Ipc धारा १०४ : कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यू से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा १०४ : कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यू से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है : (See section 42 of BNS 2023) यदी वह अपराध, जिसके किए जाने या जिसके किए जाने के प्रयत्न से निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा…

Continue ReadingIpc धारा १०४ : कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यू से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है :

Ipc धारा १०३ : कब संपत्ती की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारित करने तक का होता है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा १०३ : कब संपत्ती की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारित करने तक का होता है : (See section 41 of BNS 2023) संपत्ति की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा ९९ में वर्णित निर्बंधनों के अध्यधीन…

Continue ReadingIpc धारा १०३ : कब संपत्ती की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारित करने तक का होता है :

Ipc धारा १०२ : शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा १०२ : शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना : (See section 40 of BNS 2023) शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ(शुरु) हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या…

Continue ReadingIpc धारा १०२ : शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना :

Ipc धारा १०१ : कब ऐसे अधिकार (शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा) का विस्तार मृत्यू से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा १०१ : कब ऐसे अधिकार (शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा) का विस्तार मृत्यू से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है : (See section 39 of BNS 2023) यदि अपराध पूर्वगामी (इससे पहले) अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों…

Continue ReadingIpc धारा १०१ : कब ऐसे अधिकार (शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा) का विस्तार मृत्यू से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है :

Ipc धारा १०० : शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारि करने तक कब होता है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा १०० : शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारि करने तक कब होता है : (See section 38 of BNS 2023) शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अंतिम धारा में वर्णित निर्बंधनों के अधीन रहते…

Continue ReadingIpc धारा १०० : शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारि करने तक कब होता है :

Ipc धारा ९९ : कोई कार्य, जिनके विरुध्द निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ९९ : कोई कार्य, जिनके विरुध्द निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है : (See section 37 of BNS 2023) यदि कोई कार्य या बात, जिससे मृत्यू या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रुप से कारित नहीं होती; सद्भावपूर्वक अपने…

Continue ReadingIpc धारा ९९ : कोई कार्य, जिनके विरुध्द निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है :

Ipc धारा ९८ : विकृतचित्त (मनोविकल) व्यक्ती या आदी व्यक्ती के कार्य के विरुद्ध निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ९८ : विकृतचित्त (मनोविकल) व्यक्ती या आदी व्यक्ती के कार्य के विरुद्ध निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार : (See section 36 of BNS 2023) जबकि कोई कार्य या बात, जो अन्यथा कोई अपराध होता है, उस कार्य या बात को करने…

Continue ReadingIpc धारा ९८ : विकृतचित्त (मनोविकल) व्यक्ती या आदी व्यक्ती के कार्य के विरुद्ध निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार :

Ipc धारा ९७ : शरीर तथा संपत्ति की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ९७ : शरीर तथा संपत्ति की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार : (See section 35 of BNS 2023) इस अधिनियम कें धारा ९९ में अन्तर्विष्ट निर्बंधनों के अध्ययीन, हर व्यक्ती को अधिकार है कि वह - पहला - मानव शरीर…

Continue ReadingIpc धारा ९७ : शरीर तथा संपत्ति की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार :

Ipc धारा ९६ : निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा में की गई बाते या कार्य :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में : धारा ९६ : निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा में की गई बाते या कार्य : (See section 34 of BNS 2023) जो निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाती है, वह बात…

Continue ReadingIpc धारा ९६ : निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा में की गई बाते या कार्य :

Ipc धारा ९५ : किसी बात या कार्य से तुच्छ या अल्प अपहानि कारित हो :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ९५ : किसी बात या कार्य से तुच्छ या अल्प अपहानि कारित हो : (See section 33 of BNS 2023) कोई बात या कार्य इस कारण से अपराध नहीं है कि उससे कोई अपहानि कारित होती है या कारित की…

Continue ReadingIpc धारा ९५ : किसी बात या कार्य से तुच्छ या अल्प अपहानि कारित हो :

Ipc धारा ९४ : वह कार्य जिसे करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ९४ : वह कार्य जिसे करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है : (See section 32 of BNS 2023) हत्या और राज्य के विरुद्ध अपराधों को मृत्यू से दण्डनीय है, उन्हे छोडकर कोई बात या कार्य…

Continue ReadingIpc धारा ९४ : वह कार्य जिसे करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है :

