Bnss धारा ५३१ : निरसन और व्यावृत्तियाँ :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५३१ : निरसन और व्यावृत्तियाँ : १) दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) इसके द्वारा निरसित की जाती है । २) ऐसे निरसन के होते हुए भी यह है कि-- (a) क) यदि उस तारीख के जिसको यह…

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Bnss धारा ५३० : इलेक्ट्रानिक पद्धति में विचारण और कार्यवाहियों का किया जाना :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५३० : इलेक्ट्रानिक पद्धति में विचारण और कार्यवाहियों का किया जाना : इस संहिता के अधीन सभी विचारण और कार्यवाहियां, जिसके अंतर्गत - एक) समन और वारंट को जारी करना, तामील और निष्पादन करना; दो) शिकायतकर्ता और साक्षियों की…

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Bnss धारा ५२९ : न्यायालयों पर अधीक्षण का निरंतर प्रयोग करने का उच्च न्यायालय का कर्तव्य :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२९ : न्यायालयों पर अधीक्षण का निरंतर प्रयोग करने का उच्च न्यायालय का कर्तव्य : प्रत्येक उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ सेशन न्यायालयों और न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों पर अपने अधीक्षण का प्रयोग इस प्रकार करेगा जिससे यह सुनिश्चित हो…

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Bnss धारा ५२८ : उच्च न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियों की व्यावृत्ति :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२८ : उच्च न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियों की व्यावृत्ति : इस संहिता की कोई बात उच्च न्यायालय की ऐसे आदेश देने की अन्तर्निहित शक्ति को सीमित या प्रभावित करने वाली न समझी जाएगी जैसे इस संहिता के अधीन किसी…

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Bnss धारा ५२७ : विक्रय से संबद्ध लोक-सेवक का सम्पत्ति का क्रय न करना और उसके लिए बोली न लगाना :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२७ : विक्रय से संबद्ध लोक-सेवक का सम्पत्ति का क्रय न करना और उसके लिए बोली न लगाना : कोई लोक-सेवक, जिसे इस संहिता के अधीन संपत्ति के विक्रय के बारे में किसी कर्तव्य का पालन करना है, उस…

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Bnss धारा ५२६ : विधि-व्यवसाय करने वाले वकिल का कुछ न्यायालयों में मजिस्ट्रेट के तौर प न बैठना :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२६ : विधि-व्यवसाय करने वाले वकिल का कुछ न्यायालयों में मजिस्ट्रेट के तौर प न बैठना : कोई वकिल, जो किसी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में विधि-व्यवसाय करता है, उस न्यायालय में या उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारीता के अन्दर…

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Bnss धारा ५२५ : वह मामला जिसमें न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट वैयक्तिक रुप से हितबद्ध है :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२५ : वह मामला जिसमें न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट वैयक्तिक रुप से हितबद्ध है : कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट किसी ऐसे मामले का, जिसमें वह पक्षकार है, या वैयक्तिक रुप से हितबद्ध है, उस न्यायालय की अनुज्ञा के बिना, जिसमें…

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Bnss धारा ५२४ : कुछ दशाओं में कार्यपालक मजिस्ट्रेटों को सौंपे गए कृत्यों को परिवर्तित करने की शक्ति :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२४ : कुछ दशाओं में कार्यपालक मजिस्ट्रेटों को सौंपे गए कृत्यों को परिवर्तित करने की शक्ति : यदि किसी राज्य का विधान-मण्डल संकल्प द्वारा ऐसी अनुज्ञा देता है तो राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात्, अधिसूचना…

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Bnss धारा ५२३ : उच्च न्यायालय की नियम बनाने की शक्ति :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२३ : उच्च न्यायालय की नियम बनाने की शक्ति : १) प्रत्येक उच्च न्यायालय राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से निम्नलिखित के बारे में नियम बना सकेगा - (a) क) वे व्यक्ति जो उसके अधीनस्थ दण्ड न्यायालयों में अर्जी…

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Bnss धारा ५२२ : प्ररुप :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२२ : प्ररुप : संविधान के अनुच्छेद २२७ द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अधीन रहते हुए, द्वितीय अनुसूची में दिए गए प्ररुप ऐसे परिवर्तनों सहित, जैसे प्रत्येक मामले की परिस्थितियों से अपेक्षित हों, उसमें वर्णित संबद्ध प्रयोजनों के लिए उपयोग…

