भारत का संविधान
अनुच्छेद १०२ :
सदस्यता के लिए निरर्हताएं ।
१) कोई व्यक्ति संसद् के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा –
१.(क)यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोडकर, जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना संसद् ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है;)
ख) यदि वह विकृतचित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है ;
ग) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है ;
घ)यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किए हुए है ;
ड) यदि वह संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है ।
२.(स्पष्टीकरण :
इस खंड के प्रयोजनों के लिए,) कोई व्यक्ति केवल उस कारण भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है ।
३.((२) कोई व्यक्ति संसद् के किसी सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरर्हित हो जाता है । )
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१. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम १९७६ की धारा १९ द्वारा खंड (१) के उपखंड (क) को (तारीख अधिसूचित नहीं की गई) प्रतिस्थापित किया गया । इस संशोधन का संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम १९७८ की धारा ४५ द्वारा (२०-६-१९७९ से) लोप कर दिया गया ।
२.संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम. १९८५ की धारा ३ द्वारा (१-३-१९८५ से ) (२) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३.संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, १९८५ की धारा ३ द्वारा (१-३-१९८५ से ) अंत:स्थापित ।