भारत का संविधान
अनुच्छेद १२७ :
तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति ।
१)यदि किसी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति प्राप्त न हो तो १.(राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उसे किए गए किसी निर्देश पर, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से ) और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्, किसी उच्च न्यायलय के किसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक् रूप से अर्हित है और जिसे भारत का मुख्य न्यायमूर्ति नामनिर्दिष्ट करे, न्यायालय की बैठकों में उतनी अवधि के लिए, जितनी आवश्यक हो, तदर्थ न्यायाधीश के रूप में उपस्थित रहने के लिए लिखित रूप में अनुरोध कर सकेगा ।
२) इस प्रकार नामनिर्दिष्ट न्यायाधीश का कर्तव्य होगा कि वह अपने पद के अन्य कर्तव्यों पर पूर्विकता देकर उस समय और उस अवधि के लिए, जिसके लिए उसकी उपस्थिति अपेक्षित है, उच्चतम न्यायालय की बैठकों में, उपस्थित हो और जब वह इस प्रकार उपस्थित होता है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे और वह उक्त न्यायाधीश के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा ।
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१.संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, २०१४ की धारा ४ द्वारा (१३-४-२०१५ से ) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थिपित । यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख १६ अक्तूबर, २०१५ के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है ।