विदेशियों विषयक अधिनियम १९४६
धारा ३ :
आदेश बनाने की शक्ति :
१) केन्द्रीय सरकार या तो साधारणतः या सब विदेशियों के संबंध में या किसी विशिष्ट विदेशी संबंध में या किसी विहित वर्ग या विवरण के विदेशी के संबंध में १.(भारत) में विदेशियों के प्रवेश, उससे उनके प्रस्थान या उसमें उनकी उपस्थिति या उनकी निरन्तर उपस्थिति को प्रतिषिद्ध, विनियमित या निर्बंधित करने के लिए, २.(आदेश) द्वारा उपबन्ध बना सकती है।
२) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इस धारा के अधीन बनाए गए आदेशों में यह उपबंधित हो सकता है कि विदेशी-
(a)क) १.(भारत) में प्रवेश नहीं करेगा, या १.(भारत) में केवल ऐसे समयों पर और ऐसे मार्ग से और ऐसे पत्तन या स्थान से, और अपने आगमन पर ऐसी शर्तों के, जैसे विहित की जाएं, अनुपालन के अधीन रहते हुए, प्रवेश करेगा;
(b)ख) १.(भारत) से प्रस्थान नहीं करेगा, या ऐसे समयों पर और ऐसे मार्ग से और ऐसे पत्तन या स्थान से और प्रस्थान पर ऐसी शर्तों के, जैसी विहित की जाएं, अनुपालन के अधीन रहते हुए प्रस्थान करेगा;
(c)ग) १.(भारत) में या भारत में किसी विहित क्षेत्र में नहीं रहेगा;
(cc)३.(गग) यदि इस धारा के अधीन आदेश द्वारा उससे भारत में न रहने की अपेक्षा की गई है, तो वह अपने व्ययनाधीन साधनों से भारत से अपने हटाए जाने का और ऐसे हटाए जाने तक भारत में अपने भरण-पोषण का व्यय वहन करेगा;)
(d)घ) १.(भारत) में ऐसे क्षेत्र में जैसा विहित किया जाए आने को ले जाएगा और उसमें रहेगा;
(e)ङ) ऐसी शर्तों का अनुपालन करेगा जो विहित या विनिर्दिष्ट की जाएं-
एक) जिनसे किसी विशिष्ट स्थान में निवास करने की उससे अपेक्षा की जाए,
दो) जिनसे उसकी गतिविधियों पर किन्हीं निर्बंधनों को अधिरोपित किया जाए,
तीन) जिनसे उनको पहचान का ऐसा सबूत देने और ऐसे प्राधिकारी को ऐसी विशिष्टियां ऐसी रीति से और ऐसे समय और स्थान पर जो विहित या विनिर्दिष्ट किए जाएं, रिपोर्ट करने के लिए अपेक्षा की जाए,
चार) जिनसे उसके फोटोचित्र और अंगुली छाप लिए जाने के लिए, अनुज्ञात करने के लिए और उसके हस्तलेख और हस्ताक्षर का नमूना ऐसे प्राधिकारी को ऐसे समय और स्थान पर जो विहित या विनिर्दिष्ट किए जाएं देने की अपेक्षा की जाए,
पांच) जिनसे ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसे समय और स्थान पर जैसे विहित या विनिर्दिष्ट किए जाएं ऐसी चिकित्सीय परीक्षा के लिए जो विहित या विनिर्दिष्ट की जाएं स्वयं को प्रस्तुत करने के लिए उससे अपेक्षा की जाएं,
छह) जिनसे विहित या विनिर्दिष्ट प्रकार के व्यक्तियों के साथ मेलजोल से उसे प्रतिषिद्ध किया जाए,
सात) जिनसे विहित या विनिर्दिष्ट विवरण के क्रियाकलापों के करने से उसे प्रतिषिद्ध किया जाए,
आठ) जिनसे विहित या विनिर्दिष्ट वस्तुओं के उपयोग या कब्जे से उसे प्रतिषिद्ध किया जाए,
नौ) जिनसे किसी ऐसी विशिष्टि में जैसी विहित या विनिर्दिष्ट की जाए, उसके आचरण को अन्यथा विनियमित किया जाए;
(f)च) किन्हीं या सभी विहित या विनिर्दिष्ट निर्बंधनों या शर्तों के, सम्यक् अनुपालन के लिए, या प्रवर्तन के विकल्प के रूप में, प्रतिभू सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करेगा;
(g)४.(छ) गिरफ्तार और निरुद्ध या परिरुद्ध किया जाएगा;),
और ५.(किसी ऐसे मामले के लिए जो विहित किया जाना है या विहित किया जा सकता है और) ऐसे आनुषंगिक या अनुपूरक मामलों के लिए जो केन्द्रीय सरकार की राय में इस अधिनियम को प्रभावी करने के लिए समीचीन या आवश्यक है, उपबंध कर सकते है ।
५.(३) इस निमित्त विहित कोई भी प्राधिकारी किसी विशिष्ट विदेशी के संबंध में उपधारा (२) के खण्ड (ङ) ६.(या खण्ड (च)) के अधीन आदेश दे सकता है।)
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१. १९४७ के अधिनियम सं० ३८ की धारा २ द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर प्रतिस्थापित।
२. विदेशियों विषयक आदेश १९४८ देखिए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी) १९४८, भाग १ पृ.१९८।
३. १९४७ के अधिनियम सं० ३८ की धारा ४ द्वारा अन्त:स्थापित ।
४. १९६२ के अधिनियम सं० ४२ की धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित। पूर्ववर्ती खण्ड (छ) का १९५७ के अधिनियम सं० ११ की धारा ३ द्वारा (१९-१-१९५७ से) लोप किया गया था।
५. १९४७ के अधिनियम सं० ३८ की धारा ४ द्वारा अन्त:स्थापित।
६. १९५७ के अधिनियम ११ की धारा ४ द्वारा (१९-१-१९५७ से) अन्त:स्थापित ।
