भारतीय न्याय संहिता २०२३
आपराधिक बल और हमले के विषय में :
धारा १२८ :
बल :
कोई व्यक्ती किसी अन्य व्यक्ती पर बल प्रयोग करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस अन्य व्यक्ती में गति, गति परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है या यदि वह किसी पदार्थ में ऐसी गति, गति परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है, जिससे उस पदार्थ का स्पर्श उस अन्य व्यक्ती के शरीर के किसी भाग से या किसी ऐसी चीज से, जिसे वह अन्य व्यक्ती पहने हुए है या ले जा रहा है , या किसी ऐसी चीज से, जो इस प्रकार स्थित है कि ऐसे संस्पर्श से उस अन्य व्यक्ती की संपेदन शक्ती पर प्रभाव पडता है, हो जाता है :
परन्तु यह तब जबकि गतिमान, गति परिवर्तन या गतिहीन करने वाला व्यक्ती उप पर गति, गति परिवर्तन, या गतिहीनता को एतस्मिन (इसमें इसके) पश्चात वर्णित तीन तरिकों में से किसी एक द्वारा कारित करता है, अर्थात :
क) अपनी निजी शारिरीक शक्ती द्वारा ।
ख) किसी पदार्थ के इस प्रकार व्ययन द्वारा कि उसके अपने या किसी अन्य व्यक्ती द्वारा कोई अन्य कार्य के किए जाने के बिना ही गति परिवर्तन या गतिहीनता घटित होती है ।
ग) किसी जीव जन्तु (पशु) को गतिमान होने, गति परिवर्तन करने या गतिहीन होने के लिए उत्प्रेरण द्वारा ।