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Bnss धारा ५२१ : सेना न्यायालय द्वारा विचारणीय व्यकियों का कमान अफसरों को सौंपा जाना :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५२१ : सेना न्यायालय द्वारा विचारणीय व्यकियों का कमान अफसरों को सौंपा जाना : १) केन्द्रीय सरकार इस संहिता से और सेना अधिनियम, १९५० (१९५० का ४६), नौसेना अधिनियम, १९५७ (१९५७ का ६२) और वायुसेना अधिनियम, १९५० (१९५० का…

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Bnss धारा ५२० : उच्च न्यायालयों के समक्ष विचारण :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ अध्याय ३९ : प्रकीर्ण : धारा ५२० : उच्च न्यायालयों के समक्ष विचारण : जब किसी अपराध का विचारण उच्च न्यायालय द्वारा धारा ४४७ के अधीन न करके अन्यथा किया जाता है तब वह अपराध के विचारण में वैसी ही…

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Bnss धारा ५१९ : कुछ दशाओं में परिसीमा-काल का विस्तारण :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५१९ : कुछ दशाओं में परिसीमा-काल का विस्तारण : इस अध्याय के पूर्ववर्ती उपबंधों में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, कोई भी न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान परिसीमा-काल के अवसान के पश्चात् कर सकता है यदि मामले…

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Bnss धारा ५१८ : चालू रहने वाला अपराध :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५१८ : चालू रहने वाला अपराध : किसी चालू रहने वाले अपराध की दशा में नया परिसीमा-काल उस समय के प्रत्येक क्षण से प्रारंभ होगा जिसके दौरान अपराध चालू रहता है ।

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Bnss धारा ५१७ : जिस तारिख को न्यायालय बंद हो उस तारीख का अपवर्जन :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५१७ : जिस तारिख को न्यायालय बंद हो उस तारीख का अपवर्जन : यदि परिसीमा-काल उइ दिन समाप्त होता है जब न्यायालय बंद है तो न्यायालय उस दिन संज्ञान कर सकता है जिस दिन न्यायलय पुन: खुलता है ।…

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Bnss धारा ५१६ : कुछ दशाओं में समय का अपवर्जन (निकालना / छोडना) :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५१६ : कुछ दशाओं में समय का अपवर्जन (निकालना / छोडना) : १) परिसीमा-काल की संगणना करने में, उस समय का अपवर्जन किया जाएगा, जिसके दौरान कोई व्यक्ति चाहे प्रथम बार के न्यायालय में या अपील या पुनरिक्षण न्यायालय…

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Bnss धारा ५१५ : परिसीमा-काल का प्रारंभ :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५१५ : परिसीमा-काल का प्रारंभ : १) किसी अपराधी के संबंध में परिसीमा-काल- (a) क) अपराध की तारीख को प्रारंभ होगा; या (b) ख) जहाँ अपराध के किए जाने की जानकारी अपराध द्वारा व्यथित व्यक्ति को या किसी पुलिस…

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Bnss धारा ५१४ : परिसीमा-काल की समाप्ती के पश्चात् संज्ञान का वर्जन :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५१४ : परिसीमा-काल की समाप्ती के पश्चात् संज्ञान का वर्जन : १) इस संहिता में अन्यत्र जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, कोई न्यायालय उपधारा (२) में विनिर्दिष्ट प्रवर्ग के किसी अपराध का संज्ञान परिसीमा-काल की समाप्ति के पश्चात…

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Bnss धारा ५१३ : परिभाषा :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ अध्याय ३८ : कुछ अपराधों का संज्ञान करने के लिए परिसीमा । धारा ५१३ : परिभाषा : इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए जब तक संदर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो, परिसीमा काल से किसी अपराध का संज्ञान करने के…

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Bnss धारा ५१२ : त्रुटि या गलती के कारण कुर्की का अवैध न होना :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३ धारा ५१२ : त्रुटि या गलती के कारण कुर्की का अवैध न होना : इस संहिता के अधीन की गई कोई कुर्की ऐसी किसी त्रुटि के कारण या प्ररुप के अभाव के कारण विधिविरुद्ध न समझी जाएगी जो समन, दोषसिद्धी,…

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