स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम १९८५
धारा ६४ :
अभियोजन से उन्मुक्ति देने की शक्ति :
केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, यदि उसकी यह राय है (ऐसी राय के लिए कारण लेखबद्ध किए जाएंगे) कि किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य अभिप्राप्त करने की दृष्टि से, जो इस अधिनियम के किन्हीं उपबंधों या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उल्लंघन से प्रत्यक्षत: संबद्ध या संसर्गित प्रतीत होता है, ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह एसे व्यक्ति को, यथास्थिति, इस अधिनियम या भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए अभियोजन से इस शर्त पर उन्मुक्ति दे सकेगा कि वह ऐसे उल्लंघन से संबंधित संपूर्ण परिस्थितियों को पूर्ण और सही प्रकटीकरण करेगा ।
२) संबंधित व्यक्ति को दी गई और उसके द्वारा स्वीकार की गई उन्मुक्ति, उस सीमा तक जिस तक उन्मुक्ति का विस्तार है उसे किसी ऐसे अपराध के लिए जिसकी बाबत उन्मुक्ति दी गई थी, अभियोजन से उन्मुक्त कर देगी ।
३) यदि, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि उस व्यक्ति ने, जिसे इस धारा के अधीन उन्मुक्ति दी गई है, उन शर्तों का, जिनके अधीन उन्मुक्ति दी गई थी, पालन नहीं किया है या वह जानबूझकर कोई बात छिपा रहा है या मिथ्या साक्ष्य दे रहा है तो, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार उस प्रभाव का निष्कर्ष लेखबद्ध कर सकेगी और तब उन्मुक्ति प्रत्याऱ्हत की गई समजी जाएगी और ऐसे व्यक्ति का उस अपराध के लिए, जिसके लिए उन्मुक्ति दी गई थी या उसी विषय के संबंध में किसी अन्य अपराध के लिए, जिसका वह दोषी प्रतीत होता है, विचारण किया जा सकेगा ।
