भारत का संविधान
१.(कुछ विधियों की व्यावृत्ति :
२.(अनुच्छेद :३१-क :
संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति।
३(( १) अुनच्छेद १३ में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, –
क) किसी संपदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
ख) किसी संपत्ति का प्रबंध लोकहित में या उस संपत्ति का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से परिसीमित अवधि के लिए राज्य द्वारा ले लिए जाने के लिए , या
ग) दो या अधिक निगमों को लोकहित में या उन निगमों में किसी का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समामेलित करने के लिए, या
घ) निगमों के प्रबंध अभिकर्ताओं, सचिवों और कोषाध्यक्षों, प्रबंध निदेशकों, निदेशकों या प्रबंधकों के किन्हीं अधिकारों या उनके शेयरधारकों के मत देने के किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए,या
ड) किसी खनिज या खनिज तेल की खोज करने या उसे प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए किसी करार, पट्टे या अनुज्ञाप्ति के आधार पर प्रोद्भूत होने वाले किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए या किसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति को समय से पहले समाप्त करने या रद्द करने के लिए,
उपबंध करने वाली विधि इस आधार पर शुन्य नहीं समझी जाएगी कि वह ४.(अनुच्छेद १४ या अनुच्छेद १९) द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है उसे छीनती है या न्यून करती है :
परंतु जहां ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहींं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हों गई है 🙂
५.(परंतु यह और कि जहां किसी विधि में किसी संपदा के राज्य द्वारा अर्जन के लिए कोई उपबंध किया गया है और जहां उसमें समाविष्ट कोई भूमि किसी व्यक्ति की अपनी जोत में है वहां राज्य के लिए ऐसी भूमि के ऐसे भाग को, जो किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन उसको लागू अधिकतम सीमा के भीतर है, या उस पर निर्मित या उससे अनुलग्न किसी भवन या संरचना को अर्जित करना उस दशा के सिवाय विधिपूर्ण नहीं होगा जिस दशा में ऐसी भूमि, भवन या संरचना के अर्जन से संबंधित विधि उस दर से प्रतिकर के संदाय के लिए उपबंध करती है जो उसके बाजार- मूल्य से कम नहीं होगी ।)
(२ ) इस अनुच्छेद में,-
६.((क) संपदा पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के संबंध में वही अर्थ है जो उस पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भू- धृतियों से संबंधित विद्यमान विधि में है और इसके अंतर्गत :
एक)कोई जागीर, इनाम या मुआफी अथवा वैसा ही अन्य अनुदान और ७.(तमिलनाडु ) और केरल राज्यों में कोई जन्मम् अधिकार भी होगा;
दो)रैयतबाडी, बंदोबस्त के अधीन धृत कोई भूमि भी होगी;
तीन)कृषि के प्रयोजनों के लिए या उसके सहायक प्रयोजनों के लिए धृत या पट्टे पर दी गई कोई भूमि भी होगी, जिसके अंतर्गत बंजर भूमि, वन भूमि, चरागाह या भूमि के कृषकों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के अधिभोग में भवनों और अन्य संरचनाओं के स्थल है; )
ख)अधिकार पद के अंतर्गत, किसी संपदा के संबंध में, किसी स्वत्वधारी, उप-स्वत्वधारी, अवर स्वत्वधारी, भू-धृतिधारक, ८.(रेयत,अवर रैयत) या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू-राजस्व के संबंध में कोई अधिकार या विशेषधिकार होंगे ।)
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१. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम १९७६ की धारा ३ द्वारा (३-१-१९७७ से) अंत:स्थापित ।
२. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, १९५१ की धारा ४ द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) अतं:स्थापित।
३. संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, १९५५ की धारा ३ द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) खंड (१) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
४. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम,१९७८ की धारा ७ द्वारा (२०-६-१९७९ से) अनुच्छेद १४, अनुच्छेद १९ या अनुच्छेद ३१ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. संविधान (सत्रहवां संशोधन) अधिनियम, १९६४ की धारा २ द्वारा अंत:स्थापित ।
६. संविधान (सत्रहवां संशोधन) अधिनियम, १९६४ की धारा २ द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) उपखंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
७. मद्रास राज्य (नाम -परिवर्तन) अधिनियम, १९६८ (१९६८ का ५३) की धारा ४ द्वारा ( १४-१-१९६९ से) मद्रास ङ्कङ्क के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
८. संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, १९५५ की धारा द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंत:स्थापित ।