Constitution अनुच्छेद १२४ : उच्चातम न्यायालय की स्थापना और गठन ।

भारत का संविधान
अध्याय ४ :
संघ की न्यायपलिका :
अनुच्छेद १२४ :
उच्चातम न्यायालय की स्थापना और गठन ।
१) भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और, जब तक संसद् विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती है तब तक, १.(सात) से अनधिक अन्य न्यायालयों से मिलकर बनेगा ।
२) २.(अनुच्छेद १२४ क में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर ) राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है :
३.(***)
४.(परन्तु) –
क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ;
ख) किसी न्यांयाधीश को खंड (४) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा ।
५.((२क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की आयु ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से अवधारित की जाएगी जिसका संसद् विधि द्वारा उपबंध करे ।)
३) कोई व्यक्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारत का नागरिक है और –
क)किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम पांच वर्ष तक न्यायाधीश रहा है; या
ख) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा है; या
ग) राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता है ।
स्पष्टीकरण १ :
इस खंड में, उच्च न्यायालय से वह उच्च न्यायालय अभिप्रेत है जो भारत के राज्य-क्षेत्र के किसी भाग में अधिकारिता का प्रयोग करता है, या इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय प्रयोग करता था ।
स्पष्टीकरण २ :
इस खंड के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति के अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात् ऐसा न्यायिक पद धारण किया है जो जिला न्यायाधीश के पद से अवर नहीं है ।
४) उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए संसद् के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है ।
५) संसद् खंड (४) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और साबित करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन कर सकेगी।
६) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने के पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा ।
७)कोई व्यक्ति, जिसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण किया है, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकारी के समक्ष अभिवचन या कार्य नहीं करेगा ।
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१.उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीश संख्या) संशोधन अधिनियम २०१९ (२०१९ का ३७) की धारा २ के अनुसार (९-८-२०१९ से) अब यह संख्या तैंतीस है ।
२.संविधान (निन्यानवेवां संशोधन ) अधिनियम, २०१४ की धारा २ द्वारा (१३-४-२०१५ से ) उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख १६ अक्तुबर, २०१५ के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है ।
३.संविधान (निन्यानवेवां संशोधन ) अधिनियम, २०१४ की धारा २ द्वारा (१३-४-२०१५ से ) पहले परन्तुक का लोप किया गया । यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख १६ अक्तुबर, २०१५ के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है । संशोधन के पूर्व , यह निम्नानुसार था –
परन्तु मु्ख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ती की दशा में भारत के मुख्य न्यायमुर्ति से सदैव परामर्श किया जाएगा : ।
४.संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम ,२०१४ की धारा २ द्वारा ( १३-४-२०१५ से ) परन्तु यह और कि शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख १६ अक्तुबर, २०१५ के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है ।
५.संविधान (पन्द्रहवां संशोधन) अधिनियम, १९६३ की धारा २ द्वारा अंत:स्थापित ।

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