पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम १९६०
धारा १७ :
समिति के कर्तव्य और पशओं पर किए जाने वाले प्रयोगों के संबंध में नियम बनाने की समिति की शक्ति :
(१) समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए कि पशुओं पर किए जाने वाले प्रयोगों से पूर्व, उनके दौरान, या उनके पश्चात उन्हें अनावश्यक पीड़ा या यातना न पहुंचे ऐसे सभी उपाय करे, जो आवश्यक हों, और उस प्रयोजन के लिए वह भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और पूर्व प्रकाशन की शर्त के अधीन रहते हुए, ऐसे प्रयोगों के किए जाने के संबंध में ऐसे नियम बना सकेगी जिन्हें वह ठीक समझे।
१.(१क) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित विषयों के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात :-
(a)(क) पशुओं पर प्रयोग करने वाले व्यक्तियों या संस्थाओं का रजिस्टड्ढीकरण;
(b)(ख) वे रिपोर्ट और अन्य जानकारी जो पशुओं पर प्रयोग करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा समिति को भेजी जाएंगी। )
(२) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, समिति द्वारा बनाए गए नियम इस प्रकार के होंगे जो निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति सुनिश्चित कर सकें, अर्थात :-
(a)(क) उन दशाओं में, जिनमें प्रयोग किसी संस्था द्वारा किए जाएं उनकी जिम्मेदारी उस संस्था के भारसाधक व्यक्ति की होगी, और उन दशाओं में, जिनमें प्रयोग संस्था के बाहर किन्हीं व्यक्तियों द्वारा किए जाएं, वे व्यक्ति उस निमित्त अर्हित हों और प्रयोग उनकी पूरी-पूरी जिम्मेदारी पर किए जाएं;
(b)(ख) प्रयोग सम्यक सतर्कता और सहृदयता के साथ किए जाएं और शल्य-क्रिया वाले प्रयोग यथासंभव पर्याप्त शक्ति के संज्ञाहारी के प्रभावाधीन किए जाएं जिससे कि पशुओं को पीड़ा का अनुभव न हो;
(c)(ग) ऐसे पशु, जो संज्ञाहारियों के प्रभावाधीन प्रयोग के क्रम में इतने क्षत हो जाएं कि उनके ठीक होने के पश्चात भी उन्हें गंभीर यातना बनी रहे, जब वह संज्ञाहीन ही हों तभी, साधारणतया नष्ट कर दिए जाएं ;
(d)(घ) जहां कहीं, उदाहरणार्थ चिकित्सा संबंधी स्कूलों, अस्पतालों, कालेजों जैसे स्थानों में, पशुओं पर प्रयोगों का परिवर्जन कर सकना संभव हो वहां उस दशा में ऐसा ही किया जाए जब पुस्तकें, माडल, फिल्म और अन्य वैसी ही शिक्षण प्रयुक्तियां समान रूप से पर्याप्त हों;
(e)(ङ) बड़े-बड़े पशुओं पर प्रयोग न किए जाएं यदि गिनी-पिग, शशक, मेंढक और चूहे जैसे छोटे-छोटे पशुओं पर प्रयोग करके वही परिणाम प्राप्त करना संभव हो;
(f)(च) जहां तक संभव हो, हस्तकौशल प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए ही प्रयोग न किए जाएं;
(g)(छ) प्रयोग किए जाने के लिए आशयित पशुओं की, प्रयोगों से पूर्व और पश्चात दोनों ही समय, समुचित रूप से देख-रेख रखी जाए;
(h)(ज) पशुओं पर किए गए प्रयोगों के संबंध में समुचित अभिलेख रखे जाएं।
(३) इस धारा के अधीन नियम बनाने में, समिति का मार्गदर्शन ऐसे निदेशों द्वारा होगा, जो केन्द्रीय सरकार (उन उद्देश्यों के अनुरूप जिनके लिए समिति स्थापित की गई है) उसे दे और केद्रीय सरकार को ऐसे निदेश देने के लिए इसके द्वारा प्राधिकृत किया जाता है।
(४) समिति द्वारा बनाए गए सभी नियम संस्थाओं के बाहर प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों तथा ऐसे व्यक्तियों पर आबद्धकर होंगे जो उन संस्थाओं के भारसाधक हैं जिनमें प्रयोग किए जाते हैं।
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१. १९८२ के अधिनियम सं० २६ की धारा १४ द्वारा अंत:स्थापित।
