अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम १९८९
अध्याय ४ :
विशेष न्यायालय :
धारा १४ :
१.(विशेष न्यायालय और अनन्य विशेष न्यायालय ।
१) शीघ्र विचारण का उपबंध करने के प्रयोजन के लिए, राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक या अधिक जिलों के लिए एक अनन्य विशेष न्यायालय स्थापित करेगी :
परन्तु ऐसे जिलों में जहां अधिनियम के अधीन कम मामले अभिलिखित किए गए है, वहां राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे जिलों के लिए सेशन न्यायालयों को, इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिए विशेष न्यायालय होना विनिर्दिष्ट करेगी :
परन्तु यह और कि इस प्रकार स्थापित या विनिर्दिष्ट न्यायालयों को इस अधिनियम के अधीन अपराधों का सीधे संज्ञान लेने की शक्ति होगी ।
२) राज्य सरकार का, यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संख्या में न्यायालयों की स्थापना करने का कर्तव्य होगा कि इस अधिनियम के अधीन मामले, यथासंभव, दो मास की अवधि के भीतर निपटाए गए है ।
३) विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय में प्रत्येक विचारण में कार्यवाहियां, दिन-प्रतिदिन के लिए जारी रहेंगी, जब तक कि उपस्थित सभी साक्षियों की परीक्षा न हो जाए, जब तक कि विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय अभिलिखित होने वाले कारणों से उसको आगामी दिन से परे स्थगन करना आवश्यक नहीं पाता हो :
परन्तु जब विचारण, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध से संबंधित है, तब विचारण, यथासंभव आरोप पत्र को फाईल करने की तारीख से दो मास की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा ।)
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१.२०१६ के अधिनियम संख्या १ की धारा ८ द्वारा धारा (१४) के स्थान पर प्रतिस्थापित । (२६-१-२०१६ से प्रभावी)।
