भारतीय न्याय संहिता २०२३
धारा ३५४ :
किसी व्यक्ती को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके कि वह दैवी अप्रसाद का भाजन होगा, कराया गया कार्य :
धारा : ३५४
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके कि वह दैवी अप्रसाद का भाजन होगा, कराया गया कार्य ।
दण्ड : एक वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय : असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय : जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : वह व्यक्ति जिसे उत्प्रेरित किया गया ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है : कोई मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई किसी व्यक्ती को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके, या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करके, कि यदि वह उस बात को न करेगा, जिसे उससे कराना अपराधी का उद्देश्य हो, या यदि वह उस बात को करेगा जिसका उससे लोप कराना अपराधी का उद्देश्य हो, तो वह या कोई व्यक्ती, जिससे वह हितबद्ध है, अपराधी के किसी कार्य से दैवी अप्रसाद का भाजन हो जाएगा, या बना दिया जाएगा, स्वेच्छया उस व्यक्ती से कोई ऐसी बात करवाएगा या करवाने का प्रयत्न करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रुप से हकदार हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
दृष्टांत :
क) (क), यह विश्वास कराने के आशय से (य) के द्वार पर धरना देता है कि इस प्रकार धरना देने से वह (य) को दैवी अप्रसाद का भाजन बना रहा है । (क) ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।
ख) (क), (य) को धमकी देता है कि यदि (य) अ्रमुक कार्य नहीं करेगा, तो (क) अपने बच्चों में से किसी एक का वध ऐसी परिस्थितियों में कर डालेगा जिससे ऐसे वध करने के परिणामस्वरुप यह विश्वास किया जाए कि (य) दैवी अप्रसाद का भाजन बना दिया गया है । (क) ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।