
परन्तु यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि कोई पक्षकार उस तारीख के, जिसको पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य इत्तिला मजिस्ट्रेट को प्राप्त हुई, ठिक पूर्व दो मास के अन्दर या उस तारीख के पश्चात् और उपधारा (१) के अधीन उसके आदेश की तारीख के पूर्व बलात् और सदोष रुप से बेकब्जा किया गया है तो वह मान सकेगा कि उस प्रकार बेकब्जा किया गया पक्षकार उपधारा (१) के अधीन उसके आदेश की तारीख को कब्जा रखता था ।
५) इस धारा की कोई बात, हाचिर होने के लिये ऐसे अपेक्षित किसी पक्षकार को या किसी अन्य वितबद्ध व्यक्ति को यह दर्शित करने से नहीं रोकेगी कि कोई पूर्वोक्त प्रकार का विवाद वर्तमान नहंीं है या नहीं रहा है और ऐसी दशा में मजिस्ट्रेट अपने उक्त आदेश को रद्द कर देगा और उस पर आगे की सब कार्यवाहियाँ रोक दी जाएगी किन्तु उपधारा (१) के अधीन मजिस्ट्रेट का आदेश ऐसे रद्दकरण के अधीन रहते हुए अंतिम होगा ।
६) (a) क) यदि मजिस्ट्रेट यह विनिश्चिय करता है कि पक्षकारों में से एक का उक्त विषयवस्तु पर ऐसा कब्जा था या उपधारा (४) के परन्तुक के अधीन ऐसा कब्जा माना जाना चाहिए, तो वह यह घोषणा करने वाला कि ऐसा पक्षकार उस पर तब तक कब्जा रखने का हकदार है जब तक उसे विधि के सम्यक् अनुक्रम में बेदखल न कर दिया जाए और यह निषेध करने वाला कि जब तक ऐसी बेदखली न कर दी जाए तब तक ऐसे कब्जे में कोई विघ्न न डाला जाए, आदेश जारी करेगा; और जब वह उपधारा (४) के परन्तुक के अधीन कार्यवाही करता है तब उस पक्षकार को, जो बलात् और सदोष बेकब्जा किया गया है, कब्जा लौटा सकता है ।
(b) ख) इस उपधारा के अधीन दिया गया आदेश उपधारा (३) में अधिकथित रीति से तामील और प्रकाशित किया जाएगा ।
७) जब किसी ऐसी कार्यवाही के पक्षकार कि मृत्यु हो जाती है तब मजिस्ट्रेट मृत पक्षकार के विधिक प्रतिनिधि को कार्यवाही का पक्षकार बनवा सकेगा और फिर जाँच चालू रखेगा और यदि इस बारें में कोई प्रश्न उत्पन्न होता है कि मृत पक्षकार का ऐसी कार्यवाही के प्रयाजन के लिए विधिक प्रतिनिधि कौन है तो मृत पक्षकार का प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले सब व्यक्तियों को उस कार्यवाही का पक्षकार बना लिया जाएगा ।
८) यदि मजिस्ट्रेट की यह राय है कि उस संपत्ति की, जो इस धारा के अधीन उसके समक्ष लंबित कार्यवाही में विवाद की विषयवस्तु है, कोई फसल या अन्य उपज शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है तो वह ऐसी संपत्ति की उचित अभिरक्षा या विक्रय के लिए आदेश दे सकता है और जाँच के समाप्त होने पर ऐसी संपत्ति के या उसके विक्रय के आगमों के व्ययन के लिए ऐसा आदेश दे सकता है जो वह ठिक समझे ।
९) यदि मजिस्ट्रेट ठीक समझे तो वह इस धारा के अधीन कार्यवाहियों के किसी प्रक्रम में पक्षकारों में से किसी से आवेदन पर किसी साक्षी के नाम समन यह निदेश देते हुए जारी कर सकता है कि वह हाजिर हो या कोई दस्तावेज या चीज पेश करे ।
१०) इस धारा की कोई बात धारा १२६ के अधीन कार्यवाही करने की मजिस्ट्रेट की शक्तियों का अल्पीकरण करने वाली नहीं समझी जाएगी ।