Bnss धारा १३५ : इत्तिला की सच्चाई के बारे में जाँच :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा १३५ :
इत्तिला की सच्चाई के बारे में जाँच :
१) जब धारा १३० के अधीन आदेश किसी व्यक्ति को, जो न्यायालय में अपस्थित है, धारा १३१ के अधीन पढकर सुना या समझा दिया गया है अथवा जब कोई व्यक्ति धारा १३२ के अधीन जारी किए गए समन या वारन्ट के अनुपालन या निष्पादन में मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट उस इत्तिला की सच्चाई के बारे में जाँच करने के लिए अग्रसर होगा जिसके आधार पर वह कार्यवाही की गई है और ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य ले सकता है जो उसे आवश्यक प्रतीत हो ।
२) ऐसी जाँच यथासाध्य, उस रीति से की जाएगी जो समन-मामलों के विचारण और साक्ष्य के अभिलेखन के लिए इसमें इसके पश्चात् विहित है ।
३) उपधारा (१) के अधीन जाँच प्रारम्भ होने के पश्चात् और उसकी समाप्ति से पूर्व यदि मजिस्ट्रेट समझता है कि परिशांति भंग का या लोक प्रशांति विक्षुब्ध होने का या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए, या लोक सुरक्षा के लिए तुरन्त उपाय करने आवश्यक है, तो वह ऐसे कारणों से, जिन्हें लेखबद्ध किया जाएगा, उस व्यक्ति को, जिसके बारे में धारा १३० के अधीन आदेश दिया गया है निदेश दे सकता है कि वह जाँच समाप्त होने तक परिशांति कायम रखने और सदाचारी बने रहने के लिए बन्धपत्र या जमानतपत्र निष्पादित करे और जब तक ऐसा बंधपत्र निष्पादित नहीं कर दिया जाता है, या निष्पादन में व्यतिक्रम होने की दशा में जब तक जाँच समाप्त नहीं हो जाती है, उसे अभिरक्षा में निरुद्ध रख सकता है :
परन्तु :
(a) क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध धारा १२७, धारा १२८ या धारा १२९ के अधीन कार्यवाही नहीं की जा रही है, सदाचारी बने रहने के लिए बंधपत्र या जमानतपत्र निष्पादित करने के लिए निदेश नहीं दिया जाएगा;
(b) ख) ऐसे बन्धपत्र की शर्ते, चाहे वह उसकी रकम के बारें में हो या प्रतिभू उपलब्ध करने के या उनकी संख्या के, या उनके दायित्व की धन सम्बन्धी सीमा के बारे में हों, उनसे अधिक दुर्भर न होंगी जो धारा १३० के अधीन आदेश में विनिर्दिष्ट है ।
४) इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तथ्य कि कोई व्यक्ति आभ्यासिक अपराधी है या ऐसा दु:साहसिक और भयंकर है कि उसका प्रतिभूति के बिना स्वच्छन्द रहना समाज के लिए परिसंकटमय है, साधारण ख्याति के साक्ष्य से या अन्यता साबित किया जा सकता है ।
५) जहाँ दो या अधिक व्यक्ति जाँच के अधीन विषय में सहयुक्त रहें वहाँ मजिस्ट्रेट एक ही जाँच या पृथक जाँचों में जैसा वह न्यायसंगत समझे, उनके बारे में कार्यवाही कर सकता है ।
६) इस धारा के अधीन जाँच उसके आरंभ तारीख से छह मास की अवधि केअंदर पूरी की जाएगी, और यदि जाँच इस प्रकार पूरी नहीं की जाती है तो इस अध्याय के अधीन कार्यवाही उक्त अवधि की समाप्ती पर, पर्यवसित हा जाएगी जब तक विशेष कारणों के आधार पर, जो लेखबद्ध किए जाएँगे, मजिस्ट्रेट अन्यथा निदेश नहीं करता है :
परन्तु जहाँ कोई व्यक्ति, ऐसी जाँच के लम्बित रहने के दोरान निरुद्ध रखा गया है वहाँ उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही, यदि पहले ही पर्यवसित नहीं हो जाती है तो ऐसे निरोध के छह मास की अवधि समाप्ति पर पर्यवसित हो जाएगी ।
७) जहाँ कार्यवाहीयों को चालू रखने की अनुज्ञा देते हुए उपधारा (६) के अधीन निदेश किया जाता है, वहाँ सेशन न्यायाधीश व्यथित पक्षकार द्वारा उसे किए गए आवेदन पर ऐसे निदेश को रद्द कर सकता है, यदि उसका समाधान हो जाता है कि वह किसी विशेष कारण पर आधारित नहीं था या अनुचित था ।

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