Ipc धारा ९३ : सद्भावपूर्वक दी गई संसुचना (दो या अधिक व्यक्तियों या स्थानों को सूचना देने के साधन) :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ९३ : सद्भावपूर्वक दी गई संसुचना (दो या अधिक व्यक्तियों या स्थानों को सूचना देने के साधन) : (See section 31 of BNS 2023) सद्भावपूर्वक दी गई संसुचना उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस व्यक्ति को हो…

Continue ReadingIpc धारा ९३ : सद्भावपूर्वक दी गई संसुचना (दो या अधिक व्यक्तियों या स्थानों को सूचना देने के साधन) :

Ipc धारा ९२ : किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति के बिना सद्भावपूर्वक किया गया कार्य :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ९२ : किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति के बिना सद्भावपूर्वक किया गया कार्य : (See section 30 of BNS 2023) कोई बात या कार्य, जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक उसकी सम्मति के बिना की गई…

Continue ReadingIpc धारा ९२ : किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति के बिना सद्भावपूर्वक किया गया कार्य :

Ipc धारा ९० : सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ९० : सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है : (See section 28 of BNS 2023) कोई सम्मति ऐसी सम्मति नहीं है जैसी इस संहिता की किसी धारा से आशयित…

Continue ReadingIpc धारा ९० : सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है :

Ipc धारा ८९ : संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ८९ : संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य : (See section 27 of BNS 2023) कोई बात या कार्य, जो बारह वर्ष के आयु के या विकृतचित्त व्यक्ति…

Continue ReadingIpc धारा ८९ : संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य :

Ipc धारा ८८ : किसी व्यक्ती के फायदे के लिए उसके सम्मति से सद्भावपूर्वक किया गया कार्य जिसमें मृत्यू कारित करने का आशय नहीं है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ८८ : किसी व्यक्ती के फायदे के लिए उसके सम्मति से सद्भावपूर्वक किया गया कार्य जिसमें मृत्यू कारित करने का आशय नहीं है : (See section 26 of BNS 2023) कोई बात या कार्य, जो किसी ऐसी अपहानि के कारण…

Continue ReadingIpc धारा ८८ : किसी व्यक्ती के फायदे के लिए उसके सम्मति से सद्भावपूर्वक किया गया कार्य जिसमें मृत्यू कारित करने का आशय नहीं है :

Ipc धारा ८७ : जिससे मृत्यू या घोर अपहति (गंभीर चोट) कारित करने का आशय न हो या उसकी संभाव्यता न हो उसका ज्ञान न हो, इसी सम्मति से किया गया कार्य :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ८७ : जिससे मृत्यू या घोर अपहति (गंभीर चोट) कारित करने का आशय न हो या उसकी संभाव्यता न हो उसका ज्ञान न हो, इसी सम्मति से किया गया कार्य : (See section 25 of BNS 2023) कोई बात या…

Continue ReadingIpc धारा ८७ : जिससे मृत्यू या घोर अपहति (गंभीर चोट) कारित करने का आशय न हो या उसकी संभाव्यता न हो उसका ज्ञान न हो, इसी सम्मति से किया गया कार्य :

Ipc धारा ८६ : किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है वह उस व्यक्ती द्वारा किया हो जो मत्तता में है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ८६ : किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है वह उस व्यक्ती द्वारा किया हो जो मत्तता में है : (See section 24 of BNS 2023) जहां कि कोई किया गया कोइ कार्य अपराध नहीं…

Continue ReadingIpc धारा ८६ : किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है वह उस व्यक्ती द्वारा किया हो जो मत्तता में है :

Ipc धारा ८५ : जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है, ऐसे व्यक्ति का कार्य :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ८५ : जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है, ऐसे व्यक्ति का कार्य : (See section 23 of BNS 2023) जब कोई बात, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो…

Continue ReadingIpc धारा ८५ : जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है, ऐसे व्यक्ति का कार्य :

Ipc धारा ८४ : विकृत्तचित्त (अस्वस्थ मस्तिष्क / मनोविकल) व्यक्ति का कार्य :

भारतीय दण्ड संहिता १८६० धारा ८४ : विकृत्तचित्त (अस्वस्थ मस्तिष्क / मनोविकल) व्यक्ति का कार्य : (See section 22 of BNS 2023) जब कोई बात जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय चित्त - विकृति के (अस्वस्थ मस्तिष्क) के कारण उस…

Continue ReadingIpc धारा ८४ : विकृत्तचित्त (अस्वस्थ मस्तिष्क / मनोविकल) व्यक्ति का कार्य :