सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम १९५५
धारा १५क :
१.(अस्पृश्यता का अंत करने से प्रोद्भूत अधिकारों से सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा फायदा उठाना सुनिश्चित करने का राज्य सरकार का कर्तव्य :
(१) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाए, राज्य सरकार ऐसे उपाय करेगी, जो यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हों, कि अस्पृश्यता का अन्त करने से उद्भूत होने वाले अधिकार अस्पृश्यता से उद्भूत किसी निर्योग्यता से पीडित व्यक्तियों को उपलब्ध किए जाते हैं और वे उनका फायदा उठाते हैं।
(२) विशिष्टतः और उपधारा (१) के उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे उपायों के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं, अर्थात :-
(एक) पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था जिसके अन्तर्गत अस्पृश्यता से उद्भूत किसी निर्योग्यता से पीडित व्यक्तियों को विधिक सहायता देना है, जिससे कि वे ऐसे अधिकारों का फायदा उठा सकें;
(दो) इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन के लिए अभियोजन प्रारम्भ करने या ऐसे अभियोजनों का पर्यवेक्षण करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति;
(तीन) इस अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना;
(चार) ऐसे समुचित स्तरों पर समितियों की स्थापना को राज्य सरकार ऐसे उपायों के निरूपण या उन्हें कार्यान्वित करने में राज्य सरकार की सहायता करने के लिए ठीक समझे ;
(पांच) इस अधिनियम के उपबंधों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए उपाय सुझाने की दृष्टि से इस अधिनियम के उपबन्धों के कार्यकरण के सर्वेक्षण की समय-समय पर व्यवस्था करना;
(छह) उन क्षेत्रों का अभिनिर्धारण जहां व्यक्ति अस्पृश्यता से उद्भूत किसी निर्योग्यता से पीडित है, और ऐसे उपायों को अपनाना जिनसे ऐसे क्षेत्रों में ऐसी निर्योग्यता का दूर किया जाना सुनिश्चित हो सके।
(३) केन्द्रीय सरकार राज्य सरकारों द्वारा उपधारा (१) के अधीन किए गए उपायों में समन्वय स्थापित करने के लिए ऐसे कदम उठाएगी जो आवश्यक हों।
(४) केन्द्रीय सरकार हर वर्ष संसद् के प्रत्येक सदन के पटल पर ऐसे उपायों की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी जो उसने और राज्य सरकार ने इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में किए हैं।)
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१.१९७६ के अधिनियम सं० १०६ की धारा १७ द्वारा (१९-११-१९७६ से) धारा १५ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।