Constitution अनुच्छेद १९० : स्थानों का रिक्त होना ।

भारत का संविधान
सदस्यों की निरर्हताएं :
अनुच्छेद १९० :
स्थानों का रिक्त होना ।
१) कोई व्यक्ति राज्य के विधान-मंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए उस राज्य का विधान- मंडल विधि द्वारा उपबंध करेगा ।
२)कोई व्यक्ति पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट दो या अधिक राज्यों के विधान-मंडलों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति दो या अधिक ऐसे राज्यों के विधान-मंडलों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात् जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए १.नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे सभी राज्यों के विधान-मंडलों में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने एक राज्य को छोडकर अन्य राज्यों के विधान-मंडलों में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है ।
३)यदि राज्य के विधान- मंडल के किसी सदन का सदस्य-
क) २.(अनुच्छेद १९१ के खंड (२)) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो जाता है, या
(३.((ख) यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र, यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, )
(४.(परंतु उपखंड (ख) में निर्दिष्ट त्यागपत्र की दशा में, यदि प्राप्त जानकारी से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह ठीक समझे, यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं करेगा । )
४) यदि किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा :
परंतु साठ दिन की उक्त अवधि की संगणना करने में किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसके दौरान सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित रहता है।
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१.देखिए विधि मंत्रालय की अधिसूचना सं.एफ. ४६/५०-सी, दिनांक २६ जनवरी, १९५०, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृष्ठ ६७८ में प्रकाशित समसामयिक सदस्यता प्रतिषेध नियम, १९५० ।
२. संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, १९८५ की धारा ४ द्वारा (१-३-१९८५ से ) अनुच्छेद १९१ के खंड (१) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३.संविधान (तैंतीसवां संशोधन ) अधिनियम, १९७४ की धारा ३ द्वारा उपखंड (ख ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४.संविधान (तैतीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७४ की धारा ३ द्वारा अंत:स्थापित ।

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